आकस्मिक दुर्घटना का शिकार सरकारी कर्मचारी का परिवार मुआवजे का पूरा हकदारः इलाहाबाद हाईकोर्ट

Edited By Ajay kumar,Updated: 14 Dec, 2023 05:47 PM

government employee s family fully entitled to compensation high court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपकृत्य दायित्व के मुआवजे के दावे के लिए याचिका पर विचार करते हुए अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि उक्त अधिनियम के तहत मुआवजे का दावा सिविल मुकदमा दाखिल करके किया जाता है।

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपकृत्य दायित्व के मुआवजे के दावे के लिए याचिका पर विचार करते हुए अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि उक्त अधिनियम के तहत मुआवजे का दावा सिविल मुकदमा दाखिल करके किया जाता है।

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3 महीनों के भीतर भुगतान करने का निर्देश
राज्य मृतक के परिवार को मुआवजा देने से इनकार करके न्याय के उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहा है। राज्य पदाधिकारी/ग्रामीण इंजीनियरिंग सेवाओं की ओर से उपेक्षा के कारण एक सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी द्वारा मुआवजे के दावे को उचित मानते हुए कोर्ट ने कर्मचारी की विधवा पत्नी को आदेश की तारीख से 3 महीनों के भीतर 50 लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया है, साथ ही घटना की तारीख से भुगतान की तारीख तक उक्त राशि पर 6 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज भी देना तय किया।

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हादसे के बाद उपचार के दौरान हुई मृत्यु
उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की खंडपीठ ने श्रीमती शकुंतला देवी की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार याची के पति डॉ. रविंद्र मोहन प्रसाद उपनिदेशक, पशुपालन, मिर्जापुर मंडल के पद पर तैनात थे। उन्हें सरकारी आवास आवंटित किया गया था। 17 जुलाई 2010 को जब वह अपने आवास में सो रहे थे, तभी निकट परिसर में सुबह ग्रामीण इंजीनियरिंग सेवा की भंडारण सुविधा में एक विस्फोट हुआ, जिसके परिणामस्वरूप मैक्सफॉल्ट / बिटुमेन नामक घातक रसायन मृतक के आवास में पहुंच गया, जिससे 70 प्रतिशत जलने के बाद लखनऊ के सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।

मुआवजे का दावा करने पर यूपी सरकार ने किया इनकार
मृत्यु के बाद उनकी पत्नी द्वारा दावा करने पर उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव द्वारा गठित 12 सदस्यीय समिति ने मुआवजा देने से इनकार कर दिया, क्योंकि मृतक ड्यूटी से बाहर होने के कारण किसी भी पॉलिसी के तहत कवर नहीं होता है। इस अन्यायपूर्ण के बाद मृतक की पत्नी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। समिति के द्वारा दिए गए तर्कों को खारिज करते हुए माना कि याची का पति दुर्घटना के समय छुट्टी या किसी गैर अनुमोदित आवास पर नहीं था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह घटना के समय सक्रिय रूप से ड्यूटी कर रहा था या नहीं। हालांकि ड्यूटी के कारण ही वह अपने सरकारी आवास पर था।

याची अपने पति की मृत्यु के लिए मुआवजे का हकदार
इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी माना कि बिटुमेन जैसे खतरनाक रसायन का भंडारण आधिकारिक आवास के इतने करीब होना राज्य के अधिकारियों के उपेक्षापूर्ण व्यवहार दर्शाता है। यद्यपि विस्फोट एक आकस्मिक घटना है, फिर भी याची अपने पति की मृत्यु के लिए मुआवजे का हकदार है। हालांकि विभाग के अधिकारियों द्वारा दोषी कर्मचारियों के खिलाफ निर्णायक, त्वरित और पर्याप्त कार्रवाई सुनिश्चित की गई होगी, जिससे भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों और पीड़ित को तत्काल उचित उपचार भी उपलब्ध कराया गया होगा, लेकिन घटना पर व्यक्त किया गया दुख संबंधित अधिकारियों के घृणित कृत्य के लिए कोई मुआवजा नहीं है, साथ ही मृतक के बेटे को अनुकंपा नियुक्ति देने या उ

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