Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Jan, 2018 09:00 AM
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे अयोध्या प्रसाद पाल के विरूद्ध राज्य सरकार के एक सप्ताह के भीतर प्राथमिकी दर्ज कराने के आश्वासन के बाद इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।
इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे अयोध्या प्रसाद पाल के विरूद्ध राज्य सरकार के एक सप्ताह के भीतर प्राथमिकी दर्ज कराने के आश्वासन के बाद इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। मंत्री अयोध्या प्रसाद पाल पर फतेहपुर और अन्य जिलों में 23 करोड़ रूपए की सरकारी जमीन हड़पने का आरोप है। याचिका में लोकायुक्त तथा विजिलेंस जांच के बावजूद कोई कार्रवाई न करने पर मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई थी।
न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने स्वयं ही कदम उठाए हैं ऐसे में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले तथा न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने धर्मेन्द्र की जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया। राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता एम.सी चतुर्वेदी एवं अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता शशांक शेखर सिंह ने न्यायालय को बताया कि मामले की विजिलेंस जांच पूरी हो चुकी है और राज्य सरकार अगले एक हफ्ते के भीतर एफआईआर दर्ज कराने जा रही है।
याची अधिवक्ता ए.के बाजपेयी का कहना था कि बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे पाल ने सपा ज्वाइन कर लिया था। जिसके चलते लोकायुक्त की रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की गई और विजिलेंस जांच बैठा दी गई। विजिलेंस जांच होने के बावजूद सरकार करोड़ों के घोटाले पर कार्रवाई करने से कतरा रही है। सीबीआई जांच से ही दोषी पर कार्रवाई हो सकती है।
सरकार का कहना था कि लोकायुक्त की जांच को लेकर लखनऊ पीठ में याचिका विचाराधीन है लेकिन इसके बाद हुई विजिलेंस जांच में घपले के आरोपों की पुष्टि हुई है। सरकार नियमित प्राथमिकी दर्ज कर कानूनी कार्रवाई करेगी। राज्य सरकार द्वारा स्वयं कदम उठाने के कारण न्यायालय ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।