ये तीन दृष्टिहीन भाई बन रहे मिसाल, मन की आंखों से देख संवारते हैं मां की मूर्ति

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Sep, 2017 04:03 PM

these three blind brothers become examples

दृष्टिहीन पैदा होने पर परिवार वालों का उत्साह अचानक निराशा में बदल जाता है, लेकिन कई ..

बस्तीः दृष्टिहीन पैदा होने पर परिवार वालों का उत्साह अचानक निराशा में बदल जाता है, लेकिन कई ऐसे भी हैं, जिनके साहस और हौसले के सामने शारीरिक विकलांगता कभी बांधा नही बन पाती। ऐसे लोग सिर्फ़ अपना ही नहीं, बल्कि परिवार का सहारा भी बनते हैं और दूसरों को भी प्रेरित करते हैं। इन्हीं में से एक हैं कोलकाता के रामपाल।

रामपाल पैदाइशी दृष्टिहीन होने के बावजूद अपने हुनर से दुर्गा मां की मूर्तियों में जान भर देते हैं। रामपाल की बनाई हुई मूर्तियों की इतनी मांग है कि नवरात्री शुरू होने से पहले ही सभी मूर्तियां बुक हो गई है।

दरअसल मूर्ति कलाकार रामपाल कोलकता में शांतिपुर इलाके के निकुंजनगर के रहने वाला हैं। उनके पिता विजय कृष्णपाल के 3 बेटे हुए, तीनों जन्म से ही दृष्टिहीन थे, तीनों बेटों के दिव्यांग पैदा होने पर पहले तो पिता को बहुत निराशा हुई, लेकिन कुछ दिन बाद नई उम्मीद और विश्वास के साथ उन्होंने अपने बच्चों को स्वावलंबी बनाने की ठानी।

रामपाल के मुताबिक जब वो और उनके भाई 10-12 साल की उम्र के हुए, तभी पिताजी ने उन्हें मूर्ति बनाने की कला सीखाना शुरू की। इस कला को सीखने में तीनों भाइयों को करीब 10 साल लग गए। ट्रेनिंग के दौरान पिता ने बांस की फट्टी काटना, जोड़ना और घास को बांधना सीखाया। इसके बाद मिट्टी का लेप करने की बारीकी सीखाकर एक काबिल कलाकार बनाया।

मूर्ति बनाते समय कभी कोई गलती होती थी तो पिता पिटाई भी कर देते थे, लेकिन बाद में लाड करना भी नहीं भूलते थे। उसने बताया कि मूर्ति बनाने में पारंगत होने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी और दो बच्चों को साथ लेकर 6 लोगों की टीम तैयार की।

इसके बाद वे नवरात्री से पहले मूर्ति बनाने के लिए अलग-अलग शहरों की तरफ निकल पड़ते हैं। पिछले 5 साल से वह लगातार बस्ती जिले में आकर मूर्ति बनाकर बेचने का कारोबार कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि वह मूर्ति बनाने के दौरान प्लास्टर ऑफ पेरिस और घातक रंगों का इस्तेमाल नही करते। वह सिर्फ खेत की मिट्टी से ही मूर्तियों का निर्माण करते हैं और रंगाई के लिए हर्बल कलर का उपयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि नदियों और तालाबों में विसर्जन के बाद उनकी बनाई मूर्तियां पूरी तरह पानी में गल जाती है और प्रदूषण नहीं फैलने देती।
 

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