यहां होता है भरत मिलाप का उत्सव, भगवान राम के होते हैं साक्षात दर्शन

Edited By ,Updated: 12 Oct, 2016 09:09 PM

bharat milaap lord rama

वाराणसी में भरत मिलाप वाराणसी मेलों और त्योहारों के एक शहर है। रावण दहन के ठीक दूसरे दिन यहां पर भरत मिलाप का ...

वाराणसी: वाराणसी में रावण दहन के ठीक दूसरे दिन भरत मिलाप का उत्सव मनाया जाता है जिसमें लाखों की भीड़ जमा होती है। लगभग पांच सौ वर्ष पहले संत तुलसीदास जी के शरीर त्यागने के बाद उनके समकालीन संत मेधा भगत काफी विचलित हो उठे। माना जाता है कि उन्हें स्वप्न में तुलसीदास के दर्शन हुए और उसके बाद उन्हीं के प्रेरणा से उन्होंने इस रामलीला की शुरुआत की। यह त्योहार इकादाशी के दिन काशी के नाटी इमली के मैदान में होता है। लंका में रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद मर्यादा पुरोसोतम राम जब वापस लौटते है तो उस समय भरत मिलाप होता है। माना जाता है कि 473 वर्ष पुरानी काशी की इस लीला में भगवान राम का जिवंत दर्शन होता है।

मेघा भगत को यहां भगवान राम ने दिया था दर्शन 

काशी की यह लीला 473 वर्ष पुरानी है और मेघा भगत के जमाने से चली आ रही है जो कि तुलसी दास जी के समकालीन थे। तुलसीदास ने जब रामचरित मानस को वाराणसी के घाटों पर लिखा तो उसके बाद उन्होंने कलाकारों को इकठ्ठा कर लीला शुरू की, मगर उसको परम्परा के रूप में मेघा भगत ने ढाला। माना जाता है कि मेघा भगत को इसी चबूतरे पर भगवान राम ने दर्शन दिया था और तभी से काशी में भरत मिलाप एक लख्खा मेले के रूप में चला आ रहा है। 

शाम को लगभग चार बजकर चालीस मिनट पर जब अस्ताचल गामी सूर्या की किरणें भरत मिलाप मैदान के एक निश्चित स्थान पर पड़ती हैं तब लगभग पांच मिनट के लिए माहौल थम जाता है। एक तरफ भरत और शत्रुघ्न अपने भाईयों के स्वागत के लिए जमीन पर लेट जाते हैं तो दूसरी तरफ राम और लक्षमण वनवास खत्म करके उनकी और दौड़ पड़ते है। चारों भाईयों के मिलन के बाद जय जयकार शुरू हो जाती है। रवायत के अनुसार फिर चारों भाई रथ पर सवार होते हैं और यदुवंशी समुदाय के लोग उनके रथ को उठाकर चारों और घुमाते हैं। 

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