SC के फैसले पर मदरसा बोर्ड के चेयरमैन ने दी प्रतिक्रिया- कहा- अब PM मोदी का सपना होगा साकार...

Edited By Ramkesh,Updated: 05 Apr, 2024 05:27 PM

chairman of madrasa board reacted on sc s decision

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के 22 मार्च 2024 को‘उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड शिक्षा अधिनियम 2004'के प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मदरसा बोर्ड के चेयरमैन डॉक्टर इफ्तिखार अहमद जावेद ने स्वागत किया...

लखनऊ / नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के 22 मार्च 2024 को‘उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड शिक्षा अधिनियम 2004'के प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मदरसा बोर्ड के चेयरमैन डॉक्टर इफ्तिखार अहमद जावेद ने स्वागत किया है। अहमद जावेद ने इसके लिए मदरसा शिक्षा बोर्ड से जुड़े सभी अध्यापकों,  छात्रों और प्रबंधकों को धन्यवाद दिया है। उन्होंने कि रमजान के बाद उत्तर प्रदेश के सभी मदरसे खुलेंगे उसके बाद पहले की तरह शिक्षण कार्य चलेगा। उन्होंने जिस तरह से मोदीजी ने कहा कि है कि एक हाथ में कुरान दूसरे हाथ में कम्प्यूटर के साथ समाज की मुख्यधारा से जुड़कर विकास करेंगे।

दरअसल, मदरसा शिक्षा बोर्ड के मामले में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ , न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले में ‘2004 अधिनियम की प्रथम द्दष्ट्या गलत व्याख्या'मानते हुए कहा कि उच्च न्यायालय का निर्देश 17 लाख छात्रों के अधिकारों पर आघात करेगा, क्योंकि विशेष शिक्षा का चयन करना हमेशा छात्रों और उनके माता-पिता की पसंद रही है। पीठ ने कहा, 'यह सुनिश्चित करने में राज्यों के वाजिब हित हैं कि छात्र गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित न रहें। क्या इस उद्देश्य के लिए पूरे क़ानून को रद्द करने की आवश्यकता नहीं होगी, इस पर विचार करने की आवश्यकता होगी।'

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि उच्च न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि 2004 का अधिनियम धर्मनिरपेक्षता और बुनियादी ढांचे और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। ये निष्कर्ष हालाँकि,मदरसा बोडर् को सौंपी गई नियामक शक्ति से मेल खाते प्रतीत होते हैं।संविधान के अनुच्छेद 28(1) में प्रावधान है कि सरकार द्वारा पूर्ण सहायता प्राप्त संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी।

उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले का समर्थन करते हुए दलील दी कि लगभग 17 लाख छात्रों को नियमित संस्थानों में समायोजित किया जा सकता है और अगर फैसले पर रोक लगाई गई तो राज्य को 1096 करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ उठाना पड़ेगा। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि धर्म का उलझाव अपने आप में संदिग्ध मुद्दा है, जिस पर विचार-विमर्श की जरूरत है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी, मुकुल रोहतगी, पी एस पटवालिया, सलमान खुर्शीद और मेनका गुरुस्वामी और अन्य ने उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता पर सवाल उठाया।

उन्होंने दलील दी कि उच्च न्यायालय ने‘फरमान'पारित कर 1908 से नियामक व्यवस्था के तहत चलाए जा रहे मदरसों को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले से 17 लाख छात्रों के अलावा 10,000 शिक्षक भी प्रभावित हुए हैं। पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं के कहा कि देशभर में गुरुकुल और संस्कृत पाठशालाएं भी हैं। श्री रोहतगी के पास शिवमोग्गा जिले के एक गाँव का उदाहरण है, जहाँ लोग संस्कृत के अलावा कोई अन्य भाषा नहीं बोलते हैं। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने कहा, 'क्या राज्य सहायता देकर धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन कर रहा है? क्योंकि हम इस्लाम पढ़ाते हैं, इसलिए यह संस्था धार्मिक निर्देश देने वाली नहीं बन जाती।

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