डीजीपी के खिलाफ जाने वाले दरोगा पर शासन मेहरबान, मुकदमा हो सकता है वापस

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Feb, 2018 03:16 PM

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उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक रहे बीएस सिद्धू के खिलाफ बागी तेवर अपनाने वाले दरोगा पर शासन ने मेहरबानी दिखाने का फैसला लिया है। उसके खिलाफ विभिन्न धाराओं में दर्ज मुकदमे को वापस लेने की तैयारी शुरू हो गयी है। इस संबंध में जिला प्रशासन से रिपोर्ट तलब...

देहरादून/ब्यूरो।उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक रहे बीएस सिद्धू के खिलाफ बागी तेवर अपनाने वाले दरोगा पर शासन ने मेहरबानी दिखाने का फैसला लिया है। उसके खिलाफ विभिन्न धाराओं में दर्ज मुकदमे को वापस लेने की तैयारी शुरू हो गयी है। इस संबंध में जिला प्रशासन से रिपोर्ट तलब की गई है।

 

 

हालांकि डीजीपी और दरोगा दोनों सेवानिवृत्त हो चुके हैं।वर्ष 2013 में सत्यव्रत बंसल की सेवानिवृत्ति के बाद डीजीपी की कुर्सी संभालने से पहले आईपीएस बीएस सिद्धू के खिलाफ मसूरी रोड स्थित वीर गिरवाली राजस्व ग्राम में वन विभाग की भूमि का गलत तरीके से बैनामा कराने और उस जमीन पर लगे बेशकीमती व दुर्लभ साल के पेड़ काटने का मामला उछला था। इस मामले को उछाले जाने के पीछे की मंशा चाहे जो भी रही हो, पर बीएस सिद्धू इसकी जद में आ गए।

उनके खिलाफ हरे पेड़ काटने का मुकदमा दर्ज हो गया। वन विभाग की जमीन पर कब्जा करने के मामले की अलग से जांच शुरू हुई। पेड़ काटने का मामला वन विभाग की ओर से दर्ज हुआ।  फिलहाल मामला ग्रीन ट्रिब्यूनल में लंबित है। घटनाक्रम उसी समय का है, जब सिद्धू डीजीपी थे। वन विभाग की ओर से अपने खिलाफ दर्ज कराए गए मुकदमे से वह काफी आहत थे।

उनके डीजीपी बनते ही राजपुर कोतवाली में मसूरी वन प्रभाग के तत्कालीन डीएफओ धीरज कुमार व कई कर्मचारियों के खिलाफ पद का दुरुपयोग करने समेत कई धाराओं में पुलिस की ओर से मुकदमा दर्ज किया गया। इस मुकदमे की तफ्तीश के बहाने राजपुर कोतवाली पुलिस ने एक ठेकेदार समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया। उन पर आरोप लगाया गया कि वन विभाग की विवादित भूमि से काटे गए हरे पेड़ के असली आरोपी यही लोग हैं। ऐसा उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों के इशारे पर किया था।

 

 

इन चारों लोगों को जेल भेजने के साथ ही उनके बयान के आधार पर पुलिस को पर्याप्त आधार मिल गए, ताकि वन विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। लेकिन पुलिस की इस विवेचना की हवा एसआईएस (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन सेल) में तैनात दरोगा निर्विकार सिंह ने निकाल दी।इस दरोगा के पास दो दिन के लिए उक्त मामले की विवेचना आई थी। 
अपनी विवेचना में उसने गिरफ्तार कर जेल भेजे गए लोगों को निर्दोष करार देते हुए पुलिस की कार्रवाई पर ही सवाल उठा दिए। उसने एक तरह से यह भी संकेत दिया कि तत्कालीन डीजीपी बीएस सिद्धू के कहने पर ऐसा किया गया है। दरोगा के इस खुलासे के बाद पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया। उसे पहले निलंबित किया गया। बाद में उसकी उम्र का खयाल किए बगैर केदारनाथ में ड्यूटी के लिए भेज दिया गया।

अपने खिलाफ लगातार हो रही इस कार्रवाई से दरोगा नाराज हो गया उसने खुलेआम डीजीपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उसने बाकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस की और डीजीपी पर कई गंभीर आरोप लगाए। यहां तक कि डीजीपी के खिलाफ उसने हाईकोर्ट में याचिका डाल दी। इसी बीच डीजीपी और दरोगा दोनों सेवानिवृत्त हो गए।

हालांकि,उनके खिलाफ केस चलता रहा। बताया जा रहा है कि अब उसी केस को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की गई है। इसके लिए गृह विभाग के अपर सचिव गृह अजय रौतेला ने जिला प्रशासन से इस पूरे प्रकरण की रिपोर्ट तलब की है। जिला प्रशासन से रिपोर्ट तलब करने का मतलब यही है कि शासन कहीं न कहीं इस मुकदमे को वापस लेने के मूड में है। गृह विभाग के सूत्रों ने इसकी पुष्टी की है।

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