आवास आवंटन मामलाः उत्तराखंड के 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों ने नैनीताल HC में दायर की पुनर्विचार याचिका

Edited By Nitika,Updated: 13 Jun, 2019 02:32 PM

2 former cm of uttarakhand reconsider petition filed in nainital hc

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास आवंटन मामले को अवैध और असंवैधानिक घोषित किए जाने के मामले में राज्य के 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों भगत सिंह कोश्यारी और विजय बहुगुणा ने नैनीताल हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है। इसके साथ ही कोर्ट इस...

नैनीतालः उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास आवंटन मामले को अवैध और असंवैधानिक घोषित किए जाने के मामले में राज्य के 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों भगत सिंह कोश्यारी और विजय बहुगुणा ने नैनीताल हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है। इसके साथ ही कोर्ट इस मामले में जल्द ही सुनवाई करेगा। 

कोर्ट ने 6 महीने के भीतर किराया जमा करवाने के दिए थे निर्देश 
जानकारी के अनुसार, नैनीताल हाईकोर्ट ने 3 मई को अंतिम आदेश पारित कर राज्य के 5 पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास आवंटन और प्रदत्त अन्य सुविधाओं को अवैध और असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इसके साथ ही सभी को 6 महीने के अंदर बाजार दर पर किराया जमा करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने सरकार को भी निर्देश देते हुए कहा था कि यदि पूर्व मुख्यमंत्री किराए की धनराशि जमा नहीं करते हैं तो सरकार वसूली की कार्रवाई अमल में ला सकती है। 

कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने रलेक की याचिका पर की थी सुनवाई 
वहीं मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की युगलपीठ ने यह निर्देश देहरादून के एक गैर सरकारी संगठन रूरल लिटिगेशन एंड एनटाइटलमेंट केन्द्र (रलेक) की जनहित याचिका की सुनवाई के बाद दिए थे। केन्द्र की ओर से जनहित याचिका सन् 2010 में दायर की गई थी, जिस पर अंतिम फैसला 3 मई, 2019 को दिया गया। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि उत्तर प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री आवास आवंटन नियमावली 1997 उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों पर लागू नहीं होती है। यह भी कहा गया कि पूर्व मुख्यमंत्रियों के निजी आवास होने के बावजूद सरकार ने उन्हें सरकारी आवास आवंटित किए हैं। 

पूर्व सीएम ने कोर्ट में दायर की पुनर्विचार याचिका 
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री कोश्यारी और बहुगुणा ने पुनर्विचार याचिका में कहा है कि कोर्ट की ओर से अंतिम आदेश पारित करने से पहले कुछ तथ्यों का संज्ञान नहीं लिया गया है। सरकार की ओर से 12 फरवरी को जो हलफनामा अदालत में पेश किया उसकी प्रति उन्हें उपलब्ध नहीं करवाई गई है। यह भी कहा कि सरकार ने किस आधार पर आवास किराए की रकम कोर्ट में जमा की है। यह जानकारी उन्हें उपलब्ध नहीं करवाई गई है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने बताया कि वह इन दोनों याचिकाओं का विरोध करेंगे।

 

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