Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Aug, 2017 05:35 PM
जहां एक ओर 7 अगस्त को पूरा देश बहन-भाई के पवित्र त्यौहार रक्षाबंधन को बनाने में मशगूल होगा। वहीं, दूसरी तरह गाजियाबाद के मुरादनगर इलाके का एक गांव सुराना ऐसा भी हैं जहां रहने वाले सभी भाइयों की कलाइयां सूनी रहेंगी...
गाजियाबादः जहां एक ओर 7 अगस्त को पूरा देश बहन-भाई के पवित्र त्यौहार रक्षाबंधन को बनाने में मशगूल होगा। वहीं, दूसरी तरह गाजियाबाद के मुरादनगर इलाके का एक गांव सुराना ऐसा भी हैं जहां रहने वाले सभी भाइयों की कलाइयां सूनी रहेंगी।
गाजियाबाद से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर मुरादनगर इलाके का सुराना गाव बेहद बदनसीब है। यहां के भाइयो की कलाई हमेशा सूनी रहती है। इस गांव के रहने वाले बाशिंदे कई सौ सालों से राखी का त्यौहार नहीं मनाते। यहां रहने वाले भाइयों की सूनी रहती हैं, कलाइयां, क्या है इसके पीछे का कारण क्या है।
12वीं सदी से नहीं मनाया जा रहा त्यौहार
सुराना गांव के लोग बताते हैं कि 12वीं सदी में मोहमद गौरी ने कई बार इस गांव पर आक्रमण किया। मगर जैसे ही मोहम्मद की सेना गांव में आती तो वो अंधी हो जाती थी, इसके पीछे वजह थी गांवों के अंदर ही एक देव रहते थे जो कि गांव की रक्षा किया करते थे। मगर गांव के ही एक व्यक्ति ने विश्वासघात किया और मोहम्मद गोरी को बताया कि जबतक ये देव गांव में हैं आप गांव का कुछ भी नहीं कर पाएंगे। जिस दिन देव इस गांव में नहीं होंगे उस दिन हमला करने से गांव पर विजय पाई जा सकती है।
पूर्णिमा वाले दिन गंगा स्नान को देव गांव से बाहर गए हुए थे तो खबरी ने मोहम्मद को खबर कर दी। मोहम्मद ने गांव पर हमला बोल दिया और पूरे गांव को हाथी के पैरों तले बड़ी ही बेहरहमी से कुचलवा दिया। पूरा गांव तहस-नहस कर दिया। उस दौरान गांव की सिर्फ एक महिला और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे ही बच पाए थे। वो भी इसलिये क्योंकि महिला उस समय गांव में नहीं थी।
रक्षा बंधन के दिन मोहम्मद गोरी ने किया था गांव पर हमला
जिस दिन मोहम्मद ने हमला कर पूरे गांव को तह नहस किया था। वो दिन रक्षा बंधन का दिन था। तभी से इस गांव मे रक्षा बंधन का त्यौहार नहीं मनाया जाता। इतना ही नहीं अगर इस गांव का रहने वाला कोई भी व्यक्ति रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने की कोशिश करता है तो उसके साथ कुछ ना कुछ अनहोनी हो जाती है। तब से अबतक इस गांव में कोई भी व्यक्ति रक्षाबंधन नही मनाता। इस पवित्र रिश्ते वाले दिन इस गांव के भाइयों की कलाई सूनी ही रहती है।
हालांकि गांव में कुछ लोगों का कहना यह भी है कि एक बार इस प्रथा को तोड़ा गया तो रक्षाबंधन के दिन अंग्रेजों ने पूरे गांव को हाथियों के पैरों तले रौंदवा दिया था। कुल मिलाकर आज इस गांव में रहने वाले किसी भी बाशिंदे की कलाई पर रक्षाबंधन का पवित्र धागा नहीं मिलता। अब इसे अंधविश्वास कहे या सच्चा विश्वास, लेकिन यहां के भाई बेहद बदनसीब हैं जिनकी कलाई पर बहिन होते हुए भी उनका प्यार नहीं झलक पाता।