Edited By Ajay kumar,Updated: 30 Jun, 2024 09:38 AM
![illegal to keep a minor in custody who is not legally entitled to it highcourt](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2024_5image_17_37_389864294highcourt-ll.jpg)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग की कस्टडी से संबंधित बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार करते हुए कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका अवैध या अनुचित हिरासत से तत्काल रिहाई के प्रभावी साधन प्रदान करके व्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए...
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग की कस्टडी से संबंधित बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार करते हुए कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका अवैध या अनुचित हिरासत से तत्काल रिहाई के प्रभावी साधन प्रदान करके व्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए विशेषाधिकार प्रक्रिया है। किसी नाबालिग की कस्टडी से संबंधित बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अनुमति देने से पहले कोर्ट का मुख्य कर्तव्य यह पता लगाना होता है कि क्या बच्चे की हिरासत गैरकानूनी या अवैध है और बच्चे के कल्याण के लिए क्या वर्तमान हिरासत को बदलना
आवश्यक है।
... तो इसे अवैध हिरासत या कस्टडी के समान माना जाएगा
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि अगर किसी नाबालिग को ऐसे व्यक्ति की कस्टडी में रखा गया है जो कानूनन उसकी कस्टडी का हकदार नहीं है तो इसे अवैध हिरासत या कस्टडी के समान माना जाएगा। उक्त आदेश न्यायमूर्ति डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की एकलपीठ ने आयरा खान और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। कोर्ट ने कहा कि जिन मामलों में संरक्षक नियुक्त करने का दायित्व कोर्ट के पास होता है, ऐसे में नाबालिग के कल्याण को ध्यान में रखते हुए कोर्ट को उस कानून के अनुरूप निर्णय करना होता है, जिसके अधीन नाबालिग हो। संक्षेप में कहा जाए तो हिरासत के मामलों में जीडब्ल्यूए के प्रावधानों को व्यक्तिगत और वैधानिक कानून के प्रावधानों के अनुरूप लागू किया जाना चाहिए।
क्या है मामला?
वर्तमान मामले में यह आरोप लगाया गया था कि एक बच्चे की मां को उसके पिता ने घर से निकाल दिया और बच्चे को अपने पास रख लिया। बाद में पिता देश से बाहर चला गया और बच्चे को दादी ने अवैध रूप से अपनी कस्टडी में ले लिया। अंत में कोर्ट ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए पाया कि वर्तमान मामले में कॉर्पस (नाबालिग) के हित को ध्यान में रखते हुए उसकी जैविक मां के साथ ही उसे रखना उचित होगा। अतः कोर्ट ने मां के माध्यम से नाबालिग की याचिका का निस्तारण करते हुए बच्ची ने को उसकी जैविक मां के साथ जाने की में अनुमति दे दी।