Gorakhupar Tragedy: जानिए क्या है वो खौफनाक बीमारी, जिसने निगल ली कई मासूमों की जान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Aug, 2017 02:31 PM

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गोरखपुर के बीआरडी कॉलेज में बीते दिनों अॉक्सीजन की कमी गरीबों के बच्चों की जान का सबब बन गई। जिसमें इंसेफ्लाइटिस से ग्रसित 64 बच्चों ने तड़प-तड़प कर अपना दम तोड़ दिया। लेकिन....

गोरखपुरः गोरखपुर के बीआरडी कॉलेज में बीते दिनों अॉक्सीजन की कमी गरीबों के बच्चों की जान का सबब बन गई। जिसमें इंसेफ्लाइटिस से ग्रसित 64 बच्चों ने तड़प-तड़प कर अपना दम तोड़ दिया। लेकिन बात गोरखुपर तक ही सीमित नहीं है, इस बीमारी के चलते कई राज्य में मरने वालों का सिलसिला दर-ब-दर जारी है। आइए इस जानलेवा बीमारी से आपको भी रुबरु करवाते है।

जानिए क्या है इस खौफनाक बीमारी का सच
दरअसल इंसेफ्लाइटिस यानि मस्तिष्क ज्वर नामक बीमारी का जन्म 1977 में हुआ था। जिसे जापानी बुखार भी कहा जाता है। इस बीमारी में मस्तिष्क तथा मेस्र्रज्जु को ढंकने वाली सुरक्षात्मक झिल्लियों में सूजन हो जाती है। इस बीमारी से मरने वालों का सिलसिला आज भी थमा नहीं है।

बच्चे ही बनते है शिकार
बता दें कि पूर्वाचल के 7 जिले इस लाइलाज बीमारी से प्रभावित है। अगर सरकारी अंकड़ों पर नजर दौड़ाए तो हर साल करीब 4000 बच्चों की मौतें हो जाती हैं। ये एक ऐसी लाइलाज बीमारी है, जिसमें 30-40 फीसदी लोगों को ही बचाया जा सकता है। वहीं 30 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है, बाकि 20 फीसदी किसी न किसी तरह की शारीरिक दिव्यांगता का शिकार हो जाते हैं। इस बीमारी के शिकार ज्यादातर बच्चे ही होते हैं।

पूर्वांचल का पानी है दूषित 
वहीं एक निजी प्रेस वार्ता में गोरखपुर में इंसेफ्लाइटिस के उन्मूलन के लिए लड़ाई लड़ रहे डॉ. आरएन सिंह ने बताया कि अगर हम पिछले 10 साल के आंकड़ों पर गौर करें तो हर सरकार के कार्यकाल में बच्चों की मौतें लगभग उतनी ही रहीं है। इस बीमारी पर रोक न लग पाने के पीछे व्यवस्था की खामी तो है ही, साथ ही लोगों की सोच में बदलाव न आना भी है। यह गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के बच्चों में ज्यादा पाई जाती है। जागरूकता नहीं है, पूर्वांचल का पानी भी दूषित है। जिस वजह से ज्यादा बच्चे चपेट में आ रहे हैं। आरएन सिंह कहते है कि चूंकि इसमें गरीबों के बच्चे मरते हैं, इसलिए सरकारों का इस ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता। डेंगू और स्वाइन फ्लू से जहाजों में चलने वालों के बच्चे जब चपेट में आते हैं, तो हाय तौबा मच जाती है।

क्या हैं बीमारी के लक्षण?
इस बीमारी में रोगी को सिर दर्द के होता है वह बुखार होता है। इसके अलावा इसका कोई प्रत्यक्ष लक्षण नहीं होता। कुछ छोटे बच्चों में गर्दन में अकड़न, कंपकंपी, शरीर में ऐंठन जैसे लक्षण होते हैं।

इस तरह करें बचाव
इस बीमारी का वाहक मच्छर होता है इसलिए ज़रूरी यही है कि मच्छरों से बचाव किया जाए। जिसके लिए घर में मच्छर और कीटनाशकों का छिड़काव करें। वहीं घर से बाहर निकलते वक्त खुद को ढक कर निकलें। सोते समय मच्छरदानी लगाएं। घर के आस-पास पानी का जमाव न होने दें। इसके साथ एंफेलाइटिस से बचाव के लिए वैक्सीन लगवाएं।

गौरतलब है कि पूर्वांचल में कोहराम बचाने वाली इस बीमारी से हर साल हजारों बच्चों की जान लेती है। इसने न जाने कितनी माताओं की गोद सूनी की है, लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि अखिर कब रुकेगा इन गरीब बच्चों के मौतों का सिलसिला?

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