Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Dec, 2017 03:53 PM
यूपी में सत्तारूढ़ दल के रूप में यह साल शुरू करने वाली सपा के लिए वर्ष 2017 अर्श से फर्श पर लाने वाला साबित हुआ। इस साल ना सिर्फ उसे अंदरूनी कलह का सामना करना पड़ा, बल्कि विधानसभा चुनाव में करारी हार रूपी कीमत चुकाते हुए उसे सत्ता से बाहर भी होना...
लखनऊ: यूपी में सत्तारूढ़ दल के रूप में यह साल शुरू करने वाली सपा के लिए वर्ष 2017 अर्श से फर्श पर लाने वाला साबित हुआ। इस साल ना सिर्फ उसे अंदरूनी कलह का सामना करना पड़ा, बल्कि विधानसभा चुनाव में करारी हार रूपी कीमत चुकाते हुए उसे सत्ता से बाहर भी होना पड़ा।
जानकारी के अनुसार 1 जनवरी को हुए सपा के राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव के स्थान पर दल का अध्यक्ष चुना गया। सत्ता और संगठन पर कब्जे को लेकर अखिलेश और शिवपाल के बीच रस्साकशी ऐसे वक्त शुरू हुई जब प्रदेश के विधानसभा चुनाव बिल्कुल नजदीक आ चुके थे। अखिलेश और मुलायम ने पार्टी तथा उसके चुनाव निशान साइकिल पर अपना-अपना दावा पेश किया और यह लड़ाई चुनाव आयोग तक पहुंची। हालांकि यह लड़ाई अखिलेश ने जीती।
सपा की अंदरूनी तनातनी की पार्टी को बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी। मार्च में आए विधानसभा चुनाव के नतीजों में पार्टी अर्श से फर्श पर जा पहुंची। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में 403 में से 224 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली सपा इस साल के चुनाव में महज 47 सीटें पा सकी। सपा ने मुलायम की मर्जी के बगैर कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 403 में से 298 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। हालांकि, इस करारी पराजय के बावजूद सपा पर अखिलेश का वर्चस्व कम नहीं हुआ और कभी मुलायम के वफादार रहे ज्यादातर वरिष्ठ नेता अखिलेश के साथ खड़े नजर आए। सपा में हाशिए पर पहुंचे शिवपाल ने अपनी अलग राह बनाने के लिए मुलायम की अगुवाई में समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने का एलान किया।
गत 5 अक्तूबर को आगरा में हुए पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश को लगातार दूसरी बार सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। इसके बाद वक्त ने करवट ली और मुलायम तथा अखिलेश के रिश्तों में फिर से पुरानी गर्माहट आती दिखी। मुलायम ने 79वां जन्मदिन पिछली 23 नवम्बर को सपा के राज्य मुख्यालय में ही मनाया। नगर निकाय चुनाव के बीच हुए इस समारोह में मुलायम और अखिलेश अर्से बाद एक साथ नजर आए। राज्य में महापौर की 16 सीटों में से एक पर भी सपा नहीं जीत सकी। वर्ष 2012 के चुनाव में भी उसका खाता नहीं खुला था।