अटल जी का आगरावासियों से विशेष लगाव था, जानिए क्यों

Edited By Ruby,Updated: 18 Aug, 2018 06:20 PM

atal ji had special attachment with the agarwas know why

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को महान कवि, ओजस्वी वक्ता, ह्दय स्पर्शी चरित्र और सभी को अपना बनाने की कला में उन्हें महारथ हासिल थी। वह अपने आप में संपूर्ण व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। खासकर आगरा और आगरावालों से उनका विशेष लगाव था। आज हम...

आगराः पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को महान कवि, ओजस्वी वक्ता, ह्दय स्पर्शी चरित्र और सभी को अपना बनाने की कला में उन्हें महारथ हासिल थी। वह अपने आप में संपूर्ण व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। खासकर आगरा और आगरावालों से उनका विशेष लगाव था। आज हम आगरा के ऐसे ही शख्स से आपकी मुलाकात करवाने वाले हैं जो अटल जी से संसद में मिले भी और उनसे पत्रचार भी किया करते थे।

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दरअसल वो शख्स आगरा के सूर्य नगर कॉलोनी में रहने वाले वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रणवीर सिंह चौहान हैं। डॉ. प्रणवीर सिंह चौहान ने कई किताबों का संपादन और प्रकाशन किया है। डॉ. प्रणवीर के पास आज भी अटल जी के हाथों से लिखे पत्र मौजूद है। डॉ. प्रणवीर ने अटल जी से जुड़े कई संस्मरणों को पंजाब केसरी टीवी से सांझा भी किया। वे बताते है कि आगरा वालों के लिए अटल जी का विशेष स्नेह रहता था। उन्होंने बताया कि उन्हे एक बार दिल्ली में अपने मित्र सांसद और हिमाचल के पूर्व सीएम वाई.एस. परमार से मिलने और संसद देखने की इच्छा जाहिर की, तो उन्होंने मुझे बुलाया था। मैं संसद के गेट पर उनका इंतजार कर रहा था। उस समय अटल जी सांसद थे। 

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अचानक पीले रंग की टैक्सी आकर रुकी। उसमें से अटल जी निकले, तो मैंने उनके चरण स्पर्श कर लिए। उन्होंने मुझसे बड़े स्नेह से पूछा कि कौन हो और यहां कैसे आना हुआ। मैंने बताया कि मैं आगरा से आया हूं और संसद देखना चाहता हूं। इसके बाद वह मुझे अपने साथ ले गए और मुझे दर्शकदीर्घा में बैठाया। यह आगरा को लेकर उनका प्यार ही था कि यहां का नाम सुनकर ही उनके मन में व्यक्ति और लोगों के लिए स्नेह स्वयं उत्पन्न हो जाता था। 

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डॉ. प्रणवीर बताते है कि दूसरी वार्तालाप 1942 में ताज पर विभिन्न कवियों की कृतियों का संकलन के दौरान हुई। उस समय उन्हें पता चला कि अटल जी के पास भी ताज को लेकर कविता है, इसलिए उन्होंने 1964 में दो पत्र लिखे। जिसका उत्तर उन्होंने स्वयं दिया। उन्होंने लिखा कि उस कविता को काफी तलाशा लेकिन नहीं मिल रही। किसी पत्रिका में छपी है। उन्होंने कहा कि मुझे कविता की अब सिर्फ एक पंक्ति याद है, जो इस तरह है- जब रोया हिंदुस्तान सरल, तब बन पाया यह ताजमहल। यह उनकी पहली कविता थी। इसके बाद उनके इसी संस्मरण को मैंने अपनी पुस्तक में जगह दी। उसके प्रकाशन पर उन्होंने दोबारा पत्र लिखकर आभार जताया था। इन बातों से समझा जा सकता है कि वह कितने सरल हृदय के व्यक्ति थे। 

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भले ही आज अटल जी हमारे बीच में न हो लेकिन अपने विचारों और कविताओं के जरीये आज भी ताजनगरी के लोगों के हृदय में राज करते हैं।

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