त्रिवेंद्र सिंह रावत के गुणों का कायल हूं, प्रदेश को जैसा चाहिए वैसा मिला सीएम- हरीश रावत

Edited By Nitika,Updated: 02 Jun, 2020 10:45 AM

पूरे देश में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा होने पर भाजपा जश्न के माहौल में है, इसी मुद्दे पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत ने पंजाब केसरी से खास बातचीत में सरकार के दावों और इरादों पर ही सवाल...

जालंधर, 1 जून: पूरे देश में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा होने पर भाजपा जश्न के माहौल में है, इसी मुद्दे पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत ने पंजाब केसरी से खास बातचीत में सरकार के दावों और इरादों पर ही सवाल उठा दिया। प्रवीण झा से बात करते हुए रावत ने कई अहम मुद्दों पर सरकार का ध्यान इंगित किया।

प्रश्नः मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के 2 साल को आप कैसे देखते हैं? 

उत्तरः इस सवाल के उत्तर पर रावत ने कहा कि हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या। करोड़ों प्रवासी भाई और बहनों को दुर्दशा झेलनी पड़ी है। आज भी सड़कें उनकी चितकारियों से गूंज रही हैं। प्रवासी मजदूर 2 दिन की जगह पर 5-6 दिन में पहुंच रहे हैं। अव्यवस्थित तरीके से उनको घर पहुंचाने का काम हुआ है।

प्रश्नः क्या केंद्र के साथ-साथ उस सरकार की भी जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह प्रवासियों को उनके राज्यों में पहुंचाए? 

उत्तरः रावत ने कहा कि यकीकन सबकी जिम्मेदारी बनती है। नागरिक के रूप में आपकी हमारी जिम्मेदारी बनती है, लेकिन किन कारणों से ऐसी स्थिति पैदा हुई है इसको जानना जरुरी होगा। हमारी पार्टी ने कहा कि न्यूनतम आय योजना के तहत उन मजदूरों को साढ़े 7 हजार रुपए दें ताकि वह जहां पर भी हैं वहां पर उनका गुजारा हो सके। चौथे चरण के बाद उन मजदूरों का सब्र टूट गया और वह सड़कों पर निकल पड़े।

प्रश्नः  क्या आप इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार मानते हैं, कि उन्होंने इतने कम समय में लॉकडाउन को लागू किया? 

उत्तरः जब मैं घर के मुखिया के तौर पर कोई फैसला लेता हूं और दूसरे लोग मेरे समर्थन में खड़े हैं और उसका पालन कर रहे हैं। इसके बाद उन सारी संभावनाओं को देखना पड़ता है जो मेरे उस फैसले से पैदा हुई। पहले तो उन समस्याओं को देखा नहीं और अगर देखा तो उसका निदान नहीं कर पाए।

प्रश्नः केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान किया है? 

उत्तरः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने उदारतापूर्वक पैकेज का ऐलान किया। यह पैसे किन-किन लोगों के हाथों में आया है। यह पैसा रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने वालों तक नहीं पहुंच पाया है। इसमें कर्ज देने की बात कही गई है। बैंक में कर्ज आसानी से मिलेगा नहीं और जब तक मिलेगा, तब तक बहुत समय बीत जाएगा।

प्रश्नः अगर आप सरकार में होते तो लोगों तक किस प्रकार मदद पहुंचाते?


उत्तरः  मैंने ऑटो रिक्शा वालों से बात की और कहा कि जो 1 हजार रुपए दे रहे हैं, उससे काम करो। इस पर उन्होंने कहा कि मेरा बीमा खत्म है। उसके लिए मुझे सहायता राशि चाहिए। अन्य सभी देशों ने नकद सहायता दी है।

प्रश्नः जो मजदूर वापस अपने राज्य में लौटे हैं, उनको रोजगार किस प्रकार से मुहैया करवाया जाए। क्या केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार की भी जवाबदेही नहीं बनती है?


उत्तरः केंद्र सरकार पॉलिसी बनाए और राज्य को पैसे दे दें। इसके बाद राज्य सुनिश्चित करे कि उन प्रवासियों को कैसे वापस लाना है। लॉकडाउन के 4 चरण गुजरने के बाद अब अनलॉक के समय राज्य सरकार को कह दिया। राज्य के पास संसाधन नहीं है, केंद्र के पास संसाधन है।

प्रश्न: त्रिवेंद्र रावत सरकार के 3 साल के कार्यकाल को आप कैसे देखते हैं ?

उत्तर: इस सवाल के जवाब पर रावत ने चुटकी लेते हुए कहा कि वो ‘ त्रिवेंद्र रावत काफी अच्छे व्यक्तित्व वाले हैं, उत्तराखंड को जैसा मुख्यमंत्री चाहिए वो वैसा ही हैं, मैं उनके गुणों का कायल हूं। कुछ करते ही नहीं हैं तो इसलिए कुछ कमियां दिखती ही नहीं हैं। सीएम त्रिवेंद्र कुछ करते ही नहीं हैं तो कमियां कहां मिलेंगी। वो न कुछ करते हैं न कुछ करते हैं। हिमालय की तरह शांत बैठे रहते हैं।

किसानों के मुद्दे पर रावत पर तंज कसते हुए हरीश ने कहा कि वो इतना कुछ किसानों के लिए कर रहे हैं कि किसी किसान ने इसका फायदा ही नहीं उठा रहा, सारे प्रदेश वासी देख और सुन कर मग्न हो जा रहे हैं, तीन साल हो गए हैं 2 साल और गुजर जाएगा।

प्रश्न: प्रवासी मजदूरों अपने घरों को लौट रहे हैं, उनके रोजगार के लिए राज्य और केंद्र सरकारों को क्या करना चाहिए ?
उत्तर : इस सवाल पर हरीश रावत ने कहा कि राज्य सरकारें सचेत हैं प्रवासी मजदूरों का सर्वे करा रही हैं, कि कितने मजदूर अपने कार्यस्थलों पर लौट सकते हैं। मेरा मानना है कि अगर मजदूर लौटेंगे नहीं तो देश कैसे चलेगा। कुछ प्रतिशत लोग अपने राज्यों में रह जाएंगे, क्यों कि उन्होंने अपमान झेला है। उन लोगों के लिए तात्कालिक काम मिल सके इसके लिए व्यवस्था करनी चाहिए। केवल मनरेगा से काम नहीं चलेगा। राज्यों को रोजगार पूरक खेती और दूसरी व्यवस्थाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा। स्किंल मैपिंग करके मजदूरों के हित में काम करना होगा।

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