Loksabha Election 2024: BJP के लिए तगड़ी चुनौती! जातीय गणित में उलझी पश्चिमी यूपी की सियासत

Edited By Imran,Updated: 15 Apr, 2024 12:27 PM

politics of western up entangled in caste mathematics

यूपी में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान में महज कुछ ही दिन बचे हैं। तमाम चुनावी विश्लेषण किए जा चुके हैं, समीकरणों की जानकारी भी दी गई है।  लेकिन एक ही जगह पर सरल भाषा में अगर यूपी का पूरा ज्ञान मिल जाए तो ये चुनाव समझना और आसान हो जाएगा।

Loksabha Election 2024: यूपी में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान में महज कुछ ही दिन बचे हैं। तमाम चुनावी विश्लेषण किए जा चुके हैं, समीकरणों की जानकारी भी दी गई है।  लेकिन एक ही जगह पर सरल भाषा में अगर यूपी का पूरा ज्ञान मिल जाए तो ये चुनाव समझना और आसान हो जाएगा।

देश का सबसे बड़ा राज्य देश की सबसे बड़ी सियासत का विद्यालय माना जाता है, जिसने यूपी जीत लिया, मान लिया जाता है कि दिल्ली में वही बैठेगा। प्रदेश की 80 सीटों के राजनीति को समझने के लिए इसे 4 हिस्सों में बाटा जाता है। पश्चिमी यूपी, पूर्वांचल, अवध और बुंदेलखंड।
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आज हम जातीय गणित में उलझे पश्चिम के सियासी हालात के बारें में जानने की कोशिश करेंगे। पश्चिमी यूपी की सियासत जाट, मुस्लिम दलित और  जाटव समुदाय के इर्द-गिर्द घूमती है। पश्चिमी यूपी की खासियत ये है कि यहां पर इन जातियों का बोलबाला पूरे राज्य के लिहाज से सबसे ज्यादा है।  इसे ऐसे समझिए कि पूरे यूपी में मुस्लिम वोटर 20 फीसदी के करीब हैं। लेकिन केवल पश्चिमी यूपी ये आंकड़ा बढ़कर 32 फीसदी हो जाता है।
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मेरठ समेत मुजफ्फरनगर, बिजनौर लोकसभा सीट पर भाजपा, बसपा और सपा- कांग्रेस गठबंधन के बीच माना जा रहा है कि मुकाबला इस बार बराबर का होने वाला है। यहां सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता बिखरे हुए दिखाई दे रहें हैं। वह अभी चुनावी माहौल को भांपने की कोशिश कर रहे हैं।

पश्चिम  में मुस्लिम वोटरों के अलावा त्यागी, ठाकुर, ब्राह्मण, सैनी, प्रजापति, कश्यप, सेन को भाजपा का कोर वोटर माना जाता है। जयंत चौधरी की पार्टी रालोद अपने आप को जाटों की पार्टी भले मानती हो लेकिन भाजपा भी यह मानकर चलती है की उसके जाट समाज में काफी वोट प्रतिशत है। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जाट समाज का प्रतिनिधित्व यूपी और केन्द्र की सरकार दोनों जगह है। अब इस बार तो दोनों का गठबंधन है तो जाहिर है कि रालोद के साथ सभी जाट समाज भाजपा के साथ खड़ी रहेगी।
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मेरठ में मुकाबला त्रिकोणीय
मेरठ लोकसभा सीट पर बसपा ने त्यागी समाज से देवव्रत त्यागी को रण में उतारा है, वहीं भाजपा ने वैश्य उम्मीदवार के तौर पर रामायण में श्रीराम का किरदार निभाने वाले कलाकार अरुण गोविल को मैदान में उतारा है। इस सीट पर सपा थोड़ा सा उलझती हुई दिखाई दी। पहले तो भानु प्रताप सिंह को टिकट दिया था लेकिन बाद में गुर्जर समाज से अतुल प्रधान को टिकट दिया है।

अब यहां मामला इसलिए फंसता हुआ दिखाई दे रहा है कि क्योंकि सीट पर तीनों पार्टियों के प्रत्याशी हिंदू हैं। सपा और बसपा मुस्लिम वोटों के लिए जद्दोजहद करेगी तो भाजपा के सामने चुनौती होगी कि वह अपना गुर्जर और त्यागी वोट बैंक कैसे बचाए। क्योंकि इन दोनों ही समाज से सपा और बसपा ने अपने प्रत्याशी उतार रखा है।

सहारनपुर में मुस्लिम वोटरों का खेल
अब सहारनपुर की स्थिति देख लिजिए, यहां की सियासी कहानी मेरठ से एकदम अलग दिखाई दे रही है, यहां पर तो पार्टियों की नजर मुस्लिम वोटरों से हटने का नाम नहीं ले रही है। सपा-कांग्रेस से इमरान मसूद तो बसपा ने भी माजिद अली को अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं भाजपा इस सीट से राघव लखनपाल शर्मा को मैदान में उतारा है।  अब इस सीट पर अगर मुस्लिम वोटरों का सपा बसपा में बिखराव होता है तो इसका सीधा फायदा भाजपा को हो सकता है।

कैराना में बसपा बिगाड़ सकती है भाजपा का खेल
अब आगे कैराना की बात करें तो यहां की सियासत में जाति या बिरादरी नहीं बल्कि धर्म का बड़ा खेला है। यहां सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं जिनकी संख्या करीब 5.45 लाख के आसपास है। यहां से गठबंधन ने इकरा हसन को टिकट दिया है। बसपा ठाकुर समुदाय से श्रीपाल राणा को टिकट दिया है। भाजपा ने गुर्जर समाज के प्रदीप चौधरी दुबारा मौका दिया है

अब इस सीट पर बसपा भाजपा के साथ खेल कर सकती है, क्योंकि ठाकुर पारंपरिक रूप से भाजपा के वोट बैंक हैं. साथ ही उन्हें दलितों का भी अच्छी तादात में वोट मिलने की उम्मीद है, इससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ने के साथ-साथ वोट शेयर पर भी खतरा पैदा हो सकता है।

दिलचस्प होगा बिजनौर का मुकाबला
बिजनौर में बसपा ने विजेन्द्र सिंह को मैदान में उतार कर ठाकुर समाज के साथ जाट, दलित के साथ अतिपिछड़ों को साधने का कोशिश की है...तो वहीं भाजपा-रालोद गठबंधन ने चंदन चौहान को टिकट दिया है...चंदन चौहान मैजूदा विधायक हैं गुर्जर जाति से ताल्लुक रखते हैं। इनके दादा चौ. नारायण सिंह यूपी के डिप्टी सीएम रहे और पिता संजय चौहान सांसद रहे हैं। इसलिए चंदन चौहान का राजनीति से पुराना रिश्ता रहा है। इसका फायदा भी इनको मिलने की उम्मीद है।

मुजफ्फरनगर में वोट बैंक में सेंध की कोशिश
राजनीतिक नजर से देखें तो बसपा ने मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से दारा सिंह प्रजापति को प्रत्याशी इसलिए बनाया है ताकि भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी कर कर सके, इस सीट पर प्रजापति समाज की संख्या अधिक मानी जाती है। वहीं कांग्रेस-सपा गठबंधन ने हरेन्द्र मालिक मैदान में हैं, मलिक अपने समाज में ही नहीं बल्कि हर समाज में पकड़ रखते हैं। उधर भाजपा ने दो बार से सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री संजीव बालियान को मैदान में उतारा हुआ है। जाट समाज के अलावा ओबीसी जातियों में इनका अपना अलग स्थान बताया जाता है।

नगीना में सुरक्षित सीट पर जोर-आजमाइश
नगीना लोकसभा सीट पर देखा जाए तो बीजेपी से ओमकुमार और सपा से मनोज कुमार तो वहीं बसपा ने सुरेन्द्र पाल सिंह चुनाव मैदान में हैं। इन सब से अलग आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद पहली बार लोकसभा चुनाव में भाग्य आजमा रहे हैं। सभी प्रत्याशी अनूसूचित जाति के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति बनाए हुए हैं।

बागपत में एक-दूसरे के वोट पर चोट
अब बागपत लोकसभा सीट की तरफ बढ़ते हैं, यहां पर रालोद-भाजपा गठबंधन ने जाट बिरादरी के डा. राजकुमार सांगवान को मैदान में उतारा हुआ है तो सपा-कांग्रेस गठबंधन ने भी जाट कार्ड खेलते हुए मनोज चौधरी को प्रत्याशी बनाया है।  जबकि बसपा ने गुर्जर बिरादरी की काफी वोटों को देखते हुए प्रवीण बंसल पर दांव खेला है। क्योंकि यहां सबसे ज्यादा करीब 28 प्रतिशत मुस्लिम वोटर है तो करीब 22 प्रतिशत जाट वोटर है और करीब दस प्रतिशत गुर्जर वोटर है।  इस तरह के जातीय समीकरण के कारण सभी एक-दूसरे के वोटों में सेंधमारी की तैयारी कर रहे हैं। 
 

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