Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Nov, 2017 01:14 PM
आज हम आपको यूपी के एक एेसे जिले की अधूरी वास्तविक्ता से परिचित करवाना चाहते है, जिसने सूबे को 4-4 कैबिनेट मंत्री तो दिए लेकिन विकास के क्षेत्र में अधूरा ही रह गया। दरअसल हमारी बात का पूरा का पूरा तात्पर्य बलिया जिले से है, जहां बीते सोमवार को मौजूदा...
बलिया (आशीष पाण्डेय): आज हम आपको यूपी के एक एेसे जिले की अधूरी वास्तविक्ता से परिचित करवाना चाहते है, जिसने देश को प्रधानमंत्री और सूबे को 4-4 कैबिनेट मंत्री तो दिए लेकिन विकास के क्षेत्र में अधूरा ही रह गया। दरअसल हमारी बात का पूरा का पूरा तात्पर्य बलिया जिले से है, जहां बीते सोमवार को मौजूदा सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह कहा था कि बीजपी को जीत दिलाकर ही विकास का रास्ता खुलेगा। उल्लेखनीय है कि आजकल यूपी में नगर निकाय चुनाव के मद्देनजर सत्तारूढ़ से लेकर विपक्ष सब ताबड़तोड़ रैलियां कर प्रदेश की 22 करोड़ जनता से सर्मथन मांग रहे है।
आइए हम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बात पर आते है, जिन्होंने यह तो कह दिया कि विकास के लिए बीजेपी को वोट दें, लेकिन उनके इस बयान का यह अर्थ निकाला जाए कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो निगम क्षेत्रों में विकास कार्य कराने की जिम्मेदारी सीएम की नहीं होगी।
पिछले 30 वर्षों से विकास की आस में बलिया
बलिया की हकीकत यही है कि पिछले 30 वर्षों में विकास के नाम पर केवल एक ओवर ब्रिज ही यहां बन सका है। इससे भी कुछ खास फायदा नहीं हुआ। प्रदेश की सपा व बसपा सरकार में हमेशा ही इस जिले से 2 या 3 मंत्री रहे परन्तु सभी स्वहित साधने में अधिक व्यस्त दिखे। पिछले 4 दशकों से बलिया में अरबों की परियोजनाओं का लोकार्पण तो हुआ, लेकिन इन योजनाओं ने कभी मूर्त रूप नहीं लिया। खस्ता हाल सड़क, आंख मिचौली करती बिजली और खुद बीमार हो चुके यहां के अस्पताल। हमारे कहने का अर्थ यह भी नहीं कि सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए तत्कालीन सरकारों ने धन नहीं दिया। धन तो आबंटित हुआ, लेकिन वो कितना, कैसे और कहां खर्च हुआ, यह जांच का विषय हो सकता है। जांच होने पर विकास के लिए आबंटित धन का बंदरबाट सामने आ जाएगा और वो चेहरे भी सामने होंगे जो इस जघन्य अपराध के दोषी हैं। सूबे में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार के 8 महीनों के कार्यकाल के दौरान इन समस्याओं को सुधार पर ध्यान दिया गया है। बावजूद इसके इन समस्याओं का मकड़जाल इतना मजबूत है कि योगी सरकार को इस ओर काफी उर्जा खर्च करनी पड़ेगी।
दाढ़ी बाबा तक ही बनी रही पहचान
बाहर रहने वालों के लिए बलिया की पहचान बताने का माध्यम केवल एक ही है और वो हैं चंद्रशेखर। बलिया के लोग प्यार से उन्हें दाढ़ी बाबा भी कहकर बुलाते हैं। विश्व के फलक पर बलिया का नाम शायद 3 वजहों से लिया जाता है। पहला चंद्रशेखर जी जब प्रधानमंत्री बने। दूसरी बार तब, जब एक लड़के ने यह कहकर सबकों चौंका दिया कि उसने नासा द्वारा ली गई परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया है, जबकि इसी परीक्षा में वैज्ञानिक अब्दूल कलाम को दूसरा और कल्पना चावला को 6वां स्थान मिला था। इस खबर ने देश विदेश की मीडिया व वैज्ञानिकों को बलिया की तरफ रूख करने को मजबूर कर दिया। हालांकि एक महीने की नौंटकी के बाद यह साफ हो गया कि लड़के ने झूठ बोला था, हद तो यह हो गई थी कि खुद अब्दूल कलाम व नासा को इसका खंडन करना पड़ा था। तीसरी बार बलिया का नाम तब आया जब देश में निर्भया कांड हुआ। दिल्ली में जिस लड़की के साथ गैंगरेप हुआ था वो बलिया की थी। इस कांड ने भी देश-विदेश तक बलिया का नाम लिया जाने लगा था। इन तीन के बाद शायद ही कोई बड़ा कारनामा हुआ हो जिससे बलिया का नाम सुर्खियों में आया हो।
स्वार्थ सिद्धि बनी विकास की अड़चन
यह कहना गलत नहीं होगा कि केंद्र व प्रदेश के राजनीतिक गलियारे में बलिया की धमक हमेशा मजबूत ही रही है। प्रदेश की राजनीति में बलिया का स्थान हमेशा उच्च पर रहा है। एक समय तो ऐसा था कि सूबे के 4 कैबिनेट मंत्री बलिया के थे। अंबिका चौधरी, राम गोविंद चौधरी, नारद राय, को हमेशा मंत्री पद प्राप्त हुआ है। इसके बावजूद स्वहित साधने और अपना विकास करने चक्कर में जनप्रतिनिधियों ने बलिया को पीछे करने का काम ही किया। शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क की समस्या यहां पर हमेशा बनी रहती है। रोजगार सृजन तो यहां दूर की कौड़ी है। दल-बदल कर नेता एक दूसरे की गलबहियां थामे हमेशा अपना ही स्वार्थ सिद्व करने में लगे रहे।