Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 25 Jun, 2021 12:00 PM
ढाई आखर प्रेम का पाठ पूरी दुनिया का पढ़ाने वाले संत कबीरदास ने जीवन के अंतिम दिनों में काशी में स्वर्ग और मगहर में मरने वाले को नर्क मिलने के मिथक को तोड़ने
गोरखपुरः ढाई आखर प्रेम का पाठ पूरी दुनिया का पढ़ाने वाले संत कबीरदास ने जीवन के अंतिम दिनों में काशी में स्वर्ग और मगहर में मरने वाले को नर्क मिलने के मिथक को तोड़ने के लिए वे मगहर चले आए। यहीं पर उन्होंने अंतिम सांसें लीं। लेकिन, इसके सालभर पहले वे जब मगहर जाने के लिए निकले, शिष्यों के आग्रह पर गोरखपुर के सत्संग भवन में रात गुजारने के बाद यहां से प्रस्थान किए। शिष्यों के आग्रह को स्वीकार करते हुए उन्होंने अपनी खड़ाऊ वहीं पर छोड़ दी। आज वही सत्संग भवन ‘चरण पादुका मंदिर’ के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात है।
बता दें कि संत कबीरदास मगहर जाने के पूर्व गोरखपुर के घासीकटरा स्थित ‘चरण पादुका मंदिर’ में ठहरे थे। तब इस मंदिर का नाम सत्संग भवन रहा है। इस मंदिर को पहचान भी संत कबीरदास की वजह से ही मिली, उनकी जयंती पर गोरखपुर के घासीकटरा स्थित ‘चरण पादुका मंदिर’ में मनाई जाती है लेकिन, आज ये मंदिर अपने जीर्णोद्धार की आस देख रहा है कबीर सेवा समिति घासीकटरा की ओर से कबीर आश्रम घासी कटरा में जयंती कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
कबीर सेवा समिति घासी कटरा के मंत्री राम नरेश चतुर्वेदी जी ने कबीर के लिए हो रहे कार्यों की चर्चा करते हुए कहा, ‘कबीर मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर, पिछे पीछेहरि चलें कहत कबीर कबीर!’ कबीर के दोहों को समझने के लिए मन पवित्र होना चाहिए। संत कबीरदास मगहर यात्रा के दौरान यहां रात्रि विश्राम के लिए रुके थे। जनमानस में व्याप्त भ्रांति दूर करने के लिए संतकबीर ने अपने जीवन में कई मिथक तोड़े. उन्होंने अध्यात्म के रहस्यों की परतें खोलीं।
जहां कबीर ने अपनी खड़ाऊ छोड़े थी, वहां आज चरण पदुका नाम का मंदिर है. चरण पादुका मंदिर के महंत बालयोगी ने बताया कि जीवन के अंतिम दौर में कबीर काशी को छोड़कर निर्वाण के लिए मगहर चले गए। उस समय यह मान्यता रही है कि मगहर में मरने वाले को नर्क मिलता है, जबकि काशी में मरने वाले स्वर्ग जाते हैं। इस मिथक को तोड़ने के लिए संत अपने आखिरी समय में मगहर की ओर रवाना हुए। मगहर यात्रा के दौरान कबीर भक्तों के अनुरोध पर गोरखपुर के घासी कटरा स्थित एक सत्संग भवन में रुके। रात्रि विश्राम के बाद कबीर मगहर चले गए। भक्तों के अनुरोध पर अपनी खड़ाऊं छोड़ गए। उसके बाद घासी कटरा का सत्संग भवन 'चरण पादुका मंदिर' बन गया।