पीलीभीत: समलैंगिक शादी कर थाने पहुंचीं युवतियां, बोलीं- हम साथ रहेंगे

Edited By Ajay kumar,Updated: 04 Mar, 2024 07:55 PM

girls reached police station after gay marriage said we will stay together

जिले में शादी का अजीबोगरीब मामला सामने आया है जिसकी चारों तरफ चर्चाएं हो रही हैं। सुनगढ़ी क्षेत्र से युवतियों का दिल एक दूसरे पर आ गया तो दोनों ने समलैंगिक विवाह कर लिया। घर से लापता हुईं दो युवतियां रविवार को सुनगढ़ी थाने पहुंचीं और एक-दूसरे से...

पीलीभीत: जिले में शादी का अजीबोगरीब मामला सामने आया है जिसकी चारों तरफ चर्चाएं हो रही हैं। सुनगढ़ी क्षेत्र से युवतियों का दिल एक दूसरे पर आ गया तो दोनों ने समलैंगिक विवाह कर लिया। घर से लापता हुईं दो युवतियां रविवार को सुनगढ़ी थाने पहुंचीं और एक-दूसरे से शादी करने व साथ रहने की बात कही। पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया। कोर्ट ने उन्हें स्वेच्छा से साथ रहने की स्वीकृति दी।

दोनों ने खुद को बालिग बताया और मर्जी से विवाह करने की बात कही
सुनगढ़ी क्षेत्र के एक गांव में रहने वाली दो युवतियां 3 फरवरी को लापता हो गई थीं। इनमें एक 22 और दूसरी 19 साल की है। 22 वर्षीय युवती के भाई ने 4 फरवरी को फुसलाकर ले जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। वहीं दूसरी युवती के परिजनों ने तहरीर नहीं दी थी। शुक्रवार को दोनों युवतियां थाना सुनगढ़ी पहुंचीं। इनमें 22 वर्षीय युवती दूल्हे के रूप में थी। उसने बाल कटवाकर लड़कों जैसा रूप धारण किया था। 19 वर्षीय युवती को अपनी पत्नी बनाने की बात कही। दोनों ने खुद को बालिग बताया और मर्जी से घर से जाने की बात कही।

बातें सुनकर पुलिस रह गई दंग
पुलिस पूछताछ में युवतियों ने बताया कि उन्होंने शहर के एक मंदिर में शादी भी कर ली है। वे पति-पत्नी के रूप में रहना चाहती हैं। उनकी बातें सुनकर पुलिस दंग रह गई।

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भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं समलैंगिक विवाह: सुप्रीम कोर्ट 
केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि पार्टनर के रूप में एक साथ रहना और समलैंगिक व्यक्तियों द्वारा यौन संबंध बनाना, जिसे अब अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, भारतीय परिवार इकाई (एक पति, एक पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों) के साथ तुलनीय नहीं है। केंद्र ने जोर देकर कहा कि समलैंगिक विवाह सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं है।

अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि शादी की धारणा ही अनिवार्य रूप से विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के बीच एक संबंध को मानती है। यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से विवाह के विचार और अवधारणा में शामिल है और इसे न्यायिक व्याख्या से कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। विवाह संस्था और परिवार भारत में महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएं हैं, जो हमारे समाज के सदस्यों को सुरक्षा, समर्थन और सहयोग प्रदान करती हैं और बच्चों के पालन-पोषण और उनके मानसिक और मनोवैज्ञानिक पालन-पोषण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

केंद्र ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं। केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि सामाजिक नैतिकता के विचार विधायिका की वैधता पर विचार करने के लिए प्रासंगिक हैं और आगे यह विधायिका के ऊपर है कि वह भारतीय लोकाचार के आधार पर ऐसी सामाजिक नैतिकता और सार्वजनिक स्वीकृति का न्याय करे और उसे लागू करे।

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