Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 06 May, 2020 04:29 PM
हम जीएंगे हम मरेंगे ऐ वतन तेरे लिए...ये महज एक गाना नहीं बल्कि आज भी इसके मूर्त रूप में कई देश भक्त दिख जाते हैं। उनके देश भक्ति के बीच न तो कभी संपत्ति बाधा बनी न कभी उम्र बनेगी। जी हां इसी जज्बे को पेश किया मोहन कुशवाहा ने जो कि उत्तर प्रदेश...
झांसीः हम जीएंगे हम मरेंगे ऐ वतन तेरे लिए...ये महज एक गाना नहीं बल्कि आज भी इसके मूर्त रूप में कई देश भक्त दिख जाते हैं। उनके देश भक्ति के बीच न तो कभी संपत्ति बाधा बनी न कभी उम्र बनेगी। जी हां इसी जज्बे को पेश किया मोहन कुशवाहा ने जो कि उत्तर प्रदेश झांसी के रहने वाले हैं। कुशवाहा ने 1962 के भारत चीन युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अपील पर अपना सब कुछ देश के लिए दान कर दिया था। मगर आज वर्तमान में कुशवाहा की स्थिति इतनी दयनिय है कि वह भूखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं।
न रहने का ठिकाना है न खाने की व्यवस्था
आज उनके पास न खुद के रहने का ठिकाना है और न ही खाने की व्यवस्था। वह जिले के मऊरानीपुर के अपने गांव सकरार में सड़क किनारे एक पन्नी की झोपड़ी बनाकर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। तेज धूप , बरसात, जाड़ा यही उनका ठिकाना है। इस देश भक्त की ये स्थिति देखकर किसी का भी दिल रो उठेगा, लेकिन इतने संकट में रहने के बाद भी उनकी के देशभक्ति जरा सा भी कम नहीं हुआ बल्कि वह बढ़ता ही गया। कुशवाहा 95 साल के हो चुके हैं।
तत्कालीन PM पंडित नेहरू की एक अपील पर किया था दान
बता दें कि वर्ष 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ा तो उसके बाद देश के PM नेहरू ने आकाशवाणी के माध्यम से देश की जनता से अपील की थी। उन्होंने इस अपील में कहा था कि देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है। इस दौरान उन्होंने भारत के लोगों से सहयोग की अपील की थी। PM नेहरू की इस बात से प्रभावित होकर मोहन कुशवाहा ने कुछ पैसे और अपनी मां के कंगन तक दान कर दिए। जब तक युद्ध चलता रहा तब तक मनीऑर्डर के माध्यम से पैसे भेजते रहे। देश सेवा में सब कुछ न्योछावर कर देने के बाद आज वही देशभक्त गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर है। दाने-दाने को मोहताज बना हुआ है। सोचने वाली बात है कि इस देश भक्त को देशभक्ती का यही इनाम मिला कि वह गुमनामी और बदहाली की जिंदगी जी रहा है।