Lok Sabha Elections: वेस्ट यूपी में ध्रुर्वीकरण ...जातीय समीकरण होगा प्रभावी, 19 अप्रैल डाले जाएंगे वोट

Edited By Ramkesh,Updated: 18 Mar, 2024 08:34 PM

will polarization affect west up or will caste equation be effective

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत में 19 अप्रैल को मतदान होगा। माना जा रहा है कि यहां से जो रूझान मिलेंगे उनका असर देश-प्रदेश में दूर तक महसूस किया...

सहारनपुर: लोकसभा चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत में 19 अप्रैल को मतदान होगा। माना जा रहा है कि यहां से जो रूझान मिलेंगे उनका असर देश-प्रदेश में दूर तक महसूस किया जाएगा। कयास लगाए जा रहे हैं कि रूझान 2014 जैसे रहते हैं या वेस्ट यूपी इस बार 2019 को दोहराएगा। नतीजों पर ध्रुर्वीकरण का असर होगा या जातीय समीकरण प्रभावी होंगे। मतदान से ठीक पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना पट्टी का यह इलाका समृद्धशाली लेकिन संवेदनशील है।

मुजफ्फरनगर  दंगे के बाद बदले समीकरण
 सहारनपुर मंडल जिसमें सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर की आधी लोकसभा सीट आती है। वहां के लोगों के जेहन में अभी भी 27 अगस्त 2013 को मुजफ्फरनगर में एक बेटी के साथ हुई छेड़छाड़ के मामले को लेकर हुए भीषण दंगे की टीस बनी हुई है, जिसमें दो जाट युवकों गौरव और सचिन एवं मुस्लिम युवक शाहनवाज की हत्या हो गई थी और उसके बाद उपजी हिंसा में 62 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। 

कैराना में पलायन का मुद्दा रहा हावी
कैराना का पलायन का मुद्दा लोकसभा के 2014, 2019 के चुनावों और 2017 और 2022 के विधान सभा चुनावों में अन्य मुद्दों पर भारी साबित हुआ। हालांकि इसके बाद गंगा-यमुना में काफी पानी बह चुका है लेकिन इन दोनों नदियों के बीच के इस क्षेत्र के लोग उस स्थिति में लौटना नहीं चाहते हैं। शामली के छोटे किसान रामसिंह सैनी और थानाभवन क्षेत्र की बागवानी करने वाली महिला रीना कश्यप कहती हैं कि किसानों को सम्मान निधि की राशि मिल रही है। करोड़ों गरीबों को नि:शुल्क खाद्यान्न मिल रहा हैं लेकिन सबसे बड़ी सहूलियत और सुकून सुरक्षा के बने माहौल से मिला है। स्कूल, कालेजों में निडरता के साथ छात्राओं का आना-जाना, खेत-खलिहान में रात-बिरात में सुरक्षा के भाव के साथ काम करना, व्यापारियों और दुकानदारों को बेफ्रिकी और निर्भयता के साथ कारोबार करने की जो सहूलियतें मिली हैं उससे मतदान प्रभावित होगा।

 2014 के लोकसभा चुनाव में चला था भगवा लहर 
मुस्लिम बहुल देवबंद के मिश्रित आबादी के इलाके में कन्फेक्शनरी के बड़े व्यवसायी अश्विनी कुमार जैन कहते हैं कि 2014 से पहले हर वक्त लुटने-पिटने और चोरी-चकारी का डर बना रहता था। योगी के शासन में दुकानदारों में हिम्मत और सुरक्षा का भाव लौटा है। 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इन सभी आठ सीटों पर शानदार जीत दर्ज की थी। लेकिन 2019 के चुनाव में भगवा लहर पर जातीय समीकरण भारी पड़े थे। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन ने सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद और रामपुर सीटें भाजपा से छीन ली थी। 2024 के चुनाव में मतदाताओं के रूख से तय होगा कि माहौल में भगवा लहर का असर है या जातीय समीकरण भारी पड़ते हैं। 

 भाजपा ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 का खात्म किया 
 भाजपा ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 का खात्मा किया है। अयोध्या में जन्म स्थान पर भव्य राममंदिर बना है और अभी चंद दिनों पहले सीएए लागू किया गया है। भाजपा को इस बार रालोद का भी साथ मिला है। विपक्षी खेमे की बात करें तो समाजवादी पाटर्ी और कांग्रेस एक साथ आए हैं। दोनों के गठजोड़ से मुस्लिमों की एकजुटता जरूर पैदा हुई है। यानि मुस्लिम मतों में बंटवारा और विभाजन शायद नहीं हो पाए। बहुजन समाज पाटर्ी के अलग चुनाव लड़ने का भाजपा और सपा गठबंधन पर असर महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। राजनैतिक रणनीतिकारों की नजर इन नए समीकरणों पर जरूर लगी है।  इस लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बहुल नौ सीटों पर जयंत चौधरी के असर का भी इम्तिहान होना है। पिछले लोकसभा चुनाव में रालोद की अगंवाई प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह के वारीश उनके इकलौते पुत्र चौधरी अजीत सिंह कर रहे थे।
 

 2020 में कोरोना में उनका निधन हो जाने के बाद रालोद की बागडोर उनके पुत्र जयंत चौधरी ने संभाली है। जयंत चौधरी ने अपने बाबा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने से प्रभावित होकर दो सीटों के मिलने पर ही भाजपा से गठबंधन कर लिया जबकि इससे पूर्व अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी को उनकी मांग के मुताबिक सात लोकसभा सीटें दी थी। रालोद के दलित विधायक अनिल कुमार को योगी सरकार में काबिना दर्जे मंत्री बनाया गया है। इस चुनाव में बात बात अत्यंत महत्व की हैं कि उसे किसानों की पाटर्ी रालोद का साथ मिली है। जबकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह पाटर्ी भाजपा के खिलाफ बने विपक्षी गठबंधनों में शामिल थी। यह अलग बात है कि 2013 के मुजफ्फरनगर के दंगों से उपजी नाराजगी के कारण दोनों चुनावों में अजीत सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी दोनों की हार हुई थी। 
 

इस बार जयंत चौधरी खुद मैदान में नहीं उतरे हैं। उनके दो उम्मीदवार कैराना से युवा चंदन चौहान और बागपत से डा. राजकुमार सांगवान भाजपा के समर्थन से मैदान में हैं। दिलचस्प है कि जयंत चौधरी की भाजपा खेमे में ऐट्री को पश्चिम के जाटों का भरपूर समर्थन मिला है। इस बिरादरी के लोगों की प्रतिक्रिया है कि जयंत चौधरी का यह कदम सोने में सुहागा जैसा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की बहुलता है और सपा-कांग्रेस गठबंधन और साथ में बसपा भाजपा की भगवा लहर की काट करने वाले उम्मीदवारों का चयन कर रहे हैं। अखिलेश यादव ने दो आरक्षित सीटों पर अनुसूचित जाति के उम्मीदवार उतारकर बसपा के हाथी से दो-दो हाथ करने की जुरर्त दिखाई है। राजनीतिक समीक्षक अखिलेश यादव और मायावती के हैरतभरे चयन से काफी हैरान है। अब देखना है कि पहला चरण का मतदान किस तरह की हवा का रूख तय करेगा और उसका कितनी दूर तक असर होगा।

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