शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी को नहीं मिली राहत, हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रखा बरकरार

Edited By Ramkesh,Updated: 15 Dec, 2023 02:18 PM

shahi idgah mosque committee did not get relief

मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद के परिसर का सर्वेक्षण कराने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरा रखा है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में हस्क्षेप करने से इनकार कर दिया है। "कोर्ट ने कहा यह केस 9 जनवरी के...

प्रयागराज /नई दिल्ली: मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद के परिसर का सर्वेक्षण कराने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरा रखा है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में हस्क्षेप करने से इनकार कर दिया है। "कोर्ट ने कहा यह केस 9 जनवरी के लिए निर्धारित है हम उसी दिन उसको सुनेंगे" बता दें कि बृहस्पतिवार को मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने परिसर का सर्वेक्षण कराने की याचिका को स्वीकार कर लिया था।  न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा, “आयोग गठित करने के लिए वादी की याचिका स्वीकार की जाती है। जहां तक इस आयोग के तौर तरीकों और प्रारूप का संबंध है, इस अदालत को यह उचित प्रतीत होता है कि इस उद्देश्य के लिए पक्षकारों के वकीलों को सुना जाए।” अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 18 दिसंबर तय की है। यह याचिका भगवान श्री कृष्ण विराजमान और सात अन्य लोगों द्वारा अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडेय और देवकी नंदन के जरिए दायर की गई थी जिसमें दावा किया गया है कि भगवान कृष्ण की जन्मस्थली उस मस्जिद के नीचे मौजूद है और ऐसे कई संकेत हैं जो यह साबित करते हैं कि वह मस्जिद एक हिंदू मंदिर है।

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हिंदू मंदिरों की एक विशेषता है
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के मुताबिक, इस याचिका में कहा गया है कि वहां कमल के आकार का एक स्तंभ है जोकि हिंदू मंदिरों की एक विशेषता है। इसमें यह भी कहा गया है कि वहां शेषनाग की एक प्रतिकृति है जो हिंदू देवताओं में से एक हैं और जिन्होंने जन्म की रात भगवान कृष्ण की रक्षा की थी। याचिका में यह भी बताया गया कि मस्जिद के स्तंभ के आधार पर हिंदू धार्मिक प्रतीक हैं और नक्काशी में ये साफ दिखते हैं। आयुक्त की नियुक्ति के लिए आवेदन स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा, “यहां यह उल्लेख करना उचित है कि इस अदालत द्वारा आयुक्त की नियुक्ति के लिए सुनवाई में प्रतिवादी हिस्सा ले सकते हैं। इसके अलावा, यदि वे आयोग की रिपोर्ट से पीड़ित महसूस करते हैं तो उनके पास उस रिपोर्ट के खिलाफ आपत्ति दाखिल करने का अवसर होगा।”

परिसर की पवित्रता सख्ती से बनाए रखने का निर्देश
अदालत ने आगे कहा, “आयुक्त द्वारा दाखिल रिपोर्ट हमेशा पक्षकारों के साक्ष्य से संबंधित होती है और यह साक्ष्य में स्वीकार्य है। आयुक्त सक्षम गवाह होते हैं और किसी भी पक्ष की इच्छा पर उन्हें सुनवाई के दौरान साक्ष्य के लिए बुलाया जा सकता है। दूसरे पक्ष के पास जिरह करने का हमेशा एक अवसर होगा।” अदालत ने कहा, “यह भी ध्यान रखना होगा कि तीन अधिवक्ताओं के पैनल वाले आयोग की नियुक्ति से किसी भी पक्ष को कोई नुकसान नहीं होगा। आयुक्त की रिपोर्ट इस मामले की मेरिट को प्रभावित नहीं करती। आयोग के क्रियान्वयन के दौरान परिसर की पवित्रता सख्ती से बनाए रखने का निर्देश दिया जा सकता है।”

अदालत के आदेश में कहा गया है कि व्यवहार प्रक्रिया संहित के आदेश 16 के नियम 9 के तहत अदालत विवादित मामले को हल करने और विवादित संपत्ति की वास्तवित एवं तथ्यात्मक स्थिति सामने लाने के उद्देश्य से स्थानीय जांच कराने के लिए आयोग का गठन कर सकती है। संपूर्ण तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत का मत था कि आयोग के गठन के लिए आवेदन पर निर्णय करने से पूर्व उप्र सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और इंतेजामिया मस्जिद कमेटी द्वारा इस आवेदन को खारिज करने की याचिका पर पहले निर्णय करने को स्वीकार नहीं किया जा सकता। 

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