दो भारतरत्न देने वाले बलरामपुर में जातिगत राजनीति हावी

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 27 Apr, 2019 04:12 PM

caste politics dominated by balrampur who has two bharat ratna

दो भारत रत्न देने का कीर्तिमान बना चुकी बलरामपुर संसदीय सीट 2008 के बाद इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है जिसके स्थान पर परिसीमन के बाद अस्तित्व में आयी श्रावस्ती मेें जातिगत राजनीति अक्सर विकास पर भारी पड़ती है। श्रावस्ती संसदीय सीट पर फिलहाल...

 

बलरामपुरः दो भारत रत्न देने का कीर्तिमान बना चुकी बलरामपुर संसदीय सीट 2008 के बाद इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है जिसके स्थान पर परिसीमन के बाद अस्तित्व में आयी श्रावस्ती मेें जातिगत राजनीति अक्सर विकास पर भारी पड़ती है। श्रावस्ती संसदीय सीट पर फिलहाल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कब्जा है और इस बार सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस के उम्मीदवार भाजपा से यह सीट छीनने की जीतोड़ कोशिश में जुटे है। अहिंसा के पुजारी महात्मा गौतम बुद्ध की तपोस्थली श्रावस्ती के नाम पर बनी इस लोकसभा सीट पर उम्मीदवार जातिगत समीकरण के आधार पर जीत की राह तलाश रहे हैं जिसके चलते शिक्षा, चिकित्सा, बाढ़, कटान और बेरोजगारी जैसे बुनियादी मसले चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 170 किलोमीटर दूर नेपाल की सरहद पर बसा बलरामपुर 1997 मे नव सृजित जिले के तौर पर अस्तित्व में आया। इससे पहले यह गोंडा जिले का हिस्सा हुआ करता था। गोंडा जिले मे दो लोकसभा सीटें थीं गोंडा सदर और बलरामपुर। राष्ट्रीय स्तर पर खास पहचान रखने वाली बलरामपुर संसदीय सीट पर भाजपा को छह बार जीत हासिल हुई है जबकि कांग्रेस ने पांच बार विजय पताका फहरायी। इसके अलावा सपा दो बार तो जनता पार्टी एक बार यहां परचम लहराने मे कामयाब रही।

बलरामपुर संसदीय सीट से जनसंघ के टिकट पर जीत हासिल करने वालों की बात की जाये तो इनमें पहला नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का आता है। वाजपेयी पहली बार 1957 में इस सीट से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे। वर्ष 1962 के चुनाव में कांग्रेस की सुभद्रा जोशी से शिकस्त खाने के बाद 1967 में वह यहां से दुबारा चुनाव जीतने में कामयाब हुए। जनसंघ नेता और वरिष्ठ समाज सेवी नानाजी देशमुख भी 1977 मे यहां से चुनाव लड़ कर जीत हासिल कर चुके है।

बलरामपुर संसदीय सीट से अंतिम बार बृजभूषण शरण सिंह को 2004 मे यहां से कामयाबी मिली। नये परिसीमन के बाद अस्तित्व में आयी श्रावस्ती संसदीय सीट पर पहली बार 2009 में लोकसभा चुनाव हुए और यहां से कांग्रेस के टिकट पर विनय कुमार पांडे विजयी हुए। इस बार विनय कुमार पांडे को कांग्रेस ने कैसरगंज लोक सभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव मे भाजपा उम्मीदवार दद्दन मिश्रा ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी बाहुबली अतीक अहमद को शिकस्त देकर श्रावस्ती सीट पर कब्जा जमाया। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने फिर दद्दन मिश्रा पर दांव आजमाया है।

सपा बसपा गठबंधन के उम्मीदवार राम शिरोमणि वर्मा भाजपा को शिकस्त देने के लिए जोर लगा रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस उम्मीदवार धीरेन्द्र प्रताप सिंह भी भाजपा की जीत की राह में बाधक सिद्ध हो सकते है। दो भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख की कर्मस्थली पर लड़े जा रहे इस चुनाव में विकास का मुद्दा गौड़ नजर आ रहा है। मतदाता किसके माथे पर जीत का तिलक लगाती है यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन इस बार के चुनाव में मतदाताओं की चुप्पी राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों को जरूर परेशान किये हुए है।

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