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Holi: यहां से हुई थी होली की शुरुआत, 5 हजार साल पुराना ऐतिहासिक कुंड आज भी दे रहा गवाही

Edited By Mamta Yadav,Updated: 04 Mar, 2025 03:50 PM

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रंगों के पर्व होली के त्यौहार को आने में अब कुछ दिन शेष है और लोग होली की तैयारी में जुट गए हैं। इस बार की होली को लेकर भले ही कई दिन की भ्रंतिया है और अलग अलग स्थानों पर भले ही अलग-अलग दिन मनाया जाएगा लेकिन होली की शुरुआत करीब 5 हजार साल पहले हरदोई...

Hardoi News, (मनोज तिवारी): रंगों के पर्व होली के त्यौहार को आने में अब कुछ दिन शेष है और लोग होली की तैयारी में जुट गए हैं। इस बार की होली को लेकर भले ही कई दिन की भ्रंतिया है और अलग अलग स्थानों पर भले ही अलग-अलग दिन मनाया जाएगा लेकिन होली की शुरुआत करीब 5 हजार साल पहले हरदोई से हुई थी। हिरण्यकश्यप की राजधानी जिसे हरिद्रोही कहा जाता था जो आज हरदोई के नाम से जानी जाती है यहीं होलिका जली थी जिसके बाद उसकी राख से प्रह्लाद ने होली खेली थी तभी से होली की शुरुआत हुई है।
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होली की शुरुआत शहर से हुई थी और यहां करीब 5000 साल से भी पुराना नृसिंह भगवान मंदिर, प्रहलाद घाट, हिरण्यकश्यप के महल का खंडहर आज भी इसकी गवाही दे रहे हैं। पुराणों में वर्णन है कि हिरण्यकश्यप भगवान को अपना शत्रु मानता था द्रोही मानता था इसीलिए हरदोई जिले का पुराना नाम हरिद्रोही था क्योंकि यह हिरण्यकश्यप की राजधानी थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु के अनन्य भक्त और हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद के खिलाफ कई जुल्म किए थे और बदला लेने के लिए उसने कई साजिशें रचीं थीं लेकिन हिरण्यकश्यप के बेटे प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया, जो उसके पिता को बिल्कुल पसंद नहीं आता था।
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क्यों शुरू हुई होली मनाने की परंपरा ?
हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की, लेकिन भगवान की कृपा से वह हर बार बच जाता था। जब उसके सभी उपाय फेल हो गए तो एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को मारने के लिए कहा क्योंकि होलिका को भगवान से यह वरदान प्राप्त था कि जब वह आग में बैठती थी, तो वह जलती नहीं थी इसलिए होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर आग में बैठ गयी लेकिन भगवान विष्णु की माया के अनुसार, होलिका जलकर भस्म हो गई जबकि प्रहलाद बच गया उसी समय हरदोई के लोग इस घटना के बाद बहुत खुश हुए उस जली हुई चिता की राख को उड़ाया और एक-दूसरे को लगाकर खुशी मनाई, तभी से होली का त्योहार मनाने की परंपरा शुरू हुई।
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हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर और प्रहलाद घाट मौजूद 
हरदोई में भगवान ने एक बार बावन अवतार भी लिया था। हिरण्यकश्यप ने हरदोई में र अक्षर के उच्चारण पर भी रोक लगा दी थी। हिरण्यकश्यप के र शब्द के उच्चारण पर रोक लगाने का प्रभाव आज भी यहां के लोगों की जुबान पर साफ देखने को मिलता है यहां के बुजुर्ग आज भी हरदोई को हद्दोई मिर्चा को मिच्चा जैसे शब्दों से उच्चारित करते हैं यानी अनुवांशिक तरीके से कई स्थानों पर र शब्द बोलचाल की भाषा में निकलता ही नहीं है। हरदोई में आज भी हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर और प्रहलाद घाट मौजूद हैं, जो इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी हैं। होली की शुरुआत हरदोई से होने की बात धार्मिक ग्रंथों और हरदोई गजेटियर में भी उल्लेखित है। हालांकि नगर पालिका की उपेक्षा के कारण प्रह्लाद घाट कुंड दुर्दशा का आज शिकार भी है जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है और प्रशासन की कृपा दृष्टि का इंतजार कर रहा। इसी कुंड से सटा हुआ श्रवण देवी मंदिर शक्ति पीठ है जो कि पौराणिक मन्दिर है। मान्यता है यहां देवी सती का कान गिरा था।

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