Edited By Ajay kumar,Updated: 03 Mar, 2024 04:02 PM
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिला और उसके हिंदू लिव-इन पार्टनर की याचिका पर विचार करते हुए कहा कि कानूनी रूप से विवाहित मुस्लिम महिला किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकती है।
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिला और उसके हिंदू लिव-इन पार्टनर की याचिका पर विचार करते हुए कहा कि कानूनी रूप से विवाहित मुस्लिम महिला किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकती है। अन्य पुरुष के साथ उसका ऐसा संबंध शरीयत कानून के अनुसार जिना और हराम होगा। उक्त आदेश न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल की एकल पीठ ने सालेहा और अन्य द्वारा अपने पिता तथा अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज करते हुए पारित किया है।
विवाहित मुस्लिम महिला कानूनी रूप से दूसरा विवाह नहीं कर सकती है।
कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि महिला के अपराधी कृत्य को कोर्ट द्वारा समर्थन और संरक्षण नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट ने महिला के लिव-इन रिलेशनशिप पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मुस्लिम कानून (शरीयत) के प्रावधानों का उल्लंघन करके महिला अपने साथी के साथ रह रही है। शरीयत के अनुसार विवाहित मुस्लिम महिला कानूनी रूप से दूसरा विवाह नहीं कर सकती है। अगर वह ऐसा करती है तो उसके कृत्य को व्यभिचार (जिना) और अल्लाह द्वारा निषिद्ध कार्य (हराम) के रूप में परिभाषित किया जाता है। ऐसा करने पर याची के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, मुजफ्फरनगर के समक्ष अभ्यावेदन दिया
महिला ने अपने माता-पिता और उसके परिवारीजनों से अपनी और अपने साथी की जान को खतरा बताया था। महिला का विवाह मोहसिन नामक व्यक्ति से हुआ था, जिसने 2 साल पहले दोबारा शादी कर ली और वर्तमान में दूसरी पत्नी के साथ ही रह रहा है। इसके बाद महिला अपने पिता के घर में रहने लगी। पिता के दुर्व्यवहार के कारण वह हिंदू व्यक्ति के साथ लिव-इन में रहने लगी। इसके अलावा महिला ने धमांतरण अधिनियम का भी पालन नहीं किया है। याची ने पारिवारिक सदस्यों से जान का खतरा होने पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, मुजफ्फरनगर के समक्ष अभ्यावेदन दिया, जिस पर कोई सुनवाई नहीं हुई।