ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की ‘लाइफलाइन’ बनी एंबुलेंस सेवा

Edited By ,Updated: 11 May, 2016 04:44 PM

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उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों खासकर ग्रामीण इलाकों की ‘लाइफलाइन’ बन चुकी एंबुलेंस सेवा से अब तक डेढ़ करोड़ लोग फायदा उठा चुके हैं।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों खासकर ग्रामीण इलाकों की ‘लाइफलाइन’ बन चुकी एंबुलेंस सेवा से अब तक डेढ़ करोड़ लोग फायदा उठा चुके हैं। सरकार ने इस सेवा को अधिक प्रभावी बनाने के लिये जल्द ही प्रदेश के सभी जिलों को मोबाइल एप्लीकेशन से जोडऩे की योजना बनायी है। प्रदेश में 108 एंबुलेंस सेवा (समाजवादी स्वास्थ्य सेवा) और 102 एंबुलेंस सेवा (नेशनल एंबुलेंस सर्विस) का संचालन करने वाली संस्था जीवीके ईएमआरआई के मुख्य परिचालन अधिकारी संजय खोसला ने आज यहां संवाददाताआें को बताया कि सूबे में 102 एंबुलेंस सेवा से अब तक एक करोड़ एक लाख 70 हजार 819 लोगों तथा 108 एंबुलेंस सेवा से अब तक 57 लाख 62 हजार 455 लोगों को मदद पहुंचायी गयी है। ये दोनों ही सेवाएं जनता की सेवा के लिए 24 घंटे मुफ्त उपलब्ध हैंं। 

 
उन्होंने बताया कि देश के 17 राज्यों में सेवा दे रही दुनिया की अपनी तरह की सबसे बड़ी सेवा प्रदाता संस्था जीवीके ईएमआरआई के बेडे में कुल 11 हजार एंबुलेंस हैं, जो औसतन रोजाना 25 हजार आपात मामलों के लिए सेवायें देती है। अब तक चार करोड़ 60 लाख कॉल्स पर मदद भेजी गयी है। इस दौरान 17 लाख 50 हजार जिंदगियां बचायी गयी हैं और चार लाख 70 हजार प्रसव कराये गये हैं। खोसला ने बताया कि प्रदेश में 108 सेवा के लिये 1,488 और 102 सेवा के लिये 2,268 वाहन इस्तेमाल किये जा रहे हैं। एंबुलेंस की उपलब्धता को और बेहतर करने के लिये उन्हें मोबाइल एप्लीकेशन से जोड़ा गया है। अभी यह प्रणाली सूबे के 55 जिलों में लागू है। अगले महीने से इसे सभी 75 जिलों में लागू कर दिया जाएगा। 
 
खोसला ने बताया कि हालांकि उन्हें सरकार की तरफ से पूरा सहयोग मिल रहा है लेकिन उनके सामने कई चुनौतियां हैं। इनमें खराब सड़कें, प्रदेश के विभिन्न हिस्सों की बोलियों से तालमेल बैठाना, सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाआें की कमी और कुछ मामलों में मरीजों के तीमारदारों द्वारा एंबुलेंस सेवा कर्मियों के साथ हिंसा जैसी समस्याएं शामिल हैं। उन्होंने बताया कि फर्जी काल्स भी एक बड़ी समस्या हैं। 108 एंबुलेंस सेवा में रोजाना औसतन 39 हजार 684 काल्स आती है जिनमें से 23 हजार 685 यानी करीब 60 प्रतिशत काल्स अनुपयुक्त होती हैं। इसके अलावा 102 एबुलेंस सेवा में भी रोजाना औसतन करीब 57 प्रतिशत कॉल्स अनुपयुक्त होती हैं। खोसला ने बताया कि इन तमाम चुनौतियों के बावजूद एंबुलेंस के मौके पर पहुंचने के औसत समय में काफी सुधार आया है। पिछले साल जहां यह समय 25 मिनट 59 सेकेंड का था, वह अब घटकर 22 मिनट 58 सेकेंड हो गया है। उन्होंने बताया कि वैसे तो दोनों ही एंबुलेंस सेवाआें का अच्छा खासा प्रचार किया गया है लेकिन अब प्रदेश के 611 गांव एेसे हैं, जहां से एंबुलेंस सेवा लेने के लिये इक्का-दुक्का कॉल ही आती हैं। कंपनी इस स्थिति को सुधारने की दिशा में काम कर रही है। 

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