Edited By Mamta Yadav,Updated: 09 Feb, 2024 01:21 AM
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि उन पीड़ितों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए जो शुरू में बलात्कार, पॉक्सो अधिनियम और एससी-एसटी अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज कराते हैं, लेकिन सरकार से मुआवजा प्राप्त करने के बाद...
Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि उन पीड़ितों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए जो शुरू में बलात्कार, पॉक्सो अधिनियम और एससी-एसटी अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज कराते हैं, लेकिन सरकार से मुआवजा प्राप्त करने के बाद मुकदमे के दौरान अपने बयानों से मुकर जाते हैं।
पैसा और समय दोनों की होती है बर्बादी
बता दें कि न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे मामलों के परिणामस्वरूप जांचकर्ता और अदालत के समय और संसाधनों की बर्बादी होती है। कोर्ट के सामने हर दिन ऐसे मामले आते हैं, जिनमें शुरुआत में आईपीसी की धारा 376, पोक्सो एक्ट और एससी/एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की जाती है, जिस पर जांच चलती रहती है और पैसा और समय दोनों बर्बाद होता है।
HC ने दिए सख्त कार्रवाई के निर्देश
इस प्रकार के मामले में, पीड़ित परिवार को सरकार से धन भी मिलता है। लेकिन समय बीतने और मुकदमा शुरू होने के बाद, वे बचाव पक्ष में शामिल हो जाते हैं और शत्रुतापूर्ण हो जाते हैं, या अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं करते हैं। इस प्रकार विवेचक एवं न्यायालय का समय एवं धन बर्बाद होता है। इस प्रकार की प्रथा को रोका जाना चाहिए और जिसने भी ऐसी प्राथमिकी दर्ज की है उसके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।