बिजली इंजीनियरों ने किया किसान आंदोलन का समर्थन, कहा- किसानों की मांग जायज

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 04 Dec, 2020 01:50 PM

power engineers supported the farmers  movement said

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने कृषि कानूनों और इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 की वापसी मांग लेकर एक हफ्ते से अधिक समय से दिल्ली में धरना दे रहे किसानों को समर्थन दिया है। फेडरेशन का मानना है कि किसानों की मांग न केवल जायज है। बल्कि सरकार...

मथुरा: ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने कृषि कानूनों और इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 की वापसी मांग लेकर एक हफ्ते से अधिक समय से दिल्ली में धरना दे रहे किसानों को समर्थन दिया है। फेडरेशन का मानना है कि किसानों की मांग न केवल जायज है। बल्कि सरकार के उस दावे के खिलाफ है। जिसमें वह यह कहती है कि सन 2022 तक वह किसान की आय दो गुनी कर देगी। वर्चुअल कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से यूपी राज्य विद्युत परिषद अभियन्ता संघ के अध्यक्ष वीपी सिंह एवं सचिव प्रभात सिंह ने संयुक्त रूप से पत्रकारों से कहा कि कड़ाके की ठंड में दिल्ली में खुले आसमान तले धरना दे रहे। किसानों की संसद मे पारित किए गए कृषि विरोधी कानूनों की वापसी की मांग जायज है, क्योंकि इससे भविष्य में किसानों का अहित होने की आशंका है।

उन्होंने कहा कि किसान संयुक्त मोर्चा के आवाहन पर चल रहे आंदोलन में कृषि कानूनों की वापसी के साथ किसानों की इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 वापस लेने की भी मांग है। किसानों को इस बात की आशंका है कि सरकार की इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के जरिए बिजली का निजीकरण करने की योजना है जिससे बिजली निजी घरानों के हाथ में हो जाएगी। चूंकि निजी क्षेत्र मुनाफे के लिए काम करते हैं अत: बिजली की दरें किसानों की पहुंच से दूर हो जाना स्वाभाविक है। वीपी सिंह ने बताया कि ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने किसान आंदोलन का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि किसानों की आशंका निराधार नहीं है इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 और बिजली वितरण के निजीकरण के लिए जारी स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट के पीछे मंशा बिजली का निजीकरण करना ही है। इसके बाद सब्सिडी समाप्त हो जाएगी तो बिजली की दरें 10 से 12 रुपए प्रति यूनिट से कम नही होगी।

इसका सबसे अधिक नुकसान किसान को ही भुगतना पड़ेगा क्योंकि उसका बिल 8 से 10 हजार रूपए प्रति माह हो जाएगा। जबकि सरकार समर्थन मूल्य वास्तविक लागत के अनुपात में नही बढ़ाती है। दोनो पदाधिकारियों का कहना था कि इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 का ड्राफ्ट जारी होते ही उनके संगठन ने विरोध किया था क्योंकि बिल में इस बात का प्राविधान है कि किसानों को बिजली टैरिफ में मिल रही सब्सिडी समाप्त कर दी जाए और लागत से कम मूल्य पर किसानों सहित किसी भी उपभोक्ता को बिजली न दी जाए ।इस बिल में बड़ी चालाकी के साथ यह कहा गया कि सरकार चाहे तो डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए किसानों को सब्सिडी दे सकती है यानी सब्सिडी को सरकार के रहमो करम पर छोड़ दिया गया है। अगर सरकार की मंशा वास्तव में किसान हित के अन्तर्गत उसे छूट देने की होती तो इस प्राविधान को बिल में जोड़ने की आवश्यकता ही नही होती। यदि इसे मान भी लिया जाए तो छोटे किसान के लिए पहले बिल का भुगतान करना संभव नही होगा क्योंकि सरकार ने खेती से जुड़े किसी अवयव को छोटे किसान के लिए सस्ता देने का कोई प्राविधान नही किया है। 

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