हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणीः दहेज के मामलों में मनमाने रूप से हत्या की धारा जोड़ना गंभीर

Edited By Ajay kumar,Updated: 29 Jun, 2024 09:44 AM

arbitrarily adding murder charges in dowry cases is serious highcourt

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश की ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा दहेज हत्या और दहेज से संबंधित अमानवीय व्यवहार से जुड़े मामलों में बिना किसी ठोस साक्ष्य के आईपीसी की धारा 302 को नियमित और यांत्रिक रूप से जोड़ने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि दहेज और...

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश की ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा दहेज हत्या और दहेज से संबंधित अमानवीय व्यवहार से जुड़े मामलों में बिना किसी ठोस साक्ष्य के आईपीसी की धारा 302 को नियमित और यांत्रिक रूप से जोड़ने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि दहेज और दहेज हत्या से जुड़े मामलों में 302 को जोड़ना गंभीर और अधिक गंभीर समस्या बनती जा रही है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जांच के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्यों की प्रकृति के आधार पर आरोप तय किए जाते हैं, न कि केवल हवा में या मनमाने ढंग से आरोपों का निर्धारण किया जाना चाहिए, जबकि निचली अदालतें कानून के आदेशों या किसी गलत धारणा के तहत बिना किसी ठोस सामग्री के वैकल्पिक आरोप के रूप में धारा 302 को जोड़ती जा रही हैं, जिससे आरोपी के लिए विनाशकारी परिणाम हो रहे हैं।

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बिना किसी ठोस साक्ष्य के आरोपों का निर्धारण गलत
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्य जब धारा 302 के तहत आरोप तय करने का समर्थन करते हैं, तभी ट्रायल कोर्ट को हत्या का आरोप तय करना चाहिए। उक्त आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने राम मिलन बुनकर की अपील को स्वीकार करते हुए पारित किया और सभी आक्षेपित निर्णयों को रद कर दिया। इसके अलावा अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोपों को फिर से तय करने के बाद सभी मामलों को फिर से सुनवाई के लिए संबंधित सत्र न्यायालय को वापस भेज दिया तथा किसी भी पक्ष को अनुचित स्थगन दिए बिना 31 दिसंबर 2024 तक मामले की सुनवाई पूर्ण करने का निर्देश दिया।

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अगर साक्ष्य अनुमति देते हैं तो धारा 302 के तहत भी आरोप तय किया जा सकता हैः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2010 में एक मामले में सभी अधीनस्थ न्यायालयों को निर्देश दिया था कि वह धारा 304 बी के आरोप में धारा 302 को भी जोड़ें, जिससे महिलाओं के खिलाफ बर्बर अपराधों में मौत की सजा दी जा सके। हालांकि वर्ष 2013 में जसविंदर सैनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि जिन मामलों में दहेज हत्या का आरोप लगाया गया है अगर साक्ष्य अनुमति देते हैं तो धारा 302 के तहत भी आरोप तय किया जा सकता है। संभवतः वर्तमान मामले में ट्रायल कोर्ट ने उक्त आधार पर ही धारा 302 के तहत औचित्य न होने के बावजूद हत्या के आरोप जोड़ दिए। 

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