Edited By Ajay kumar,Updated: 22 May, 2024 09:22 AM
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के तहत होने वाले अपराधों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जानबूझकर अपमान या धमकी देने का कथित कृत्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (आर) के तहत अपराध तभी माना जाएगा, जब यह...
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के तहत होने वाले अपराधों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जानबूझकर अपमान या धमकी देने का कथित कृत्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (आर) के तहत अपराध तभी माना जाएगा, जब यह सार्वजनिक रूप से किया गया हो। उक्त आदेश न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की एकलपीठ ने एससी/ एसटी एक्ट के तहत पिंटू सिंह उर्फ राणा प्रताप सिंह और दो अन्य के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्रवाई को रद्द करते हुए पारित किया।
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घर में घुसकर जाति आधारित टिप्पणी की और व परिवारीजनों पर हमला मामला
नवंबर 2017 में याचियों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं और एससी/एसटी के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। याचियों पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने शिकायतकर्ता के घर में घुसकर जाति आधारित टिप्पणी की और व परिवारीजनों पर हमला किया। कोर्ट ने अपनी विशेष टिप्पणी में कहा कि एससी/एसटी एक्ट का यह प्रावधान सार्वजनिक स्थान पर अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य को अपमानित करने या उसे डरने के उद्देश्य से जानबूझकर किए गए अपराध पर लागू होता है।