Jaunpur News: UP के पूर्व मंत्री पारसनाथ मौर्य का निधन, 83 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा

Edited By Anil Kapoor,Updated: 11 Jan, 2024 12:30 PM

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Jaunpur News: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व मंत्री पारसनाथ मौर्य (Former minister Parasnath Maurya) का बुधवार देर रात लखनऊ (Lucknow) के सिविल अस्पताल (Civil Hospital) में निधन हो गया। वे लगभग 83 वर्ष के थे। समाजवादी आंबेडकर वाहिनी के...

Jaunpur News: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व मंत्री पारसनाथ मौर्य (Former minister Parasnath Maurya) का बुधवार देर रात लखनऊ (Lucknow) के सिविल अस्पताल (Civil Hospital) में निधन हो गया। वे लगभग 83 वर्ष के थे। समाजवादी आंबेडकर वाहिनी के राष्ट्रीय महासचिव और उनके इकलौते पुत्र डॉ. राजीव रत्न मौर्य (Dr. Rajiv Ratna Maurya) ने बताया कि जौनपुर स्थित रामघाट (Ramghat in Jaunpur) पर आज उनका अंतिम संस्कार (Funeral) बौद्ध धर्म के रीति रिवाज के अनुसार किया जाएगा। पूर्वी यूपी की सियासत में अपनी खास पहचान रखने वाले जौनपुर जनपद के शीतला चौकिया भगौतीपुर के मूल निवासी पूर्व मंत्री पारसनाथ मौर्या (Former minister Parasnath Maurya) तत्कालीन मायावती सरकार (Mayawati Government) में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थे। मायावती सरकार के सत्ता से हटने के बाद प्रदेश में हुए तमाम राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद वह बसपा (BSP) में ही बने रहे।

पारसनाथ यादव को 1998 के लोकसभा चुनाव में हासिल हुई थी जीत
मिली जानकारी के मुताबिक, सपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री सपा सुप्रीमो रहे मुलायम सिंह यादव के साथ दलितों, पिछड़ों शोषितों को जगाने में उन्होंने लंबे समय तक देश के विभिन्न प्रांतो में आंदोलन चलाया। सपा की उस समय जब सरकार बनी तो उनके कार्यकाल में वह पशुपालन विभाग के अध्यक्ष राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त और समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे हैं। मौर्य वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में जौनपुर संसदीय सीट से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में उन्होंने चुनाव लड़ा था, उस दौरान भारतीय जनता पार्टी से राजकेशर सिंह और समाजवादी पार्टी से पारसनाथ यादव प्रत्याशी थे। पारसनाथ यादव को इस लोकसभा चुनाव में जीत हासिल हुई थी। बौद्धधर्म आंदोलन के प्रणेता रहे पारसनाथ मौर्य की दलितों, शोषितों में अच्छी पकड़ के चलते वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अमेठी लोकसभा सीट से कांग्रेस की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ इन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाया था।

जातीय अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ आवाज उठाना थी उनकी पहचान
बताया जा रहा है कि वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में पारसनाथ मौर्य के प्रचार में आए बसपा संस्थापक कांशीराम ने मड़ियाहूं में आयोजित जनसभा में खुद इस बात का खुलासा किया था कि बौद्ध धर्म आंदोलन के प्रणेता पारसनाथ के मुकाबले वह अभी नए हैं। जातीय अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ आवाज उठाना उनकी पहचान थी। सामाजिक समानता बनाए रखने के लिए उन्होंने गांव-गांव दलितों, पिछड़ों, शोषितों की रैलियां करके कमेरा आया है, लुटेरा भागा है का नारा बुलंद किया था। दलित पिछड़ों को शिक्षा से जोड़ने के उद्देश्य से उन्होंने अपने पैतृक गांव में बेटे को मान्यवर कांशीराम इंटर कॉलेज स्थापना की प्रेरणा दी थी। उनकी पत्नी पुरस्कृत शिक्षिक श्यामा देवी का निधन वर्ष 2008 में हो चुका है।

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