जालौन: 1400 साल पुराने शिव मंदिर में हर साल चावल भर बढ़ जाता है शिवलिंग

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 30 Jul, 2021 04:26 PM

jalaun shivling grows every year with rice in the 400 year

सनातन धर्म के तीन प्रमुख देवों में सबसे प्रमुख देवता के रूप में महादेव का अपना विशिष्ट स्थान है। देशभर में भगवान शिव से जुड़े प्राचीन स्थानों व मंदिरों से संबंधित अनेको अनेक गाथाएं हैं। बुंदेलखंड के जालौन जनपद में भी 1400 साल पुराने शिव मंदिर से जुड़ी...

जालौन: सनातन धर्म के तीन प्रमुख देवों में सबसे प्रमुख देवता के रूप में महादेव का अपना विशिष्ट स्थान है। देशभर में भगवान शिव से जुड़े प्राचीन स्थानों व मंदिरों से संबंधित अनेको अनेक गाथाएं हैं। बुंदेलखंड के जालौन जनपद में भी 1400 साल पुराने शिव मंदिर से जुड़ी एक अछ्वुत महिमा है यहां श्वेतवर्ण शिवलिंग के रूप में विराजे भोलेनाथ हर साल चावल के दाने बराबर बढ़ जाते हैं।

जनपद जालौन की माधवगढ़ तहसील के अंतर्गत ग्राम सरावन में स्थित शिवमंदिर की अनेकों कथाएं स्थानीय रूप से प्रचलित है इन कथाओं का वर्णन बुंदेली संस्कृति में अतुलनीय है। सावन के माह व महाशिवरात्रि के दिन महाकाल की असीम अनुकम्पा पाने की अभिलाषा लिए बड़ी संख्या में आस पास और दूर दूर से भक्त आते हैं। श्वेतवर्ण शिवलिंग रूप मे मंदिर में विराजमान होने के कारण भूरेश्वर महादेव मंदिर के रूप में विख्यात यह मंदिर स्थानीय लोगों की आस्था और विश्वास का बड़ा केंद्र है। स्थानीय लोग भूरेश्वर महादेव की सविस्तार वर्णन करते हुए बताते हैं कि यहां शिवलिंग प्रत्येक वर्ष एक चावल भर बढ़ता है। यही वजह है कि शिवलिंग की ऊंचाई 96 सेंटीमीटर हो गई है।

सावन मास में और शिवरात्रि के पर्व पर लाखों श्रद्धालु यहां माथा टेक कर खुद को धन्य मानते हैं। कैलाशपति का भूरेश्वर मन्दिर लगभग 1400 वर्ष पुराना है और रियासत के राजा श्रवन देव द्वारा बनाया गया है। राजा श्रवनदेव एकबार हस्तिनापुर गए थे, वहां उन्हें शिव ने स्वप्न में आकर शिवलिंग स्थापित करने को कहा। हस्तिनापुर से लौटते हुए वहां से राजा एक छोटे आकार का शिवलिंग लेकर आए थे, और गांव के पास ही एक जगह रख दिया। राजा मूर्ति को किसी पुनीत स्थान पर स्थापित करना चाहते थे लेकिन अनेक प्रयासों के बावजूद भी राजा तथा अन्य लोग इस शिवलिंग को तिल भर भूमि से अलग नहीं कर पाये और आखिरकार राजा को शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित कराना पड़ा। तभी से यह शिवलिंग इसी जगह स्थापित हैं और मंदिर बनवाया।

राजा श्रवन के नाम पर गांव का नाम पुराने कागजों में दर्ज है लेकिन भाषा के धारा प्रवाह के कारण ‘श्रवण' शब्द गाँव की बोली में बोलते-बोलते ठेठ होकर ‘सरावन' शब्द बन गया और गाँव का नाम सरावन पड़ा शिवलिंग के सफेद होने के कारण इस मन्दिर का नाम भूरेश्वर महादेव पड़ा। भूरेश्वर महादेव की महिमा इतनी अधिक है कि बाराबंकी जिले के रामनगर में स्थित लोधेश्वर महादेव से लौटने वाले लाखों काँवरिया सरावन में स्थित भूरेश्वर महादेव मन्दिर में जल चढ़ाने के बाद ही अपने गाँव को जाते हैं।

लोगों का कहना है कि वह इस मन्दिर को वर्षों से ऐसे ही देखते और पीढ़ी दर पीढी भूरेश्वर महादेव की महिमा का वर्णन सुनते चले आ रहे हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पूर्व, निकास दक्षिण व आगमन उत्तर की ओर है, छत 6 खंभों पर है । यहां शिवलिंग के विषय में बताया जाता है कि सुबह, दोपहर और शाम यह शिवलिंग अलग-अलग रूप में दिखायी देता है। शिवरात्रि से मन्दिर पर मेला लग जाता है वहीं एक माह के लिए रियासत के राजा अपनी ही रियासत में मेला लगवाते हैं। आज जिस स्थान पर मन्दिर है वहां पर बड़े-बड़े पेड़ है जिनकी छाया होती है। वहां पर एक कुंआ भी है। जिस पर लोग पहले पानी पीते थे और स्नान भी करते थे।

राजा श्रवन देव ने मन्दिर बनवाया जिसकी ऊँचाई लगभग 20 फुट है। उसके आगे एक बड़ा सा बरामदा बाद में बनवाया गया। जिसकी लम्बाई 40 फुट व चौड़ाई 30 फुट है जिसके अंदर छ: खम्भे भी हैं। वहां पर काफी बड़ा मैदान है अब पानी के लिए नल की सुविधा भी है पेड़ भी है वहां पर एक पीपल का पेड़ है जो लगभग 800 वर्ष पुराना है कालांतर में इसके बीच से एक नीम का पेड़ भी निकल आया और इस कारण लोग इसे हरिशंकरी के नाम से पुकारने लगे। यूं तो मंदिर में शिवभक्तों का आना जाना साल भर ही लगा रहता है लेकिन सावन मास और शिवरात्रि पर भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए विशेष रूप से भक्त यहां आते हैं। 

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