बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है काशी विश्वनाथ मंदिर, सोने का छत्रप देखने से होती है हर मन्नत पूरी

Edited By ,Updated: 05 Apr, 2016 09:19 PM

kashi vishwanath temple is one of twelve jyotirlingas golden parasol is watching every fulfilled

काशी विश्वनाथ मंदिर बाबा भोले की नगरी काशी में स्थित है और यह मंदिर शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। आइए जानते हैं क्या है बाबा भोले के इस मंदिर की मान्यताएं....

वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर बाबा भोले की नगरी काशी में स्थित है और यह मंदिर शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। आइए जानते हैं क्या है बाबा भोले के इस मंदिर की मान्यताएं....

1. बाबा भोले के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है काशी विश्वनाथ का मंदिर।
2. मंदिर के ऊपर के लगे सोने के छत्र को लेकर यह कहा जाता है कि इसे देख कर जो भी मुराद मांगी जाती है वो बाबा विश्वनाथ पूरी करते हैं।
 
3. बाबा विश्वनाथ मंदिर में वास्तुकला का अद्भुत प्रयोग देखने को मिलता है। बाबा विश्वनाथ के मंदिर का जिर्णोद्धार रानी अहिल्या ने कराया था, जिसके बाद इंदौर के राजा रणजीत सिंह ने मंदिर पर सोने के छत्रप लगवाए। वहीं मंदिर के अंदर भगवान शिव का लिंग काले रंग के पत्थर का बना हुआ है, और साथ ही साथ दक्षिण दिशा की ओर 3 शिवलिंग हैं। जिन्हे मिलाकर नीलकंठेश्वर कहा जाता है।
 
4. बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए पूरी दुनिया से श्रद्धालु आते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं में विदेशियों की संख्या अधिक है। साथ ही यह मंदिर साल के 12 महीने खुला रहता है।
 
5. मंदिर में 5 प्रमुख आरतियां होती हैं। जिसमें मंगलाचरण सुबह-3 बजे, भोग सुबह-11:30 बजे, सप्त ऋषि आरती शाम-7 बजे, श्रृंगार/भोज आरती शाम -9 बजे, शयन आरती-शाम 10:30 बजे
 
5. काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास काफी उथल-पुथल रहा है। क्योंकि वेदों और उपनिषदों में काशी को संसार का सबसे पुराना शहर बताया जाता है। इतिहास में काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का समय 1490 बताया जाता है। जिसके बाद काशी में काफी राजाओं ने राज किया। साथ ही गंगा के किनारे बसा यह शहर कई घटनाओं का साक्षी है। मंदिर को मुगल शासक औरंगज़ेब ने तबाह कर दिया था, जिसके बाद बादशाह अकबर ने मंदिर का जिर्णोद्धार कराया।
 
6. मान्यता है कि सूरज की पहली किरण यहां पड़ती है। वेदों में ऐसी मान्यता है कि सूर्योदय के समय सबसे पहली किरण काशी की धरती पर पड़ती है। क्यों की भगवान शिव साल में कुछ समय कैलाश पर्वत छोड़कर काशी में बिताते हैं। साथ ही एक मान्यता ये भी है कि एक बार भगवान शिव की तलाश में यहां आए शनि देव मंदिर के बाहर साढ़े सात साल खड़े रहे। इसी कारण से आप देखेंगे की मंदिर के बाहर शनि देव का भी एक मंदिर है।

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