सोनभद्र नससंहार : IAS अफसर की थी 90 बीघा जमीन जिसके लिए बिछाई गईं लाशें

Edited By Anil Kapoor,Updated: 19 Jul, 2019 11:44 AM

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सोनभद्र जिले के घोरावल कोतवाली क्षेत्र के ग्राम पंचायत मूर्तिया के उम्भा गांव में 90 बीघा जमीन के विवाद को लेकर बुधवार को हुई झड़प में ग्राम प्रधान और उसके समर्थकों द्वारा एक प्रतिद्वंद्वी समूह पर कथित तौर पर गोलियां बरसाने के मामले में ग्राम प्रधान...

सोनभद्र: सोनभद्र जिले के घोरावल कोतवाली क्षेत्र के ग्राम पंचायत मूर्तिया के उम्भा गांव में 90 बीघा जमीन के विवाद को लेकर बुधवार को हुई झड़प में ग्राम प्रधान और उसके समर्थकों द्वारा एक प्रतिद्वंद्वी समूह पर कथित तौर पर गोलियां बरसाने के मामले में ग्राम प्रधान के 2 भतीजों गिरिजेश और विमलेश सहित 25 लोग गिरफ्तार किए गए हैं, जबकि चोट की वजह से एक और व्यक्ति की मौत होने के चलते मृतकों की संख्या 10 हो गई है। इस मामले में 11 नामजदों के साथ 61 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।

PunjabKesariवहीं उम्भा गांव में 90 बीघा जमीन के विवाद में बिहार कैडर के एक आईएएस का भी नाम सामने आ रहा है। कहा जा रहा है कि 2 साल पहले पूर्व आईएएस और उनकी बेटी ने यह जमीन ग्राम प्रधान यज्ञदत्त को बेच दी थी। इसी जमीन पर कब्जे के लिए ग्राम प्रधान करीब 200 हमलावरों के साथ पहुंचा था। जब ग्रामीणों ने इसका विरोध किया तो सैंकड़ों राऊंड फायरिंग कर लाशें बिछा दी गईं।

IAS को नहीं मिला था कब्जा
आरोप है कि पूर्व आईएएस ने यहां 90 बीघा जमीन खरीदी थी लेकिन उन्हें उस पर कब्जा नहीं मिल सका जिसके बाद उन्होंने यह जमीन ग्राम प्रधान यज्ञदत्त भूरिया को बेच दी। इसके कब्जे को लेकर ही यह नरसंहार हुआ। पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने बताया कि जरूरत पड़ी तो आईएएस पर भी कार्रवाई होगी। उन्होंने कहा कि 2 साल से ग्राम प्रधान इस जमीन पर कब्जे के लिए प्रयासरत था।

1947 से है आदिवासियों का कब्जा
दरअसल आदिवासी बाहुल इस गांव में लोगों की जीविका का साधन सिर्फ खेती है। ये भूमिहीन आदिवासी सरकारी जमीन जोतकर अपना गुजर-बसर करते आए हैं। जिस जमीन के लिए यह संघर्ष हुआ उस पर इन आदिवासियों का 1947 के पहले से कब्जा है। 1955 में बिहार के आई.ए.एस. प्रभात कुमार मिश्रा और तत्कालीन ग्राम प्रधान ने तहसीलदार के माध्यम से जमीन को आदर्श को-आप्रेटिव सोसाइटी के नाम करा लिया चूंकि उस वक्त तहसीलदार के पास नामांतरण का अधिकार नहीं था लिहाजा नाम नहीं चढ़ सका। इसका रजिस्ट्रेशन 1978 में ही खत्म हो गया था।

इसके बाद आईएएस ने 6 सितम्बर 1989 को अपनी पत्नी और बेटी के नाम जमीन करवा ली जबकि कानून यह है कि सोसाइटी की जमीन किसी व्यक्ति के नाम नहीं हो सकती। इसके बाद आईएएस ने जमीन का कुछ हिस्सा बेच दिया। इस विवादित जमीन को आरोपी यज्ञदत्त ने अपने रिश्तदारों के नाम करवा दिया। बावजूद इसके उस पर कब्जा नहीं मिल सका। इसके बाद बुधवार को करीब 200 की संख्या में हमलावरों के साथ आए ग्राम प्रधान ने यहां खून की होली खेली।

हर साल बिहार से IAS का एक करीबी आता था लगान वसूलने
गोंड बिरादरी के लोगों ने बताया कि वे लोग इस जमीन पर कई पुश्तों से जुताई-बुआई कर रहे हैं। बिहार के पटना का कोई धीरज नाम का व्यक्ति जो आईएएस का करीबी था, ताल्लुकेदार बनकर प्रतिवर्ष बीघे के हिसाब से लगान वसूलता था।

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