महागठबंधन की तैयांरियां तेज, मुलायम के बुलावे पर 5 नवंबर को लखनऊ जाएंगे लालू-नीतीश

Edited By ,Updated: 28 Oct, 2016 12:39 PM

mulayam singh  nitish kumar  lalu prasad

उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ समाजवादी पार्टी(सपा) के अन्य दलों के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने के प्रयासों को झटका भी लग सकता है।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ समाजवादी पार्टी(सपा) के अन्य दलों के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने के प्रयासों को झटका भी लग सकता है।राजनीतिक गलियारों में यह सवाल खडा किया जा रहा है कि क्या मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके समर्थक महागठबंधन को मानेंगे। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि मुलायम सिंह यादव के परिवार में चल रही अंतर्कलह के कारण पार्टी से 6 वर्षों के लिए बर्खास्त किए गए वन राज्यमंत्री तेज नारायण उर्फ पवन पाण्डेय अभी अखिलेश यादव मंत्रिमंडल में बने हुए हैं जबकि पाण्डेय को पार्टी से निकाले जाने के बाद प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने मंत्रिमंडल से निकालने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था।

अखिलेश व समर्थक महागठबंधन के पक्ष में नहीं
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि विधान परिषद सदस्य आशु मलिक से मारपीट करने के आरोप में पाण्डेय को पार्टी से निकालने का आदेश मुलायम सिंह यादव का था। उन्होंने कहा कि जब इतनी छोटी सी बात को मुख्यमंत्री ने अभी तक नहीं मानी है तो महागठबंधन को वह कैसे स्वीकार कर सकेंगे। उनका कहना है कि अखिलेश यादव और उनके समर्थक महागठबंधन के पक्ष में नहीं हैं। मुख्यमंत्री के एक नजदीकी ने दावा किया कि अखिलेश यादव अपनी सरकार की उपलबिधियों के बल पर अकेले चुनाव लड़ना चाहते हैं।

अखिलेश की अच्छी छवि से पार्टी को फायदा
मुख्यमंत्री के समर्थक का दावा है कि अखिलेश यादव की अच्छी छवि चुनाव में पार्टी को फायदा पहुंचाएगी। सन् 2012 में अकेले चुनाव लडकर 229 सीट हासिल की जा सकती है तो बेहतर काम के बदौलत 2017 में क्यों नहीं। उनका कहना था कि जनता दल यूनाइटेड, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल से हाथ मिलाकर सपा को क्या मिलेगा। सपा के बजाए इन दलों का ही फायदा होगा। इन तीनों दलों का राज्य में ठोस जनाधार है ही नहीं।

गठबंधन की सरकार बनेगी और सपा का मुख्यमंत्री होगा
इस राय से अलग पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव तीनों दलों से बात करने के लिए दिल्ली गए हैं। मुलायम सिंह यादव की सहमति से हो रही बातचीत के पीछे  यादव का तर्क है कि इससे धर्मनिरपेक्ष मत विभाजित नहीं होंगे। गठबंधन की सरकार बनेगी और सपा का मुख्यमंत्री होगा। इस बीच, शिवपाल यादव ने पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौडा,राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह, जनता दल(यू) नेता नीतीश कुमार, शरद यादव और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को पांच नवम्बर को यहां आयोजित सपा के रजत जयन्ती समारोह में आमंत्रित किया है। इससे सपा धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एक मंच पर लाने का संदेश भी देना चाहती है। ‘यादव परिवार’में चल रहे मतभेद की वजह से महागठबंधन होने से पहले ही संशय की स्थिति नजर आ रही है। 

सपा पार्टी में अंतर्कलह
यह मतभेद गत 13 सितम्बर को उस समय और बढ गया जब मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को हटाकर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान अपने भाई शिवपाल यादव को सौंप दी। इसके बाद आक्रोश में आए मुख्यमंत्री ने शिवपाल यादव के सारे विभाग छीन लिए। शिवपाल ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया लेकिन उसे मुख्यमंत्री ने नामंजूर कर दिया। इन घटनाक्रमों के बीच विवाद इतना बढा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 23 अक्टूबर को शिवपाल समेत चार मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया। मतभेद का आलम यहां तक पहुंच गया कि 24 अक्टूबर को सुलह समझौते के लिए बुलाई बैठक में मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में मुख्यमंत्री और शिवपाल की मंच पर ही माइक की छीना झपटी में धक्कामुक्की हो गई। ऐसे में महागठबंधन पर सवाल उठना लाजिमी है, क्योंकि अखिलेश समर्थक महागठबंधन को शायद ही तरजीह दें।

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