राजनीति में बॉलीवुड: 18वीं लोकसभा चुनाव में कायम रहेगा बॉलीवुड सेलिब्रिटीज का जलवा ?

Edited By Mamta Yadav,Updated: 04 Apr, 2024 02:38 AM

will the influence of bollywood celebrities in the 18th lok sabha elections

आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दलों की ओर से अपने उम्मीदवार घोषित किये जाने का सिलसिला अब भी जारी है। अभी तक घोषित उम्मीदवारों की सूची में भाजपा ने सबसे ज्यादा बॉलीवुड सेलिब्रिटीज को शामिल किया है। इनमें कंगना रनौत (मंडी) , अरुण गोविल...

Loksabha Election 2024: विभिन्न राजनीतिक दलों ने विगत वर्षों की तरह 2024 में अठारहवीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव में भी बॉलीवुड सेलिब्रिटीज पर दांव लगाया है और उम्मीद है कि वे इस बार भी राजनीति के मंच पर अपनी जीत की चमक बरकरार रखेंगे। देश की प्रमुख राजनीतिक पाटिर्यों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस तथा अन्य दलों ने इस बार भी बहुत से अभिनेता-अभिनेत्रियों को दूसरी या तीसरी बार चुनाव मैदान में उतारने के साथ ही कुछ कलाकारों को पहली बार मौका दिया है।
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आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दलों की ओर से अपने उम्मीदवार घोषित किये जाने का सिलसिला अब भी जारी है। अभी तक घोषित उम्मीदवारों की सूची में भाजपा ने सबसे ज्यादा बॉलीवुड सेलिब्रिटीज को शामिल किया है। इनमें कंगना रनौत (मंडी) , अरुण गोविल (मेरठ) , मनोज तिवारी (उत्तर-पूर्वी दिल्ली) , रविकिशन (गोरखपुर) , स्मृति ईरानी(अमेठी) , हेमा मालिनी (मथुरा) , दिनेश यादव निरहुआ (आजमगढ़) , लॉकेट चटर्जी (हुगली) और मलयालम गायक सुरेश गोपी(त्रिशूर) शामिल हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस ने जिन सेलिब्रिटीज को उतारा है, उनमें पश्चिम बंगाल में शत्रुघ्न सिन्हा(आसनसोल), सायोनी घोष (जादवपुर), जून मोलिया (मेदिनीपुर) दीपक अधिकारी(घाटल) ,शताब्दी रॉय (बीरभूम) और रचना बनजी(हुगली) प्रमुख हैं। कांग्रेस की ओर से राज बब्बर तथा अन्य बॉलीवुड कलाकारों को उम्मीदवार बनाये जाने की उम्मीदें हैं।

देश के चुनावी इतिहास में ऐसे बहुत से मौके आये जब राजनेताओं ने अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वियों को मात देने के लिए बॉलीवुड सेलीब्रिटीज को जरिया बनाया, वहीं इन हस्तियों ने भी चुनाव के मैदान में राजनीति के बड़े-बड़े धुरंधरों को पछाड़ा है। लोकप्रियता और प्रशंसकों की पसंदगी की बदौलत चुनावी राजनीति के परदे पर अपने जलवे बिखेरने वाली बॉलीवुड हस्तियों में अभिनेता से बने सुनील दत्त, महानायक अमिताभ बच्चन, ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, जयाप्रदा, राज बब्बर, गोविंदा, स्मृति ईरानी, परेश रावल , किरण खेर प्रमुख हैं। सत्तर के दशक में बॉलीवुड की सक्रियता उस समय भी जोरों पर थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया। अन्य क्षेत्रों की तरह मुंबईया फिल्मों के लोग भी आपातकाल के विरोध में सामने आये।
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‘एवरग्रीन' हीरो के नाम से मशहूर देव आनंद ने बॉलीवुड के साथी कलाकारों और समर्थकों के साथ 1977 के आम चुनाव में सरकार के खिलाफ खुलकर प्रचार किया। देव आनंद ने राजनीति में सक्रिय भागीदारी के उद्देश्य से एक नये राजनीतिक दल ‘नेशनल पार्टी' का भी गठन किया , हालांकि इस पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली और बाद में इसे भंग कर दिया गया। सिनेमा के रूपहले परदे के साथ ही राजनीति के पटल पर अपनी आभा बिखेरने वाली बॉलीवुड हस्तियों में सुनील दत्त का नाम प्रमुख है। फिल्मों के अलावा समाजसेवा के क्षेत्र में सुनील दत्त के योगदान को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें एक वर्ष के लिए मुंबई के शेरिफ पर नियुक्त किया। तत्कालीन दौर में पंजाब में आतंकवाद ने अपने पैर पसारे थे और ऐसे समय में उन्होंने शांति एवं सछ्वाव का संदेश देने मुंबई से अमृतसर तक की पदयात्रा की, जिसमें उनकी पुत्री प्रिया दत्त ने भी कदमताल मिलाकर साथ दिया। वर्ष 1984 में सुनील दत्त कांग्रेस में शामिल हुए तथा मुंबई उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट का पांच बार प्रतिनिधित्व किया। वह केंद्र की मनमोहन सरकार में खेल एवं युवा कल्याण मामलों के मंत्री रहे। उनके निधन के पश्चात रिक्त मुंबई उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट के लिए 2005 में उपचुनाव हुए, जिसमें प्रिया दत्त निर्वाचित हुई।

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सखा रहे बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन अपने मित्र का साथ देने राजनीति में उतरे और कांग्रेस में शामिल हुए। वर्ष 1984 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में राजनीति के पुरोधा लोकदल नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को शिकस्त देने के लिए अमिताभ को ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रयोग किया गया और उन्हें बहुगुणा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा। रील लाइफ के साथ रियल लाइफ में भी ‘छोरा गंगा किनारे वाला ' की विरासती छवि और पिता हरिवंश राय बच्चन की प्रसिद्धि के साथ स्वयं के फिल्मी ग्लैमर की चकाचौंध से परिपूर्ण अमिताभ के सामने बहगुणा की राजनीतिक चमक फीकी साबित हुई और वह चुनाव हार गये। अमिताभ का राजनीतिक करियर हालांकि लंबा नहीं रहा। बोफोर्स तोप घोटाला मामले में नाम घसीटे जाने से अमिताभ इतने व्यथित हुए कि उन्होंने सांसद के रूप में कार्यकाल पूरा होने से पहले ही अपना इस्तीफा दे दिया। राजनीति के महारथियों को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस ने ऐसा ही प्रयोग देश की राजधानी नयी दिल्ली में किया।
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वर्ष 1991 में नयी दिल्ली लोकसभा सीट के लिए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्तंभ माने जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ अपने जमाने के सुपरस्टार रहे राजेश खन्ना को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया। नयी दिल्ली सीट पर दोनों हस्तियों के बीच जबरदस्त टक्कर रही, लेकिन किस्मत आडवाणी के साथ रही और राजेश खन्ना महज 1589 मतों से चुनाव हार गये। इसी सीट पर 1992 में उपचुनाव हुए, जिसमें भाजपा ने कांग्रेस की ही चाल चलते हुए राजेश खन्ना के खिलाफ उनके समकालीन अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को चुनाव मैदान पर उतारा, लेकिन इस बार बाजी कांग्रेस के हाथ रही और उसके उम्मीदवार राजेश खन्ना ने शत्रुघ्न सिन्हा को करीब 25 हजार से अधिक मतों से हरा दिया।

‘शॉटगन' के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा को भाजपा ने 2009 में बिहार की पटना साहिब लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया। यहां भी एक सिनेमा हस्ती शेखर सुमन कांग्रेस की ओर से उनके सामने थे। भाग्य ने इस बार शत्रुघ्न का साथ दिया और उन्होंने शेखर सुमन को परास्त किया। वर्ष 2014 के आम चुनाव में भी शत्रुघ्न ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री के अलावा जहाजरानी मंत्री भी रहे तथा भाजपा की संस्कृति एवं कला प्रकोष्ठ के प्रमुख रहे। भाजपा में अपनी उपेक्षा और केंद्रीय नेतृत्व के प्रति उनके विद्रोही तेवर के मद्देनजर उन्हें 2019 लोकसभा चुनाव के लिए पटना साहिब लोकसभा सीट से टिकट नहीं दी गयी। अंतत: शत्रुघ्न सिन्हा ने पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गये। कांग्रेस भी हालांकि उन्हें अधिक रास नहीं आयी और उन्होंने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। बहरहाल वह आगामी लोकसभा चुनाव पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से लड़ने जा रहे हैं।
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फिल्मों में खलनायक से नायक और फिर अभिनेता से नेता का सफर तय करने वाले विनोद खन्ना भी राजनीति में सक्रिय रहे और वह पंजाब के गुरुदासपुर लोकसभा क्षेत्र से चार बार 1998, 1999, 2004 और 2014 में चुनाव जीते। जुलाई 2002 में वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बने तथा छह महीने बाद विदेश राज्यमंत्री बनाये गये। रंगमंच से फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाले राज बब्बर 1989 में जनता दल में शामिल हुए और अपनी राजनीति की पारी शुरू की , लेकिन बाद में वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये। समाजवादी पार्टी ने 1999 और 2004 के आम चुनाव में आगरा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया और दोनों बार निर्वाचित हुए। राजनीतिक कारणों से समाजवादी पार्टी ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गये। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने राज बब्बर को फिरोजाबाद सीट से उम्मीदवार बनाया। राज बब्बर ने इस चुनाव में समाजवादी नेता अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव को पराजित किया। कांग्रेस ने 2014 के चुनाव में गाजियाबाद लोकसभा सीट से जनरल वी के सिंह के खिलाफ राज बब्बर को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन इस बार भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और वह चुनाव में मात खा गये। ‘हीमैन' के नाम से मशहूर धर्मेंद्र को भाजपा ने वर्ष 2004 के आम चुनाव में राजस्थान की बीकानेर सीट से मौका दिया। इसी वर्ष कांग्रेस ने मुंबई लोकसभा सीट से अभिनेता गोविंदा को अपना उम्मीदवार बनाया। अपनी लोकप्रियता के बल पर दोनों अभिनेताओं ने चुनाव परिणाम अपने पक्ष में किया।

बॉलीवुड अभिनेताओं के साथ अभिनेत्रियों की लोकप्रियता को भी भुनाने में विभिन्न राजनीतिक दल पीछे नहीं रहे। ‘ड्रीमगर्ल' के रूप में प्रशंसकों के दिलों पर घर कर चुकी हेमा मालिनी 2004 से 2009 की अवधि में भाजपा की ओर से राज्यसभा सांसद के रूप में अपनी सेवाएं दी। वर्ष 2014 के आम चुनाव में भाजपा ने हेमा को मथुरा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया । हेमा ने इस चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल के जयंत चौधरी को पराजित किया। भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2019 में भी हेमा मालिनी को मथुरा सीट से चुनाव मैदान में खड़ा किया है। हेमा मालिनी ने यह चुनाव जीता और इस बार 2024 में भी पार्टी की ओर से उम्मीदवार हैं। दक्षिण भारतीय फिल्मों से बॉलीवुड में कदम जमाने वाली अभिनेत्री जयाप्रदा के ग्लैमर से भी राजनीतिक दल अछूते नहीं रहे। आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के संस्थापक रहे एन टी रामाराव ने वर्ष 1994 में राज्य विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जयाप्रदा को अपनी पार्टी में शामिल होने का आमंत्रण दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। बाद में तेदेपा में दोफाड़ हो गया और वह चंद्रबाबू नायडू के खेमे में चली गयी, लेकिन नायडू के साथ मतभेदों के चलते उन्होंने तेदेपा छोड़ दी और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गयी।

समाजवादी पार्टी ने 2004 और 2009 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश की रामपुर लोकसभा सीट से जयाप्रदा को उम्मीदवार बनाया और दोनों बार वह निर्वाचित हुई। बदली परिस्थिति में 2014 के चुनाव में जयाप्रदा ने राष्ट्रीय लोकदल की ओर से बिजनौर सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्तमान में जयाप्रदा भाजपा में शामिल है। टेलीविजन धारावाहिकों की सुपरस्टार स्मृति ईरानी को भाजपा ने चुनावी रथ पर सवार किया और 2004 के आम चुनाव में दिल्ली की चांदनी चौक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया, लेकिन स्मृति को यहां कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल के हाथों शिकस्त मिली। इसके बाद भाजपा ने 2014 में स्मृति को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के गढ़ अमेठी सीट से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा। भाग्य ने इस बार भी स्मृति का साथ नहीं दिया और वह चुनाव हार गयी।

इसके बाद वर्ष 2019 में अमेठी से चुनाव में जीत के बाद 2024 में भी स्मृति को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है। बॉलीवुड हस्तियों में परेश रावल तथा किरण खेर जैसी और भी शख्सियतें हैं जिनकी लोकप्रियता के कारण राजनीतिक दलों ने उन्हें चुनाव में उतारा है। इनमें कुछ सफल रहे और कुछ के हिस्से असफलता हाथ लगी।

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