Edited By Ajay kumar,Updated: 22 Jun, 2024 07:58 AM
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 46 साल पुराने एक हत्या मामले के दोषी को बरी करते हुए ऐसी स्थिति को कानून व्यवस्था के लिए खतरनाक बताया। जहां पूरा मामला केवल एक प्रत्यक्षदर्शी की गवाही पर टिका हो।
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 46 साल पुराने एक हत्या मामले के दोषी को बरी करते हुए ऐसी स्थिति को कानून व्यवस्था के लिए खतरनाक बताया। जहां पूरा मामला केवल एक प्रत्यक्षदर्शी की गवाही पर टिका हो। कोर्ट ने मजबूत और विश्वसनीय साक्ष्य के महत्व को रेखांकित करते हुए माना कि यह न केवल जांच एजेंसी की बल्कि अदालतों की भी जिम्मेदारी है कि वह जांचों का निष्पक्ष रूप से किया जाना सुनिश्चित करें, जिससे किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित न हो। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने इंद्रपाल और सोहनवीर की अपील को स्वीकार करते हुए पारित किया।
कोर्ट ने माना कि मुकदमे के दौरान प्रस्तुत साक्ष्य की उत्कृष्ट गुणवत्ता और स्वीकार्यता का आकलन करने के लिए मौखिक गवाही और दस्तावेजी साक्ष्य दोनों का संचयी प्रभाव सर्वोपरि है। न्यायालय को गवाहों के आचरण, गवाही की स्पष्टता और दस्तावेजी साक्ष्य की सत्यता का मूल्यांकन भी करना चाहिए। गवाहों की जांच वहां और भी आवश्यक हो जाती है,जहां उसे एक गवाही पर किसी का पूरा जीवन टिका हो। घटना वर्ष 1978 में एक गांव में घटित हुई थी, जिसमें सूचनाकर्ता ने प्राथमिकी में आरोप लगाया था कि वह अपने बेटे के साथ जब घर के बाहर सो रहा था, तभी अभियुक्त उसके घर में घुस आए और उसके बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी। घटना के पीछे मकसद था कि सह आरोपी का मृतक की चचेरी बहन से अवैध संबंध था और इस संबंध को रोकने का प्रयास करने के परिणामस्वरूप उसकी (करमवीर) हत्या कर दी गई।
हाईकोर्ट में अपील के लंबित रहने के दौरान ही सह-आरोपी की वर्ष 2011 में मौत हो गई। इस पर कोर्ट ने कहा कि वह मौजूदा मामले में रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर यह सिद्ध नहीं होता है कि आरोपियों ने अपराध को अंजाम दिया है, क्योंकि चश्मदीद गवाह हमलावरों की पहचान नहीं कर सका है। इस आधार पर अपीलकर्ता संदेह का लाभ पाने का हकदार है।