यूपी में कभी दहशत का पर्याय रहे डॉन बृजेश सिंह को 14 साल बाद रिहा!  36 साल बाद देखी सामान्य जिंदगी...पढ़ें पूरी खबर

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 05 Aug, 2022 12:39 PM

don brijesh singh who was once synonymous with terror in up

वाराणसी: उत्तर प्रदेश में कभी दहशत का पर्याय रहे डॉन बृजेश सिंह को 14 साल बाद रिहा कर दिया है। बता दें कि हाईकोर्ट ने मुख्तार अंसारी पर हमले के मामले में बुधवार को बृजेश सिंह को जमानत दे दी।

वाराणसी: उत्तर प्रदेश में कभी दहशत का पर्याय रहे डॉन बृजेश सिंह को 14 साल बाद रिहा कर दिया है। बता दें कि हाईकोर्ट ने मुख्तार अंसारी पर हमले के मामले में बुधवार को बृजेश सिंह को जमानत दे दी। कहने को तो अलग-अलग मुकदमे की सुनवाई के दौरान डॉन बृजेश सिंह 14 साल तक जेल में रहा, लेकिन अगर पीछे मुड़ कर देखा जाए तो बृजेश सिंह 36 साल से कानून के साए में कैद है। अब जाकर कहीं बृजेश सिंह की जिंदगी सामान्य हुई है।

बता दें कि बुधवार को हाईकोर्ट ने मुख्तार अंसारी पर हमले के मामले में बृजेश सिंह को जमानत दे दी है। अगले दिन गुरुवार की शाम को बृजेश सिंह जमानत पर रिहा होकर वाराणसी सेंट्रल जेल की चारदीवारी से बाहर निकला। जेल से बाहर आते ही डॉन बृजेश सिंह वाराणसी के सिद्धगिरीबाग स्थित अपने आवास रघुकुल भवन पहुंचा। वह अपने आलीशान घर में शायद पहली बार सामान्य जिंदगी से रूबरू हुआ। उसने देखा कि गेट के बाहर बड़ी सी नेम प्लेट पर बृजेश सिंह और उसकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह का नाम लिखा है। इन दोनों के नाम के साथ एमएलसी लिखा है। बृजेश सिंह के लंबे समय से जेल में रहने पर भी वाराणसी एमएलसी सीट पर उसके परिवार की बादशाहत लंबे समय से बरकरार है। उसकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह इस सीट से एमएलसी हैं। इससे पहले बृजेश सिंह और उससे पहले भी अन्नपूर्णा सिंह ही इस कुर्सी पर काबिज रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक, बृजेश सिंह की जिंदगी ने साल 1986 में करवट ले ली थी। उस समय चंदौली जिले का बलुआ इलाका वाराणसी में आता था। बलुआ के सिकरौरा गांव में 9 अप्रैल 1986 की रात पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या हो गई। बताया जाता है कि घटनास्थल से कुछ दूर पर बृजेश सिंह के पैर पर गोली लगने से वह घायल अवस्था में मिले थे। इसके बाद डॉन बृजेश सिंह गिरफ्तार हुआ और बाद में उसकी जमानत भी हो गई। बस यह आखिरी दिन था, जब शायद किसा ने बृजेश सिंह को देखा होगा, क्योंकि उसके बाद बृजेश सिंह का नाम सुना तो गया मगर देखा शायद किसी ने नहीं।

इसके बाद एक के बाद एक मुकदमे में वह घिरते ही चले गए। वहीं, 15 जुलाई 2001 में गाजीपुर के उसरी चट्टी गांव में मुख्तार अंसारी के काफिले पर हुए हमले में बृजेश सिंह का नाम आया, जिसमें उसे अब जाकर जमानत मिली है। इसके अलावा 2004 में ही लखनऊ के कैंट सदर थाना क्षेत्र के रेलवे क्रॉसिंग के पास मुख्तार अंसारी गिरोह से गैंगवार और गोलीबारी में बृजेश सिंह का नाम सुर्खियों में आया था। फिर 2008 में दिल्ली पुलिस नेकी स्पेशल सेल ने ओडिशा के भुवनेश्वर में अरुण कुमार सिंह बनकर छिपे बृजेश सिंह को गिरफ्तार किया। यह सब देख के कहा जा सकता है कि 1986 से 2022 तक बृजेश सिंह की जिंदगी 36 साल तक कानून के साए में कैद रही। 

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