SC/ST एक्ट को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले मायावती ने किया था संशोधित

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Apr, 2018 09:22 AM

mayawati had revised the sc st act before the supreme court order

बसपा सुप्रीमो मायावती भले ही SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित आंदोलन के समर्थन में हों लेकिन अपने राज में वह भी ऐसे फैसले ले चुकी हैं। जानकारी के अनुसार मायवती के शासनकाल में एससी-एसटी एक्ट को संशोधित ही नहीं किया गया था बल्कि....

लखनऊः एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम काेर्ट द्वारा किए गए बदलाव काे लेकर साेमवार काे दलित संगठनाें ने भारत बंद का आयाेजन किया। इस दाैरान देश के कई राज्याें में हिंसा की खबरें भी सामने आईं। इस आंदाेलन काे समर्थन देने वाली पार्टियाें में मुख्य पार्टी बसपा थी। खास बात ये है कि बसपा सुप्रीमाे मायावती सुप्रीम काेर्ट के फैसले का विराेध कर रही हैं जाे खुद ही अपने राज में ऐसे फैसले ले चुकी हैं।

बता दें कि जब मायावती यूपी की सीएम थीं तब उनकी सरकार ने ऐसे ही दो आदेश जारी किए थे जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के दुरुपयोग को रोकने के लिए थे। तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा जारी ये आदेश इस बात पर केंद्रित थे कि ऐक्ट के तहत केवल शिकायत के आधार पर कार्रवाई न हो बल्कि प्राथमिक जांच में आरोपी के प्रथम दृष्ट्या दोषी पाए जाने पर ही गिरफ्तारी हो।


सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल गिरफ्तारी पर लगाई रोक 
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी ऐक्ट से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए इसमें तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। इसके अलावा ऐक्ट के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछेक और व्यवस्था की गई है।

भारत बंद के दाैरान हुई व्यापक हिंसा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को भारत बंद का आयोजन किया था। बंद के दौरान व्यापक हिंसा हुई और 12 लोगों की मौत हो गई। 
विपक्ष और दलित संगठन इस ऐक्ट को कमजोर करने का आरोप लगा मोदी सरकार को घेर रहे हैं। बैकफुट पर नजर आ रही मोदी सरकार ने इसे लेकर रिव्यू पिटिशन दाखिल किया है, लेकिन सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया है। 

हत्या- रेप जैसी जघन्य वारदात में ही ऐक्ट के तहत दर्ज हाे मामला 
मायावती ने भी दलित संगठनों की मांग को अपना समर्थन दिया है। हालांकि यूपी की मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनकी सरकार खुद इस ऐक्ट के दुरुपयोग को लेकर चिंतित नजर आ रही थी। 20 मई 2007 को तत्कालीन मुख्य सचिव शंभु नाथ की तरफ से जारी किए गए पत्र के 18वें पॉइंट में इस ऐक्ट के तहत पुलिस से दर्ज की जाने वाली शिकायतों का जिक्र था। यह निर्देश मायावती के सीएम बनने के महज एक हफ्ते के भीतर ही जारी हुआ था। इस निर्देश में साफ किया गया था कि केवल हत्या और रेप जैसी जघन्य वारदात ही इस ऐक्ट के तहत दर्ज होनी चाहिए। 

अनुसूचित जाति/जनजाति के खिलाफ कम गंभीर अपराधाें के मामले आईपीसी की विभिन्न संगत धाराओं के अंदर दर्ज करने के निर्देश दिए गए थे। एससी-एसटी ऐक्ट में रेप की शिकायतों पर तभी कार्रवाई का निर्देश था जब पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में रेप की पुष्टि हो जाए और प्रथम दृष्ट्या आरोपी दोषी पाया जाए। 

केवल शिकायत के आधार पर न हाे गिरफ्तारी 
पत्र में साफ लिखा था कि पुलिस को केवल एससी-एसटी की शिकायतों के आधार पर ही कार्रवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसे मामले देखे गए हैं जब लोगों निजी बदला चुकाने के लिए इस ऐक्ट का दुरुपयोग किया। साफ था कि माया सरकार में जारी इस दिशा-निर्देश का मकसद यह पक्का करना था कि इस अधिनियम का दुरुपयोग ना हो।

मायावती सरकार ने पुलिस को जारी किया था ये निर्देश
मायावती की सरकार ने पुलिस को निर्देश जारी किए थे कि वह जेनुइन शिकायत होने पर कानून को समुचित तरीके से लागू करे। पहले दिशा-निर्देश के 6 महीने बाद (29 अक्टूबर 2007) तत्कालीन मुख्य सचिव प्रशांत कमार ने डीजीपी और फील्ड के सभी वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित करते हुए दूसरा पत्र भेजा।

ऐक्ट के दुरुपयोग पर आरोपी के खिलाफ कार्रवाई
इस पत्र में मायावती सरकार ने ऐक्ट का दुरुपयोग होने पर आरोपी के खिलाफ समुचित कार्रवाई करने पर भी जोर किया था। पुलिस अधिकारियों को यह निर्देश भी दिया गया था कि इस कानून के तहत दी गई सूचना फर्जी पाई जाती है तो आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 182 के तहत कार्रवाई शुरू की जाए। 

आईपीसी की धारा 182 किसी जनसेवक से उसके अधिकारों के इस्तेमाल कराकर दूसरे शख्स का नुकसान कराने के मकसद दी जानेवाली फर्जी सूचना से संबंधित है। इस मामले में डीजीपी ऑफिस को आदेश जारी किया गया था कि वह इस कानून के तहत दर्ज मामलों की लिस्ट बनाए और उस पर हुई प्रगति के बारे में समय समय पर राज्य सरकार को जानकारी दे। 


 

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