हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी, कहा-असाधारण परिस्थितियों में ही DNA परीक्षण का आदेश दे सकती है कोर्ट

Edited By Ajay kumar,Updated: 26 Jun, 2024 08:30 AM

the court can order a dna test only in exceptional circumstances

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएनए टेस्ट से संबंधित एक मामले में अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा कि ऐसे मामलों में मां को व्यभिचारी सिद्ध करने के लिए बच्चे को एक मोहरे की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कोर्ट केवल असाधारण परिस्थितियों में ही डीएनए परीक्षण का आदेश...

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएनए टेस्ट से संबंधित एक मामले में अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा कि ऐसे मामलों में मां को व्यभिचारी सिद्ध करने के लिए बच्चे को एक मोहरे की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कोर्ट केवल असाधारण परिस्थितियों में ही डीएनए परीक्षण का आदेश दे सकती है।

पत्नी और दो बेटियों को गुजारा भत्ता देने के आदेश किया रद्द
वर्तमान मामले में प्रस्तुत डीएनए रिपोर्ट केवल एक कचरा है और इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है और न ही शादी के पिछले 4 वर्षों से चल रहे पत्नी के अवैध संबंध को साबित करने के लिए डी नोवो डीएनए रिपोर्ट आयोजित करने हेतु कोई आदेश दिया जा सकता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की एकलपीठ ने ग्राम न्यायालय, पटियाली, कासगंज द्वारा पत्नी और दो बेटियों को गुजारा भत्ता देने के आदेश को रद्द करने वाली डॉ. इफ़राक मोहम्मद इफ़राक हुसैन की याचिका खारिज करते हुए पारित किया।

बच्चों की पहचान के अधिकार के बलिदान की अनुमति नहीं दी जा सकती
दरअसल याची और विपक्षी की 12 नवंबर 2013 में मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार शादी हुई। वर्ष 2017 में पत्नी अपने मायके जाकर रहने लगी। अपनी पत्नी के विवाहेतर संबंध को साबित करने तथा बेटियों के पितृत्व से इनकार करने के लिए उसने गुप्त रूप से अपनी बेटियों में से एक का रक्त नमूना लिया और एक प्रमाण पत्र प्राप्त किया, जिसमें बताया गया था कि वह उक्त बेटी का जैविक पिता नहीं है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के मामलों का हवाला देते हुए निष्कर्ष निकाला कि कोर्ट को आमतौर पर उस पार्टी की इच्छा के खिलाफ डीएनए परीक्षण जैसे रक्त परीक्षण का आदेश देने से बचना चाहिए, जिस पर इस परीक्षण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सबसे अधिक संभावना हो। डीएनए परीक्षण का आदेश अगर सामान्य ढंग से दिया जाने लगे तो यह बेईमान पतियों के लिए पितृत्व को चुनौती देने वाला भानुमती का पिटारा खोल देने के समान होगा। पति के लिए अपनी पत्नी को व्यभिचारी साबित करना हमेशा खुला है, लेकिन इसके लिए बच्चों की पहचान के अधिकार के बलिदान की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

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