पंजीकरण न होने से मजदूरों को नहीं मिल पा रहा सरकारी योजनाओं का लाभ

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 12 Jun, 2019 04:14 PM

benefits of government schemes

केंद्र और प्रदेश सरकार गरीब लोगों और मजदूरों के हित के लिए जो योजनाएं चला रही है उन योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल पर रहा है। उत्तर प्रदेश के हमीपुर जिले में गांवों में मनरेगा व अन्य ठेकेदारों के मजदूरों का पंजीयन श्रम प्रवर्तन विभाग मे न...

 

हमीरपुरः केंद्र और प्रदेश सरकार गरीब लोगों और मजदूरों के हित के लिए जो योजनाएं चला रही है उन योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल पर रहा है। उत्तर प्रदेश के हमीपुर जिले में गांवों में मनरेगा व अन्य ठेकेदारों के मजदूरों का पंजीयन श्रम प्रवर्तन विभाग मे न कराने से ऐसा ही कुछ इस क्षेत्र के मजदूरों के साथ हो रहा है।

जिला श्रम प्रवर्तन अधिकारी अरुण कुमार तिवारी ने बुधवार को बताया कि जिले में तीस हजार मजदूर पंजीकृत है जिन्हे शासन से संचालित योजनाओं का लाभ मिल रहा है । ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरो में जागरुकता न होने व ग्राम विकास अधिकारी द्वारा मजदूरों को 90 दिन का प्रमाण पत्र न देने के कारण हजारों मजदूरों का विभाग में पंजीकरण नही हो पा रहा है । शासन के आदेश है कि वही मजदूर पंजीकृत हो पायेगा जिसके पास मनरेगा से 90 दिनके काम का प्रमाण पत्र होगा। श्रम प्रवर्तन अधिकारी मजदूरो की बस्ती या अड्डे में जाकर एक शपथ पत्र लेकर उनका पंजीकरण कर लेते है। यदि कोई मजदूर सीधे विभाग में नामांकन कराने आता है तो उससे ग्राम विकास अधिकारी व बीडीओ से प्रमाण पत्र लेना होता है।

मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी मात्र 182 रुपये मिलती है जब कि ठेकेदारी में काम करने पर एक मजदूर को 350 रुपये व राजमिस्त्री को 550 रुपये मिलते है यही कारण है कि बुन्देलखंड में गरीब तबके का मजदूर गैर प्रांत में बच्चो व बूढे मां बाप को छोड़कर चला जाता है लेकिन काम पूरा कर घर वापस लौटने पर उसे परिवार पूरी तरह से अस्त व्यस्त मिलता है।

तिवारी का कहना है कि ठेकेदारी प्रथा में काम करने वाले मजदूरो को यदि ठेकेदार भी लिखकर दे देता है कि संबंधित मजदूर ने उसके यहां 90 दिन तक काम किया है तो उसे पंजीकृत कर लिया जाता है। शासन के सख्त आदेश है कि निजी प्रतिष्ठान में जो मजदूर काम करते है उनको कम से कम आठ हजार रुपये मासिक मेहताना मिलना चाहिये मगर जिले में एक मजदूर को केवल तीन हजार रुपये मासिक देकर उससे बारह घंटे तक काम लिया जाताहै। इस मामले का अभियान चलाकर प्रतिष्ठान के मालिक को पूरी मजदूरी देने का दबाव बनाया जायेगा ताकि मजदूर का शोषण न हो सके।

श्रम प्रवर्तन अधिकारी ने बताया कि पहले शासन बाल श्रमिक मजदूर की उम्र 14 सात तक मान्य करता था मगर अब इसकी उम्र बढ़ाकर 18 साल कर दी है। 18 साल तक का बालक बाल श्रमिक के अन्तर्गत आता है। शीघ्र ही प्रायवेट प्रतिष्ठानों में जांच कर इस मामले मे कार्यवाही की जायेगी। विभाग में चार श्रम निरीक्षक के पद है मगर यहा पर केवल एक ही निरीक्षक नियुक्त है जिससे विभाग का सारा काम काज बाधित रहता है।

मनरेगा के उपश्रमायुक्त भूषण कुमार का कहना है कि 90 दिन तक काम करने वाले मजदूरों की संख्या जिले में तीन हजार के करीब है जब कि सौ दिन तक काम करने वाले मजदूरो की संख्या करीब एक हजार है, उनका दावा है कि समय समय पर अभियान चलाकर मजदूरो का पंजीकरण कराया जाता है। मगर गैर जिले में प्रायवेट अधिष्ठानों में काम करने पर मजदूर को ज्यादा पैसा प्राप्त होता है इसलिये वे गैर प्रांत को जाते है इधर मनरेगा में सब कुछ नियम कानून से होता है इसलिये कई मजदूर बीच में ही काम छोड़ कर चले जाते है। जो जागरुक मजदूर होते है वे योजनाओं का लाभ ले लेते है।

 

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