गद्दल पूर्णिमा से शुरू होगी दाऊ जी मन्दिर विगृहों की शीतकालीन सेवा, जानें क्या है मान्यता

Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 29 Dec, 2020 06:02 PM

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ब्रज के मशहूर दाऊ जी मन्दिर के विगृहों की विधिवत शीतकालीन सेवा मन्दिर के 438 वें पाटोत्सव पर गद्दल पूर्णिमा से शुरू हो रही है। इस बार गद्दल पूर्णिमा 30 दिसम्बर को है। मन्दिर के इतिहास के अनुसार...

मथुरा:  ब्रज के मशहूर दाऊ जी मन्दिर के विगृहों की विधिवत शीतकालीन सेवा मन्दिर के 438 वें पाटोत्सव पर गद्दल पूर्णिमा से शुरू हो रही है। इस बार गद्दल पूर्णिमा 30 दिसम्बर को है। मन्दिर के इतिहास के अनुसार इसी दिन मन्दिर के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा चौक में स्थित प्राचीन मन्दिर से वर्तमान मन्दिर में हुई थी। इस मन्दिर के विगृह न केवल स्वयं प्राकट्य हैं बल्कि ब्रज के मन्दिरों में सबसे अधिक विशालकाय हैं। जहां बलराम का विगृह आठ फुट ऊंचा है वहीं रेवती मइया का विगृह पांच फुट ऊंचा है। ये विगृह इतने अधिक प्रभावी हैं कि जिस किसी ने इसे मात्र पत्थर की मूर्ति समझा, उसे ही दाऊ जी महाराज ने चमत्कार दिखा दिया।

जुड़ी है सुंदर कथा
मन्दिर के सेवायत गोविन्द पाण्डे ने बताया कि जब कल्याण देवाचार्य के तप से दाऊ जी महाराज प्रकट हुए और उन्हे पूर्व में निर्देश दिया कि भूमिगत उनके विगृहों को बाहर निकाले तो उसी रात इन विगृहों के भूमिगत होने का स्वप्न महाप्रभु बल्लभाचार्य के पौत्र गोकुलनाथ को भी हुआ था जिसमें न केवल विगृहों के बारे में उन्हें पता चला बल्कि एक अनबुझी पहेली का भी खुलासा हो गया । उन्होंने बताया कि गोस्वामी गोकुलनाथ को स्वप्न हुआ कि जिस श्यामा गाय के दूध की चोरी की ग्वाले द्वारा करने की वे सोंच रहे हैं,वह वास्तव में निर्दोष है तथा वह गाय वास्तव में उन्हें दूध अर्पित करने आती है। सत्यता जानने के लिए उन्होंने उस स्थल पर जाने का निश्चय किया। वे जब वहां पहुंचे तब तक कल्याण देव जी विगृहों को निकाल चुके थे। एक दूसरे के प्रति अभिवादन करने के बाद दोनो ने अपने स्वप्न और अनुभव सुनाए। जिस स्थान पर विगृह प्रकट हुए थे वह चूंकि निर्जन स्थान था इसलिए दोनो ने विगृह को गोकुल में प्रतिस्थापित करने का निश्चय किया मगर ठाकुर जी तो वहीं रहना चाहते थे इसलिए सारे प्रयास किये गए लेकिन विगृह जब वहां सें नही हटे तो दोनो ने निश्चय किया कि विगृह जहां से निकले हैं वहीं इन्हे स्थापित कर दिया जाय तथा पहली बार दोनो विगृह वही प्रतिस्थापित कर दिए गए,जहां कल्याण देव तपस्या करते थे। इससे कल्याण देव को ठाकुर का नित्य घर में निवास करने का दिया गया वरदान सफल हुआ।     

अभिषेक में होता है केसर युक्त गर्म पानी का प्रयोग
गोविन्द पाण्डे ने बताया कि गद्दल पूर्णिमा से ठाकुर के अभिषेक में केसर युक्त गर्म पानी का प्रयोग किया जाता है तथा वैदिक मंत्रों के मध्य विशेष अभिषेक होता है। शयन कक्ष में फर्श पर भी गद्दे बिछा दिए जाते हैं उनके ऊपर चांदी के दो पलंग डाले जाते हैं तथा पलंग पर मखमली रजाई , गद्दे और कोट आदि से शैया तैयार की जाती हैं। उन्होंने बताया कि गद्दल पूर्णिमा से ठाकुर के भोग, खीर और बासौंधी में भी केशर का अधिक प्रयोग किया जाता है तथा ठाकुर को केशर आदि का ऐसा इत्र लगाते है तो गर्म होता है। सुबह शाम अंगीठी सेवा होती है। ब्रज का यही एक मात्र मन्दिर है जहां पर ठाकुर को भांग का भोग नित्य लगाया जाता है।

उत्तर भारत के विशाल मेलों में होती है दाऊजी मेले की गिनती
उन्होंने बताया कि जाड़े में पिस्ता, काजू, बादाम और केसर का मिश्रण कर दिया जाता है । भाव यह है कि अब ठाकुर की शीतकालीन सेवा शुरू हो गई है इसलिए ठाकुर के भोग में अधिक से अधिक गर्म पदार्थों का उपयोग किया जाना चाहिए। दाऊ जी मन्दिर के रिसीवर राम कठोर पाण्डे ने बताया कि कोविड-19 कारण इस बार पाटोत्सव पर मन्दिर से निकलने वाली शोभायात्रा को स्थगित कर दिया गया है। इसके साथ ही मन्दिर में शाम को होनेवाले सांस्कृतिक कार्यक्रम को भी इस बार रद्द कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि गद्दल पूर्णिमा से एक महीने तक दाऊजी का विशाल मेला लगता है जिसकी गिनती उत्तर भारत के विशाल मेलों में होती है।

 

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