एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति के केंद्र में श्रीराम

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 23 Aug, 2020 01:12 PM

shriram at the center of uttar pradesh s politics once again

अयोध्या में पांच अगस्त को राम मंदिर का भूमि पूजन के बाद यह लगने लगा था कि भगवान राम के नाम पर राजनीति के दिन अब नहीं रहे लेकिन बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भारतीय जनता पार्टी को राम के आदर्शों पर चलने की सीख देकर राजनीतिक पंडितों को...

लखनऊः अयोध्या में पांच अगस्त को राम मंदिर का भूमि पूजन के बाद यह लगने लगा था कि भगवान राम के नाम पर राजनीति के दिन अब नहीं रहे लेकिन बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भारतीय जनता पार्टी को राम के आदर्शों पर चलने की सीख देकर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया। बसपा प्रमुख ने अपने ट्वीट में कहा कि भगवान राम के आदर्शों पर चल कर ही राम राज्य लाया जा सकता है। जिस पर चलती भाजपा दिखाई नहीं दे रही। राम के आदर्श ही देश और राज्य में खुशहाली ला सकते हैं।

मायावती का यह बयान चौंकाने वाला था। साल 1993 के विधानसभा चुनाव में बसपा और समाजवादी पार्टी मिलकर लड़े थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि 176 सीट जीतने के बाद भी भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा था। सपा और बसपा ने मिलकर सरकार बनाई थी और यह नारा तेजी से प्रचलित हुआ था,,मिले मुलायम कांसीराम हवा में उड़ गये जय श्रीराम,, हालांकि यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चली और बाद में बसपा ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। उत्तर प्रदेश में सपा,बसपा और कांग्रेस ने हमेशा राम के नाम को लेकर भाजपा को अपने निशान पर रखा।

सपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने तो अयोध्या में कारसेवकों पर यह कह कर गोलियां चलवाईं कि यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता । बसपा ने भी राम के नाम पर कभी राजनीति से खुद को दूर रखा और इसे लेकर हमेशा भाजपा की आलोचना की । कांग्रेस तो राम के अस्तित्व को ही नकारती रही है ।कांग्रेस के लिये राम एक काल्पनिक चरित्र है जैसा कि उपन्यासों में होता है, लेकिन जनता के बीच श्रीराम को लेकर बढ़ती श्रद्धा और बढ़ते प्रभाव के कारण अब पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी कहने लगी हैं कि राम लोगों के मन में बसते हैं।

हालांकि सपा नेतालोटन राम निषाद कहते हैं कि राम नाम का कोई व्यक्ति पैदा ही नहीं हुआ । ये सब बातें बेमानी हैं लेकिन वो इस बात का जवाब नहीं दे पाते कि उनके नाम में भी राम जुड़ा है। राम इस देश की सांस्कृतिक चेतना के केन्द्र में हैं। वो किसी जाति और धर्म के नहीं हैं। राम शबरी के जूठे बेर भी खाते हैं और केवट को गले भी लगाते हैं। राम के समय सिर्फ दो जाति थी। धर्म और अधर्म की। महाज्ञानी रावण अधर्म का प्रतीक था, इसलिए भगवान राम ने उसका बध किया। 

हालांकि पहले राम को पूरी तरह नकार के विपक्षी दलों ने भाजपा को उनका पेटेंट दे दिया था लेकिन अब उनको लगने लगा है कि बिना राम के उनकी राजनैतिक वैतरणी पार नहीं हो सकती इसलिये श्री राम अभी भी राजनीति के केन्द्र में बने हुये हैं।

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