SC में वक्फ कानून को चुनौती, कहा- ट्रस्ट, मठ मंदिर, अखाड़ों को क्‍यों नहीं दिए ये विशेष अधिकार

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 31 Aug, 2020 12:03 PM

wakf law challenged in sc said  why did not give these

अन्य धर्मों से भेदभाव का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून 1995 (WAQF Act 1995) के प्रावधानों के खिलाफ याचिका दाखिल हुई है। याचिका में मांग है कि कोर्ट घोषित करे कि संसद को वक्फ और वक्फ संपत्ति के लिए वक्फ कानून 1995 बनाने का अधिकार नहीं...

नई दिल्लीः अन्य धर्मों से भेदभाव का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून 1995 (WAQF Act 1995) के प्रावधानों के खिलाफ याचिका दाखिल हुई है। याचिका में मांग है कि कोर्ट घोषित करे कि संसद को वक्फ और वक्फ संपत्ति के लिए वक्फ कानून 1995 बनाने का अधिकार नहीं है। संसद सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची में दिए आइटम 10 और 28 के दायरे से बाहर जाकर ट्रस्ट, ट्रस्ट संपत्ति, धर्मार्थ और धार्मिक संस्थाओं और संस्थानों के लिए कोई कानून नहीं बना सकती।

बता दें कि ये याचिका जितेंद्र सिंह सहित 6 लोगों ने वकील हरिशंकर जैन के जरिये दाखिल की है। वक्फ कानून के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देते हुए कहा गया है कि इनमें वक्फ की संपत्ति को विशेष दर्जा दिया गया है जबकि ट्रस्ट, मठ और अखाड़े की संपत्तियों को वैसा दर्जा प्राप्त नहीं है।

याचिका में आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि भारत में रेलवे, डिफेंस के बाद सबसे ज़्यादा ज़मीन वक़्फ़ बोर्डों के पास है। देश में अब तक 6 लाख 59 हज़ार 877 संपत्तियों को वक्फ प्रॉपर्टी घोषित किया जा चुका है। वर्तमान में करीब 8 लाख एकड़ जमीन इन वक्फ बोर्डों के क़ब्जे में है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि पिछले दस साल में वक्फ बोर्ड ने तेजी से दूसरों की संपत्तियों पर कब्जा करके उसे वक्फ संपत्ति घोषित किया है। इसका नतीजा है कि इस समय वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक जुलाई, 2020 तक कुल 6,59,877 संपत्तियां वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज हैं जिसमें देशभर की करीब आठ लाख एकड़ जमीन है।

इतना ही नहीं याचिकाकर्ता का कहना है कि वक्फ बोर्ड को अवैध कब्जे हटाने का विशेष अधिकार है। वक्फ संपत्ति का कब्जा वापस लेने के लिए लिमिटेशन यानी समयसीमा से छूट है। जबकि ट्रस्ट, मठ, मंदिर, अखाड़ा आदि धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधक, सेवादार, महंत और प्रबंधन व प्रशासन देखने वालों को इस तरह का अधिकार और शक्तियां नहीं मिली हुई हैं। 

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