अपमानजनक टिप्पणी का उद्देश्य हमेशा उकसाना नहीं होता, ऐसा लापरवाही से की जा सकती हैं: हाईकोर्ट

Edited By Ajay kumar,Updated: 13 Jan, 2024 07:56 AM

the purpose of derogatory remarks is not always to provoke high court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सार्वजनिक स्थान पर किसी व्यक्ति को पागल कह कर संबोधित करने के मामले में कहा कि लापरवाही से दिया गया बयान अनुचित और असभ्य हो सकता है लेकिन इसके लिए आईपीसी की धारा 504 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सार्वजनिक स्थान पर किसी व्यक्ति को पागल कह कर संबोधित करने के मामले में कहा कि लापरवाही से दिया गया बयान अनुचित और असभ्य हो सकता है लेकिन इसके लिए आईपीसी की धारा 504 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

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इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि अनौपचारिक माहौल में ऐसी टिप्पणियां लापरवाही से की जा सकती हैं, यहां तक की आकस्मिक बातचीत का हिस्सा भी बन सकती हैं, लेकिन ऐसे संबोधन में जानबूझकर किसी को शांति भंग करने के लिए उकसाने के उद्देश्य नहीं हो सकते है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की एकल पीठ ने याची संगीता जे के की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया है।

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मामले के अनुसार अधिवक्ता (शिकायतकर्ता) दशरथ कुमार दीक्षित ने जिला मजिस्ट्रेट, वाराणसी के समक्ष याची और 10 अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 500 के तहत शिकायत दर्ज की और आरोप लगाया कि याची ने उसे पागल व्यक्ति कहकर संबोधित किया है। जिसके बाद याची के खिलाफ जिला अदालत, वाराणसी द्वारा सम्मन आदेश जारी किया गया जिसे याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट के समक्ष याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता ने अपने बयान में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया जिसे आईपीसी की धारा 504 के तहत अपराध माना जा सके, क्योंकि वास्तव में मौजूदा मामले में जानबूझकर अपमान करने का कोई उद्देश्य नहीं था। अंत में कोर्ट ने सभी तर्कों पर विचार करते हुए निष्कर्ष निकला की याची के खिलाफ एकमात्र आरोप है कि बैठक में भाग लेने वाले कई अन्य लोगों के सामने उसने शिकायतकर्ता को पागल कहा। अतः कोर्ट ने आक्षेपित आदेश को रद दिया।

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