Edited By Mamta Yadav,Updated: 16 Feb, 2025 06:44 PM
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अपने नाम में परिवर्तन करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है। यह नियमों के अधीन है जो केंद्र तथा राज्य सरकार की नीतियों के अनुसार संचालित होगा।
Prayagraj News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अपने नाम में परिवर्तन करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है। यह नियमों के अधीन है जो केंद्र तथा राज्य सरकार की नीतियों के अनुसार संचालित होगा। बता दें कि याची द्वारा अपना नाम शाहनवाज से बदल कर मो समीर राव करने की मांग के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की विशेष अपील पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने इस निर्णय के साथ एकल पीठ द्वारा नाम परिवर्तन करने को मौलिक अधिकार करार देने वाले निर्णय को रद्द कर दिया है।
नाम परिवर्तन के लिए 3 साल के भीतर हो आवेदन
एकल पीठ ने 25 मई 2023 के आदेश से यूपी बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें शाहनवाज का नाम परिवर्तित करने का प्रार्थना पत्र रद्द कर दिया गया था। यूपी बोर्ड का कहना था कि नियमानुसार नाम परिवर्तन के लिए आवेदन 3 साल के भीतर ही किया जाना चाहिए। एकल पीठ ने यूपी बोर्ड के इस नियम को मनमाना और असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि अपनी पसंद का नाम रखना व्यक्ति का अनुच्छेद 21 व 19 में मौलिक अधिकार है। लिहाजा, एकल पीठ ने शाहनवाज की ओर से अपना नाम बदलकर मोहम्मद समीर राव करने और उसके हाई स्कूल व इंटरमीडिएट सहित अन्य सभी प्रमाण पत्रों ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, आधार कार्ड आदि पर नया नाम अंकित करने की मांग वाली याचिका स्वीकार की थी।
कानून बनाना सरकार का नीतिगत मामला
राज्य सरकार ने इसके खिलाफ विशेष अपील दाखिल की। दलील दिया कि मौलिक अधिकार असीमित नहीं है। इन पर कुछ सुसंगत प्रतिबंध भी हैं। नाम परिवर्तन के लिए यूपी बोर्ड अधिनियम में समय सीमा निर्धारित है। कानून बनाना सरकार का नीतिगत मामला है। लिहाजा, एकल पीठ का आदेश क्षेत्राधिकार से बाहर जा पारित किया गया असंवैधानिक आदेश है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील स्वीकार करते हुए एकल पीठ का आदेश रद्द कर दिया।