मायावती की रणनीति पर टिकी राजनीतिक दलों की निगाहें, लोकसभा में चमत्कार की उम्मीद

Edited By Ajay kumar,Updated: 21 Mar, 2024 05:46 PM

political parties eyes fixed on mayawati s strategy

तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने जिस बहुजन समाज पार्टी के प्रदर्शन को लोकतंत्र चमत्कार की संज्ञा दी थी। वह चमत्कार 2022 के विधानसभा चुनाव में नहीं दिखा। कारण काशीराम ने दलित चेतना की जो मशाल जलाई थी।

लखनऊ: तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने जिस बहुजन समाज पार्टी के प्रदर्शन को लोकतंत्र चमत्कार की संज्ञा दी थी। वह चमत्कार 2022 के विधानसभा चुनाव में नहीं दिखा। कारण काशीराम ने दलित चेतना की जो मशाल जलाई थी। वह अब दीपक बनकर टिमटिमा रहा है। बावजूद इसके सभी राजनीतिक दलों की निगाहें बसपा की रणनीति पर टिकी हुई हैं।

तीन बार उत्तर प्रदेश में सरकार बना चुकी बसपा 2022 के विधानसभा चुनाव में मात्र एक सीट पर सिमट गई थी। उसके समक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में 2019 का प्रदर्शन दोहराने के लिए चमत्कार करने जैसी चुनौती होगी। आंकड़े बताते हैं कि बसपा की दलित वोट बैंक पर वह पकड़ नहीं रही जो 2009 के लोकसभा चुनाव तक थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता भी नहीं खुला था। हालांकि उसे 19.43 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।

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2019 के लोकसभा चुनाव में जब उसने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया तो जरूर उसके सीटों की संख्या 10 तक पहुंच गई। चुनाव खत्म होते ही या गठबंधन टूट गया। जिसका खामियाजा बसपा को विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा। 2024 का लोकसभा चुनाव आते-आते बसपा की टिकट पर चुनाव जीतने वाले सांसद दूसरे दलों में भागने लगे। कोई भाजपा में गया तो कोई कांग्रेस में तो किसी ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। जो बचे हैं वह भी जाने की जुगत लगा रहे हैं। अब ऐसे सांसदों को चुनाव मैदान में शिकस्त देने के लिए बसपा चुनावी बिसात हर दांव आजमा रही है।

यह चुनाव सिर्फ मायावती के लिए ही नहीं बल्कि उनके भतीजे जिसे उन्होंने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है के लिए भी अग्नि परीक्षा साबित होने जा रहा है। प्रत्याशी में घोषणा में सबसे आगे रहने वाली बसपा इस चुनाव में अभी तक चंद सीटों पर ही अपना उम्मीदवार उतार सकी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने अंबेडकर नगर, अमरोहा, बिजनौर, गाजीपुर, घोसी, जौनपुर लालगंज, सहारनपुर, श्रावस्ती तथा नगीना सीट जीती थी। इन सीटों पर फिर से काबिज होने के लिए बसपा की जद्दोजहद जातीय समीकरणों पर ही टिकी हुई है।

बसपा इस बात के लिए पूरा प्रयास कर रही है कि जो सांसद पार्टी छोड़कर गए वह किसी तरह भी दोबारा सदन में न पहुंच सकें। फिलहाल बहुजन समाज पार्टी इस बार पूरे उत्तर प्रदेश में अकेले दम पर चुनाव लड़ने जा रही हैं। इसका मूल कारण यह है कि समाजवादी पार्टी के समर्थन से चुनाव लड़ने के दौरान उनके कई नेता और कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी के ही होकर रह गए। पार्टी एक बार फिर से नए सिरे से पूरे प्रदेश में संगठन खड़ा करना चाहती है। ताकि अगले विधानसभा चुनाव में वह पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में उतर सके।

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