मायावती और अखिलेश के एक साथ आने की ललक से 1993 की याद फिर हुई ताजा

Edited By ,Updated: 16 Apr, 2017 05:01 PM

mayawati and akhilesh came together for the third time

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चल रही बयार को उत्तर प्रदेश में रोकने के लिए मायावती और अखिलेश यादव के एक मंच पर आने की चाहत ने सन् 1993 की याद ताजा कर दी है।

लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चल रही बयार को उत्तर प्रदेश में रोकने के लिए मायावती और अखिलेश यादव के एक मंच पर आने की चाहत ने सन् 1993 की याद ताजा कर दी है। इस चाहत से एक बात और साफ है कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती और समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मान ही लिया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) से अकेले पार पाना मुश्किल होगा।

मायावती-अखिलेश ने दिए गंठबंधन के संकेत
डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल को मायावती ने गैर भाजपा दलों से हाथ मिलाने का संकेत दिया था। उन्होंने कहा था कि बसपा गैर भाजपा दलों के साथ मिलकर लोकतंत्र को बचाने की लडाई लडऩे को तैयार है और बसपा को भाजपा से लडऩे के लिए दूसरे दलों से हाथ मिलाने में अब कोई गुरेज नहीं है। मायावती के इस बयान के दूसरे दिन ही अखिलेश यादव ने भी महागठबंधन बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होनें बताया कि इस बाबत वह राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार, बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और बंगाल की मुख्यमंत्री तथा तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी से मिल चुके हैं, लेकिन उन्होंने मायावती से मुलाकात के बारे में कुछ नहीं कहा। 

सपा-बसपा के पास एक मंच पर आने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं-राजनीतिक प्रेक्षक
राजनीतिक प्रेक्षक पंकज का कहना है कि 2014 के लोकसभा और 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त खायी सपा और बसपा को 2019 में लोकसभा चुनाव में अपनी साख बचाये रखने के लिए एक मंच पर आने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता। पंकज का मानना है कि सपा और बसपा 1993 की तरह एक मंच पर आते हैं तो पिछडों और दलितों का सम्मानजनक गठबंधन बनेगा। मुस्लिम भी साथ आयेंगे और यह गठबंधन भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में आ सकता है।

मुलायम-कांशीराम ने गठबंधन के बाद बीजेपी को दी थी करारी शिकस्त 
30 अक्टूबर और दो नवंबर 1990 को अयोध्या में गोली चलाये जाने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक साख गिरी थी। इससे उबरने के लिए उन्होंने बसपा संस्थापक कांशीराम से हाथ मिलाया और 1993 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा। सपा बसपा गठबंधन की सरकार बनी और मुलायम सिंह यादव फिर मुख्यमंत्री बन गये। विधानसभा के उस चुनाव में दलितों, पिछडों और मुसलमानों ने एकजुट होकर गठबंधन को वोट दिया था, इसलिए अयोध्या का मन्दिर-मस्जिद विवाद उरेज पर रहने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गयी थी। 

सपा-बसपा मिले तो फिर हार सकती है बीजेपी 
पंकज ने कहा कि सपा और बसपा मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो 1993 की स्थिति फिर पैदा हो सकती है, हालांकि वह यह भी कहते हैं कि तबकी भाजपा और अबकी भाजपा में काफी अन्तर आ गया है। मोदी खुद पिछड़े वर्ग के हैं और डॉ. भीमराव अंबेडकर को लेकर उन्होंने अनेक कार्यक्रम आयोजित किये हैं। डॉ. अंबेडकर से जुड़े पांच स्थलों को केंद्र ‘पंचतीर्थ’ के रूप में विकसित कर रहा है। इसका सीधा फायदा भाजपा को लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में दिखा। 

2019 में अलग-अलग लडऩे पर डूबेगी विपक्ष की लुटिया 
उधर, कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि मोदी की आंधी को थामने के लिए कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को एक मंच पर आ जाना चाहिए। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष डॉ0 मसूद कांग्रेस नेता की राय से सहमति जताते हुये कहते हैं कि मोदी के खिलाफ 2019 में अलग-अलग लडऩे पर विपक्ष की लुटिया डूब सकती है।

लालू की राजद भी पक्षधर 
लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) भी इसी मत का पक्षधर है। राजद के अशोक सिंह कहते हैं कि विपक्षी दलों को एक मंच पर आकर मोदी को करारा जवाब देना चाहिए। कांग्रेस नेता राजेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि लोकसभा चुनाव में गैर भाजपा दलों को एक साथ मिलकर लडऩा चाहिए ताकि मोदी की बयार को थामा जा सके। राजेन्द्र सिंह ने कहा कि भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस नेतृत्व को महागठबंधन की पहल करनी चाहिए और इसके लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा अध्यक्ष मायावती, रालोद अध्यक्ष चौ0 अजित सिंह समेत अन्य दलों को भी एक मंच पर लाकर चुनाव लडऩे की रणनीति बनानी चाहिए। 

सपा-भाजपा से लडऩे में सक्षम लेकिन महागठबंधन से बुराई नहीं-सपा
सपा के राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि उनकी पार्टी भाजपा से अकेले लडऩे में सक्षम है लेकिन यदि महागठबंधन बन जाये तो कोई बुराई नहीं है। उनका दावा है कि हारने के बावजूद उत्तर प्रदेश में सपा को वोट काफी मिले हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा की 160 से अधिक ऐसी सीटें हैं जहां सपा दूसरे नंबर पर रही है। इस सबके बावजूद भाजपा को रोकने के लिए गठबन्धन बन जाये तो ठीक ही है।

यूपी में किस पार्टी का है कितना वोट प्रतिशत 
उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा को 39 दशमलव सात, बसपा को 22 दशमलव दो, सपा को 21 दशमलव आठ और कांग्रेस को छह दशमलव दो प्रतिशत वोट मिले हैं। तीनों दलों को मिले वोटों का प्रतिशत 50 दशमलव दो है जो भाजपा के मतों से करीब 11 फीसदी अधिक है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के सूर्यकान्त पाण्डेय भी वर्तमान राजनीतिक माहौल में महागठबंधन को जरुरी बताते हैं और कहते हैं कि भाजपा को 2019 में सत्ता में आने से रोकने के लिए इसके सिवाय कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है। उधर, भाजपा का कहना है कि सपा अब पति-पत्नी और बसपा भाई-बहन की पार्टी बनकर रह गयी है। इनका जनता से कोई लेना देना नहीं है। पहले परिवार से तो बाहर निकलें। 

महागठबंधन की अटकलों पर बीजेपी ने साधा निशाना 
भाजपा के प्रदेश महासचिव विजय बहादुर पाठक ने कहा कि अभी तो योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बने एक महीना भी नहीं हुआ है। यह लोग अभी से क्यों परेशान हो गये। पाठक ने कहा कि लोकसभा के चुनाव में दो साल और विधानसभा के चुनाव में पांच साल हैं। अखिलेश यादव और मायावती में अभी से अकुलाहट क्यों पैदा हो रही है। महागठबन्धन के सवाल पर भाजपा के प्रदेश महासचिव ने कहा कि अखिलेश और मायावती झुंझलाहट में बयानबाजी कर रहे हैं। उन्हें सिर्फ अपनी चिन्ता है। जनता के बारे में न तो उन्हें सोचना है और न ही कुछ करना है। अपने अपने शासनकाल में दोनों ने ही जनता को लूटा और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। 

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