Edited By Ajay kumar,Updated: 31 Mar, 2024 09:40 AM
अपराध की दुनिया और राजनीति, एक दूसरे के पूरक हैं। संरक्षण के लिए अपराधी राजनीति में प्रवेश करता है और राजनीति में कद बढ़ाने को नेता अपराधियों को संरक्षण भी देते हैं। पांच बार विधायक रह चुके मुख्तार अंसारी के राजनैतिक इतिहास से अंदाजा आसानी से लगाया...
लखनऊ: अपराध की दुनिया और राजनीति, एक दूसरे के पूरक हैं। संरक्षण के लिए अपराधी राजनीति में प्रवेश करता है और राजनीति में कद बढ़ाने को नेता अपराधियों को संरक्षण भी देते हैं। पांच बार विधायक रह चुके मुख्तार अंसारी के राजनैतिक इतिहास से अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
बसपा से 1996 में रखा था राजनीति में कदम
पूर्वांचल में अपराध की दुनिया में बढ़ते कद के साथ ही मुख्तार ने बसपा का दामन थामकर 1996 में राजनीति में कदम रखा था और मऊ सदर से जीत दर्ज कर सफेद पोश माफिया बन गया। राजनीति में तमाम उतार-चढ़ाव के साथ ही अंतिम बार 2017 में मऊ से बतौर बसपा विधायक रहे। माफिया मुख्तार अंसारी ने अपराधिक रिकार्ड बढ़ने के साथ ही 1996 में बसपा के सहारे राजनीति में कदम रखा, मऊ सदर से पहली बार विधायक बना। दूसरी बार 2002 में निर्दलीय विधायकी जीती, बाहुबली होने की वजह से पूर्वांचल की राजनीति मुख्तार के इर्द-गिर्द घूमने लगी। विधानसभा हो या लोकसभा चुनाव, मुख्तार की दखलंनदाजी हर चुनाव में होती थी।
बसपा से बाहर होने के बाद बनाया कौमी एकता दल
प्रदेश के राजनैतिक घटनाक्रमों में मुख्तार कुछ सालों के लिए बसपा से बाहर भी रहे, 2007 में निदर्लीय होकर भी चुनाव जीत दर्ज की। इस दौरान समाजवादी पार्टी के संपर्क में भी रहा। मगर 2009 में बसपा ने दोबारा वाराणसी से लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाकर उतारा, हांलाकि चुनाव में हार मिली। अगले ही साल 2010 में बसपा की मायावती ने फिर पार्टी से निष्कासित किया तो खुद का, कौमी एकता दल का गठन किया, और 2012 में विधायकी जीती। मगर ज्यादा दिन सक्रिय राजनीति से अलग नहीं रहें और 2017 में कौमी एकता दल का विलय बसपा में कर दिया और बसपा के टिकट पर मऊ सीट से विधायक बन गया। यह उनका अंतिम चुनाव साबित हुआ।