UP: पराली अब लाएगी खुशहाली, बनेगी बिजली... किसानों की बढ़ेगी आय

Edited By Umakant yadav,Updated: 02 Jun, 2021 11:12 PM

parali will now bring prosperity electricity will be made income will increase

देश के अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड सहित विभिन्न स्थानों में धान की कटाई के बाद गेहूं की फसल की समय से बुवाई और लागत को कम करने के लिये जलायी जाने वाली पराली अब पर्यावरण प्रदूषण का कारण न होकर किसानों की आय का साधन बनेगी।

झांसी: देश के अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड सहित विभिन्न स्थानों में धान की कटाई के बाद गेहूं की फसल की समय से बुवाई और लागत को कम करने के लिये जलायी जाने वाली पराली अब पर्यावरण प्रदूषण का कारण न होकर किसानों की आय का साधन बनेगी। जनपद में पराली जलाने से होने वाले नुकसान को रोकने के लिये किसानों को जागरुक करते हुए बुधवार को जिलाधिकारी आंद्रा वामसी ने कहा कि पराली अब आय का जरिया है, इसमें आग न लगाये। धान का पुआल व फसली अवशेष (पराली) को जलाने से आर्थिक हानि के साथ-साथ मिट्टी की उत्पादकता क्षमता व उर्वरता पर काफी प्रभाव पड़ता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पराली में नाइट्रोजन, फास्फोटस और पोटाश की मात्रा होती है, जिसे जलाने के स्थान पर यदि खेत में उपयोग किया जाया तो मिट्टी को एनपीके की उचित मात्रा मिल जायेगी तथा मिट्टी के तापमान, पीएच, नमी आदि भी प्रभावित नही होगी और खेत की मिट्टी भी उपजाऊ होगी।              

उत्तर प्रदेश में ‘‘पराली दो खाद लो'' योजना को उन्नाव जिले से शुरु किया गया है, नि:संदेह इसके बेहतर परिणाम आयेंगे, इससे पर्यावरण और किसानो दोनों का लाभ हुअ है। इस योजना के तहत किसान को दो ट्राली पराली के बदले एक ट्राली गोबर खाद दी जा रही है, जिससे मृदा में जीवाश्म की वृद्वि हो रही और उत्पादन में भी सुधार आ रहा। पराली से एनटीपीसी द्वारा विद्युत निर्माण किया जा रहा है, जिससे धान तथा अन्य कृषि अवशेषों से बने गठठे (पेलेटस) को कोयले के साथ आंशिक रुप से प्रतिस्थापित कर विद्युत उत्पादन में सहयोग किया जा रहा है, जिसे तकनीकी भाषा में बायोमास को-फायरिंग भी कहते है।              

प्रदेश में सार्वजनिक क्षेत्र की नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) की दादरी स्थित इकाई में पराली आधारित ईधन से विद्युत उत्पादन योजना को शुरु किया गया है। पंजाब में पराली से कोयला बनाने वाले सात कारखाने है जो एनटीपीसी को कोयला बेचकर विद्युत निर्माण में मदद कर रहे है। एनटीपीसी द्वारा किसान को एक टन पराली के लिये करीब 5500 रुपये दिये जा रहे है। संयंत्र को रोजना 1 हजार टन कृषि अवशेषों की आवश्यकता है, इसके साथ ही देश भर में फैले 21 ताप बिजलीघरों में पेलेटस की आपूर्ति हेतु रुचि पत्र आमंत्रित किये गये जिसकी खपत 19440 टन प्रतिदिन है।                     

किसानों को जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे है। खुली बैठकों में कृषि विभाग के अधिकारी सहित अन्य अधिकारी भी पराली से होने वाले नुकसान की जानकारी देंगे तथा पराली से कैसे आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जाये, उसकी भी जानकारी किसानों को देंगे। उन्होने बताया कि पंजाब के गांव गद्दाडोब में एक फैक्टरी में 05 वर्ष से पराली से बिजली बनाने का काम कर रही है, जो करीब 05 हजार किसानों से पराली खरीदकर बिजली का निर्माण करती है, अब फैक्टरी के 20 किलोमीटर के दायरे में किसान अब पराली में आग नही लगाते बल्कि उसे फैक्टरी में बेचते है। जिससे सलाना 06 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन किया जाता है और बिजली बोडर् को 6.30 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बेचा जाता है।              

एक एकड़ खेत में दो टन तक पराली निकलती है। इस समय हर साल करीब 154 मिलियन टन कृषि अवशेष पैदा होता है, जिसको यदि इस्तेमाल किया जाये तो 30 हजार मेगावाट बिजली पैदा होगी, जो 1.5 लाख मेगावाट क्षमता के सोलर पैनल से होने वाले बिजली उत्पादन के बराबर है। इससे लगभग 01 लाख करोड़ का बाजार खड़ा हो सकता है। केंद्र सरकार ने बायोमास को-फायरिंग को प्रोत्साहन के लिये नीति निर्देश भी जारी कर दिये है तथा इस कदम से कृषि अवशेषों के एकत्रीकरण, संग्रहण एवं उससे पेलेटस के निर्माण क्षेत्र में निवेश को बढावा देने के साथ कृषि अवशेषों के लिये बाजार मिलेगा तथा साथ ही व्यापार व रोजगार के अवसर सृजित होंगे। 

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