Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी मस्जिद में मिले ढांचे की न्यायिक जांच का यूपी सरकार ने किया विरोध, अब HC ने खारिज की याचिका

Edited By Mamta Yadav,Updated: 20 Jul, 2022 12:53 PM

up government opposes judicial inquiry into the structure found in gyanvapi

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने मंगलवार को एक जनहित याचिका खारिज कर दी जिसमें वाराणसी के ज्ञानवापी में हाल ही में मिले ढांचे की जांच उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश से कराने का अनुरोध किया गया था। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान...

लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने मंगलवार को एक जनहित याचिका खारिज कर दी जिसमें वाराणसी के ज्ञानवापी में हाल ही में मिले ढांचे की जांच उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश से कराने का अनुरोध किया गया था। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने सुधीर सिंह और अन्य की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया।

पीठ ने 10 जून को पहले ही क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के अभाव में जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए अनिच्छा व्यक्त की थी। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याची का मामला बनारस का है और वह लखनऊ पीठ के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है। इस मामले में 10 जून को सुनवाई करने के उपरांत अदालत ने याचिका पर क्षेत्राधिकार के अभाव में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था और विस्तृत आदेश बाद में जारी करने को कहा था। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दस जून को याचिका का विरोध करते हुए मुख्य स्थायी अधिवक्ता (प्रभारी) अभिनव नारायण त्रिवेदी ने कहा कि याचिका क्षेत्राधिकार के अभाव में पोषणीय नहीं है क्योंकि वाराणसी क्षेत्र लखनऊ खंडपीठ के बजाय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।

उन्होंने इसपर भी जोर दिया कि चूंकि उच्चतम न्यायालय पहले ही इस मामले पर विचार कर रहा है, इसलिए यहां वही याचिका पेश नहीं की जा सकती। केंद्र सरकार और एएसआई के वकील एस.एम. रायकवार ने भी जनहित याचिका का विरोध किया।

उल्लेखनीय है कि जनहित याचिका अपने को शिवभक्त बताने वाले लोगों सुधीर सिंह, रवि मिश्रा, महंत बालक दास, शिवेंद्र प्रताप सिंह, मार्कंडेय तिवारी, राजीव राय और अतुल कुमार ने दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने मामले में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को विपरीत पक्ष बनाया। इससे पहले, याचिकाकर्ताओं के वकील अशोक पांडे ने याचिका में कहा था कि हाल ही में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में एक ढांचा उभरा। हिंदू दावा करते हैं कि यह भगवान शिव का लिंग है जबकि मुसलमान इस बात पर जोर देते हैं कि यह फव्वारा है। इसमें कहा गया है कि यह न केवल देश के भीतर बल्कि दुनिया भर में समुदायों के बीच विवाद पैदा कर रहा है। यदि एएसआई और सरकारों ने संरचना की सच्चाई का पता लगाने के लिए एक समिति नियुक्त करके अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया है तो विवादों से बचा जा सकता है।

याचिकाकर्ता ने उच्‍च न्‍यायालय से अनुरोध किया था कि वह एएसआई और राज्य व केंद्र सरकारों को संरचना के बारे में सच्चाई का पता लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक पैनल नियुक्त करने का निर्देश दे। उल्लेखनीय है कि वाराणसी की एक अदालत ने ज्ञानवापी परिसर की वीडियोग्राफी कर सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था और हिंदू पक्ष ने इस दौरान एक शिवलिंग मिलने का दावा किया था। हालांकि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि वह ढांचा वजू खाना में मौजूद फव्वारे का हिस्सा है।

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