75825 ट्रेनी टीचरों को बड़ा झटकाः हाईकोर्ट ने एकल जज के आदेश को किया रद्द, अधर में लटकी काउंसलिंग

Edited By Ajay kumar,Updated: 17 Apr, 2024 04:52 PM

big blow to 75825 trainee teachers

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को पारित एक निर्णय में 30 नवंबर 2011 को जूनियर बेसिक स्कूलों में 75 हजार 825 ट्रेनी टीचरों की भर्ती के लिए जारी विज्ञापन में से उच्चतम न्यायालय द्वारा बनाई 12,091 श्रेणी के बचे अभ्यर्थियों को बुलाकर फिर से काउंसलिंग...

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को पारित एक निर्णय में 30 नवंबर 2011 को जूनियर बेसिक स्कूलों में 75 हजार 825 ट्रेनी टीचरों की भर्ती के लिए जारी विज्ञापन में से उच्चतम न्यायालय द्वारा बनाई 12,091 श्रेणी के बचे अभ्यर्थियों को बुलाकर फिर से काउंसलिंग कराने के एकल जज के आदेश को सही नहीं माना। अदालत ने एकल जज के आदेश के खिलाफ प्रदेश सरकार व बेसिक शिक्षा बोर्ड की विशेष अपील को मंजूर कर एकल जज के आदेश को रद्द कर दिया है।

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13 वर्ष बाद इस प्रकार से काउंसलिंग कराने का आदेश नहीं दिया जा सकता
कोर्ट ने कहा है कि 13 वर्ष बाद इस प्रकार से काउंसलिंग कराने का आदेश नहीं दिया जा सकता है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ट्रेनी टीचरों की भर्ती प्रक्रिया को सही ठहराया है। उक्त दोनों विशेष अपीलों पर जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा एवं जस्टिस एस क्यू एच रिजवी की खंडपीठ ने कई दिनों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। हाईकोर्ट की विशेष अपील बेंच ने आज इन अपीलों पर फैसला देते हुए सरकार की विशेष अपील मंजूर कर ली।

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काउंसिलिंग कराने का एकल जज द्वारा निर्देश दिया जाना गैरकानूनीः अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता यूपी सरकार
प्रदेश सरकार की तरफ से अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता रामानंद पांडेय तथा बेसिक शिक्षा बोर्ड की तरफ से कुष्मांडा शाही ने एकल जज के आदेश के खिलाफ विशेष अपील की थी। इन अपीलों में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई 2017 एवं बाद में इस मामले में अभ्यर्थियों द्वारा दाखिल अवमानना केस में 13 दिसंबर 2019 को सरकार द्वारा ट्रेनी टीचरों की सम्पन्न की गई भर्ती को सही मानते हुए अवमानना का केस खत्म कर दिया था। ऐसे में 2011 की भर्ती को लेकर फिर से शेष बचे अभ्यर्थियों की काउंसिलिंग कराने का एकल जज द्वारा निर्देश दिया जाना गैरकानूनी है। वहीं दूसरी तरफ अभ्यर्थियों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे, एच एन सिंह, अनिल तिवारी आदि का कहना था कि एकल जज द्वारा पारित आदेश में कोई त्रुटि नहीं है।

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